ओम प्रकाश उनियाल
कहने को तो नए साल का आगमन हो चुका है नयी उम्मीदों, नए संकल्पों के ताने-बानों के साथ। वैसे हिन्दुओं का नया साल इसे नहीं माना जाता। या यूं कहिए थोपा हुआ नया साल। लेकिन जश्न मनाने में और शुभकामनाएं, बधाईयां परोसने में कोई भी पीछे नहीं रहता। सोशल मीडिया का जमाना जो ठहरा। घर बैठे-बैठे जानी-अनजानी बधाईयों, शुभकामनाओं से दूर संचार चलित यंत्र का भी बोझ बढ़ जाता है। वैसे तो आजकल गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग, गुड नाइट का भी जमकर प्रचलन चला हुआ है। साथ ही उपदेशात्मक संदेशों का भी। बेशक, संदेश भेजने वाले खुद इन उपदेशों का अनुपालन न करते हों लेकिन दूसरों को इनके माध्यम से नसीहत जरूर दे ही देते हैं।
पाश्चात्य संस्कृति का जो जुनून या फितूर हमारे दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है उससे दूर रहने का संकल्प हम नहीं ले पा रहे हैं? साल दर साल बीतते जा रहे हैं। भारतीयता का चोला हमने ओढ़ा हुआ है मगर देखादेखी पश्चिमी देशों की कर रहे हैं। खान-पान, वेशभूषा से लेकर भाषा और संस्कृति उनकी अपना रहे हैं। न जाने हम यह क्यों भूल रहे हैं कि भारत एक दर्शन है, आत्मीयता का प्रतीक है। वेदों, पुराणों की भूमि है भारत। जब तक हम इसे गहराई से समझने का प्रयास नहीं करेंगे तब तक इसकी अहमियत भी नहीं जान पाएंगे। नया साल जिस तरह से आया उसी तरह गुजर भी जाएगा। हम कल्पनाओं में ही खोए रहेंगे अपनी सोच को बदलने के सपने देखकर।
अभी भी वक्त है जागने का। जो संकल्प हमने लिए हैं उन्हें पूरा करो। हमारी सोच बदलेगी नए राष्ट्र का उद्भव होगा। आपसी वैर-भाव, राग-द्वैष से मुक्ति मिलेगी। सबके सपने साकार होंगे। हर तरफ खुशहाली, सुख-शांति और समृद्धि की बयार बहेगी।