इंद्र वशिष्ठ
सीजीएचएस की त्री नगर स्थित डिस्पेन्सरी में मरीजों के साथ किया जाने वाला अमानवीय व्यवहार फिलहाल लगभग बंद कर दिया गया है।
इस पत्रकार द्वारा अमानवीय व्यवहार का मामला उजागर करने से डाक्टर दीपक गुप्ता बौखला गए हैं। बौखलाए डाक्टर ने मंगलवार को इस पत्रकार से बदतमीजी से बात की और कहा कि अगर मैं चाहता तो, अब तुम्हारे मरीज को भी नहीं देखता। डाक्टर ने कहा कि इस इलाके के लोग ही खराब है। मैं तो यहां आकर पछता रहा हूं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को ऐसे संवेदनहीन डाक्टर के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए।
12 सितंबर 2024 को इस पत्रकार ने डिस्पेन्सरी के डाक्टरों की संवेदनहीनता और अमानवीय व्यवहार को उजागर किया था।
पता चला है कि समाचार /वीडियो वायरल होने के बाद सीजीएचएस के वरिष्ठ अधिकारी डिस्पेन्सरी में आए थे।
उसके बाद से डाक्टर दीपक गुप्ता ने अपने कमरे के अंदर मरीज देखने शुरू कर दिए। लेकिन खिड़की के बाहर स्टूल अभी भी रखा हुआ है। इससे लगता है कि मरीजों को कमरे के बाहर स्टूल पर बिठा कर देखना स्थायी रूप से बंद नहीं किया गया है। वरना स्टूल वहां से हटा दिया जाता।
डाक्टर एसी में, मरीज धूप में
यह मामला उजागर होने से पहले एसी लगे कमरे में बैठे डाक्टर दीपक गुप्ता खिड़की में बनाए गए छोटे से झरोखे से बाहर बैठे मरीजों को देखते थे। यानी मरीजों को डाक्टर अपने कमरे के अंदर अपने निकट बिठा कर नहीं देखता। डाक्टर अपने कमरे की खिड़की के बाहर रखे स्टूल पर धूप में बिठा कर मरीज़ को देखते थे। दरअसल कोरोना काल के दौरान यह व्यवस्था की गई थी। लेकिन इस डिस्पेन्सरी में अभी तक यह व्यवस्था जारी थी।
इस डिस्पेन्सरी में दो डाक्टर तैनात हैं डाक्टर सरिता पंवार और डाक्टर दीपक गुप्ता। डाक्टर सरिता पंवार इंचार्ज है। डाक्टर सरिता बहुत कम मरीजों को देखती हैं।
सीजीएचएस के अधिकारी अगर रिकॉर्ड की जांच करें तो, आसानी से यह पता चल जाएगा, कि डाक्टर सरिता और डाक्टर दीपक गुप्ता रोजाना औसतन कुल कितने- कितने मरीजों को देखते हैं। हालांकि डाक्टर सरिता अपने कमरे में ही मरीज को देखती है।
इस डिस्पेन्सरी में इंडेंट वाली दवा सिर्फ बारह बजे तक ही दी जाती है। जबकि अन्य सभी डिस्पेन्सरी में पौने दो बजे तक इंडेंट वाली दवा दी जाती है। डिस्पेन्सरी में मंगलवार को इस पत्रकार के सामने अनेक मरीजों ने यह बात भी उठाई।
संवेदनशील डाक्टर की जरुरत
इस डिस्पेन्सरी में पर्याप्त स्थान उपलब्ध है लेकिन डाक्टर यह जताते है कि स्थान कम है इसलिए डिस्पेन्सरी को यहां से शिफ़्ट कर दिया जाए। जबकि समस्या की असली जड़ तो संवेदनहीन डाक्टर है। दरअसल डिस्पेन्सरी में संवेदनशील डाक्टरों की जरुरत है।
सच्चाई यह है कि डाक्टर के ख़िलाफ़ शिकायत करने पर वह उन्हें दवा आदि देने में परेशान करेगा, इस डर से लोग डाक्टर की शिकायत नहीं करते हैं।