इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस में एसएचओ यानी थानेदार दिनों दिन कितने ज्यादा भ्रष्ट , निरंकुश और बेखौफ होते जा रहे है। इसका अंदाजा हाल ही के मामलों से भी लगाया जा सकता है। एसएचओ के बेखौफ होने के लिए आईपीएस अफसर जिम्मेदार है। आईपीएस अफसर अगर काबिलियत, ईमानदारी और दबंगता से अपने कर्तव्य का पालन करें, तो ही एसएचओ की नकेल कसी जा सकती है।
आईपीएस की भूमिका पर सवाल-
लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले कई सालों से आईपीएस अफसर एसएचओ के ‘दोस्त’ और आका की भूमिका में ज्यादा नजर आ रहे है। पेशेवर रुप से कमजोर/दब्बू /नाकाबिल अफसरों के कारण ही आईपीएस जैसी प्रतिष्ठित सेवा की छवि भी खराब होती है। ऐसे आईपीएस के कारण ही बेईमान पुलिसकर्मी निरंकुश हो जाते है। इसी लिए अपराध और अपराधियों पर भी अंकुश नहीं लग पाता है।
लगता है अब काबिल, दमदार आईपीएस अफसरों का अकाल पड़ गया है।
ईमानदार हो, तो ईमानदार नजर आना जरूरी है-
कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर अगर दमदार और काबिल हो, तो ही एसएचओ डरते हैं वरना आईपीएस को तो वह अपना साझीदार/ पार्टनर ही मानते हैं। जब तक आईपीएस अफसर अपने निजी लाभ /घरेलू कार्य के लिए एसएचओ पर निर्भर रहेंगे, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लग ही नहीं सकता। आईपीएस अगर ईमानदार हो, तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।
लेकिन जो आईपीएस अफसर मातहत पुलिसकर्मियों और सरकारी कार आदि संसाधनों का निजी काम के लिए इस्तेमाल करते हैं। अपनी शान दिखाने के लिए दफ्तरों की साज सज्जा और कार्यक्रमों पर सरकारी धन बेदर्दी से लुटाते हैं।
जो अफसर लूट, झपटमारी, हत्या की कोशिश, जैसे अपराध को ही सही दर्ज नहीं करते या हल्की धारा में दर्ज़ करते हैं।
उनको ईमानदार भला कैसे माना जा सकता है। अपराध को दर्ज़ न करके एक तरह से अपराधी की मदद करने वाले पुलिसवाले तो अपराधी से भी बड़े गुनाहगार है।
कमिश्नर और आईपीएस अफसर अगर ठान लें, तो ही भ्रष्ट पुलिस वालों पर अंकुश लगाया जा सकता है।
वैसे दिल्ली पुलिस में ऐसे कमिश्नर और आईपीएस अफसर भी रहे हैं। जिनकी काबिलियत, दबंगता और दमदार नेतृत्व क्षमता का आज भी उदाहरण दिया जाता है।
दो लाख दो, मामला रफा दफा कराओ-
दिल्ली पुलिस के पूर्वी जिला के साइबर थाने के एसएचओ सतीश कुमार और एएसआई विजेंद्र को 17 जुलाई को निलंबित किया गया। एक व्यक्ति को धमकी देकर दो लाख रुपए मांगने वाले इन दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ जबरन वसूली और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला भी दर्ज किया गया है।
पूर्वी जिला के एडिशनल डीसीपी सचिन शर्मा ने बताया कि एक महिला ने साइबर थाने में शिकायत की थी, कि उसके पति ने उसके ऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप में आपत्तिजनक पोस्ट डाल दी। पति-पत्नी के बीच मुकदमे बाजी चल रही है।
आरोप है कि साइबर थाने का एसएचओ सतीश और एएसआई विजेंद्र महिला के पति के घर गए, उसे धमकाया और मामला निपटा देने के लिए दो लाख रुपए मांगे। शिकायकर्ता जब बाद में साइबर थाने गया, तब भी उससे रकम की मांग की गई। बीस हजार रुपए पुलिसकर्मियों को शिकायतकर्ता ने दे भी दिए।
शिकायकर्ता ने वरिष्ठ पुलिस अफसर को इस मामले की शिकायत की। शिकायत के साथ उसने ऑडियो रिकार्डिंग आदि भी दी।
पीजी सेल के एसीपी ने मामले की जांच की, जिसमें आरोप सही पाए गए।
साढ़े आठ करोड़ वसूलने वाला एसएचओ-
6 जुलाई 2022 को दक्षिण पश्चिम जिला के साइबर थाने के एसएचओ संजय गाड़े को निलंबित किया गया था। उस पर साढ़े आठ करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप है। मुंबई के एक व्यक्ति पर साइबर ठगी के आरोप लगने पर उसके बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था। खातों में करोड़ों रुपए हैं। खातों से रोक हटवाने और मुकदमे में बचाने के लिए यह रकम ली गई।
दो करोड़ डकारने वाला एसएचओ-
7 जून 2022 को पटेल नगर थाना के एसएचओ भरत सिंह समेत तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ सरकारी संपति के गबन/ अमानत में ख्यानत का मामला धारा 409 के तहत दर्ज किया गया। भरत सिंह को दो महीने पहले ही पहली बार एस एच ओ बनाया गया था।
5.50 करोड़ बरामद –
आरोप है कि पीसीआर पर तैनात पटेल नगर थाने के एएसआई दानवीर और सिपाही कुलदीप ने दो लोगों से हवाला के साढे 5 करोड़ रुपए पकड़े थे। पुलिसकर्मियों ने एस एच ओ को सूचना दी। एसएचओ मौके पर गया और रकम से भरा एक बैग अपनी कार में रखवा दिया। शेष दो बैग थाने में जमा कर दिए। एसएचओ भरत सिंह ने जब्ती/ बरामदगी तीन करोड़ चालीस लाख रुपए की ही दिखाई। आयकर विभाग को भी इतनी ही रकम के बारे में सूचना दी। दो करोड़ दस लाख रुपए एसएचओ खुद डकार गया। वरिष्ठ पुलिस अफसरों की जानकारी में यह चौंकाने वाली जानकारी आई तो हडकंप मच गया। एसएचओ समेत तीन पुलिसकर्मियों को तुरंत लाइन हाजिर कर जांच शुरु कर दी गई। हडपी गई रकम बरामद कर ली गई।
( लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)