बिहार 2025: चाणक्य की जीत, महागठबंधन की करारी हार
विवेक शुक्ला
बिहार विधान सभा के नतीजे आने के बाद से ही केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राजधानी दिल्ली स्थित आवास में राज्य की नई सरकार के गठन के सवाल पर एनडीए के नेताओं के बीच बैठकों के दौर जारी हैं। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार 20 नवंबर पदभार संभाल लेगी। पर बिहार विधान सभा के चुनाव परिणाम पर भी कुछ समय तक और बहस जारी रहने वाली है। अब मुख्य रूप से इस मुद्दे पर बहस हो रही है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने किसी का भी चुनाव जीतना अब नामुमकिन है? ज्यादातर राजनीतिक पंडितों की राय यह बन रही है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को हराना नामुमकिन नहीं भी है तो यह मुश्किल जरूर है।
एक बात साफ है कि भाजपा के लिए चुनाव तैयारी कोई पार्ट टाइम गेम नहीं है, बल्कि यह जनता से जुड़े रहने और मुद्दों के आसपास पार्टी को तैयार रखने का सतत अभियान है। भाजपा की जिस चुनावी रणनीति का लोग आज लोहा मान रहे हैं, उसे विकसित करने और उसकी धार बनाए रखने की जिम्मेदारी स्वयं गृह मंत्री अमित शाह निभाते हैं। बिहार में महागठबंधन के नेताओं जैसे राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, प्रियंका गांधी और अन्य नेता जनता को अपने साथ जोड़ने में एक सिरे से विफल रहे। राहुल गांधी तो वोट चोरी के आरोप लगाने के अलावा अब सब कुछ भूल गए हैं। अगर उनके पास कोई ठोस सुबूत हैं तो वे कोर्ट में क्यों जाते। पहले वे ईवीएम में गड़बड़ी का रोना रोते थे।
बहरहाल, बिहार में भी एनडीए की इस चुनावी जीत के सूत्रधार अमित शाह बने हैं, जिन्होंने महागठबंधन के किसी भी पैतरे को चलने नहीं दिया और राहुल- तेजस्वी की जोड़ी को करारी शिकस्त दे दी। 2010 के बाद भाजपा फिर से 90 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट के साथ 89 सीटें जितने में कामयाब रही और इस बार बिहार विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी भी बन गई। जबकि कांग्रेस के लिए चुनाव परिणाम शर्मनाक स्तर का है और आरजेडी 2010 की स्थिति में पहुंच गई है।
बीजेपी नेतृत्व को बिहार की नब्ज पर का अंदाज था। खास कर अमित शाह ने अपनी तीन महीने की धुआंधार दौरे से यह अंदाज लगा लिया था कि जनता क्या चाहती है और उसी के अनुसार जब केंद्र और राज्य सरकार ने बिहार की जनता की अपेक्षाओं को पूर्ण करने का काम पूरा किया, तो जनता गदगद हो उठी। अमित शाह पहले नेता थे जिन्होंने एक चुनावी रैली में ही यह ऐलान कर दिया था कि इस बार एनडीए 160 से ज़्यादा सीटें जीतेगा और बिहार में सरकार बनाएगा। फिर अंतिम चरण के मतदान से कुछ ही दिन पहले एक रैली में, शाह ने फिर घोषणा की कि 14 नवंबर राजद और कांग्रेस परिवारों के राजनीतिक सफाए का दिन होगा।
यदि अमित शाह ने चुनावी सफलता का कोई रिकार्ड बनाया है, तो इसके पीछे उनका अनथक परिश्रम है। पार्टी में रणनीति और उस पर क्रियान्वयन के लिए पूरी तरह से समर्पित कार्यकर्ताओं के निर्माण की एक बड़ी प्रक्रिया है। अमित शाह न सिर्फ इस प्रक्रिया के निर्माण और संचालन की जिम्मेदारी उठाते हैं, बल्कि कार्यकर्त्ताओं और निचले स्तर पर काम कर रहे भाजपा नेताओं और गठबंधन सहयोगियों में विश्वास का भाव भी पैदा करते हैं। वह खुद को भी पूरी तरह झोंक डालते हैं। दूसरी तरफ राहुल और तेजस्वी अकेले चने की तरह भाड़ फोड़ने में लगे थे। काँग्रेस की तरफ से प्रियंका के अलावा किसी बड़े नेता की उपस्थिति महसूस ही नहीं की गई और तेजस्वी अपने घर दे असंतोष को भी खत्म नहीं कर सके।
अमित शाह ने स्वयं बिहार में 35 रैलियों को संबोधित किया और एक बड़े रोड शो का नेतृत्व किया। वह केवल भाषणों और रैलियों तक खुद को सीमित नहीं करते, बल्कि बूथ स्तर तक अपनी उपस्थिति बनाए रखंते हैं। इससे पार्टी के साथ कार्यकर्ताओं का एक मज़बूत जुड़ाव होता है और फिर बूथ कार्यकर्ता भी अधिकतम वोट हासिल करने के लिए भरपूर मेहनत करता है। कांग्रेस का संगठन बिहार में भी गायब है और केवल गाली गलौच की सुर्खियों तक ही सीमित है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 243 सीटों वाली विधानसभा में एनडीए ने 202 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन मात्र 35 सीटों पर सिमट गया। यह जीत न केवल नीतीश कुमार के सुशासन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल की मुहर थी, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति और संगठनात्मक कौशल का भी परिणाम थी। अमित शाह को भाजपा का ‘चाणक्य’ कहा जाता है, और बिहार में उनकी भूमिका निर्णायक साबित हुई।
चुनाव से पहले बिहार की राजनीति जटिल थी। नीतीश कुमार की जद(यू) और भाजपा के बीच गठबंधन मजबूत था, लेकिन टिकट वितरण के दौरान असंतोष की लहर दौड़ गई। कई नेता बागी हो गए और विरोधी दलों में जाने की धमकी देने लगे। अमित शाह ने व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप किया। उन्होंने लगातार 72 घंटे तक असंतोषी नेताओं से बातचीत की, फोन पर मनाया और समझौते किए। सूत्रों के अनुसार, करीब 100 से अधिक बागियों को शाह की मध्यस्थता से मनाया गया, जिससे गठबंधन टूटने से बच गया। यह माइक्रो-मैनेजमेंट एनडीए की एकजुटता का आधार बना।
शाह की रणनीति ‘पंचतंत्र’ के रूप में चर्चित हुई। पहला, जातीय समीकरणों का सूक्ष्म विश्लेषण: हर सीट पर जाति आधारित उम्मीदवार चयन, जिसमें गठबंधन की सीटों पर भी भाजपा की सलाह मान्य हुई। दूसरा, बूथ स्तर तक संगठन मजबूत करना: एनडीए कार्यकर्ताओं की संयुक्त सम्मेलन और प्रवासी मजदूरों को मतदान के लिए रोकने की योजना। तीसरा, मनोवैज्ञानिक युद्ध: शाह ने चुनाव से पहले ही 160+ सीटों की भविष्यवाणी की, जो सटीक साबित हुई और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरा। चौथा, घुसपैठियों और जंगलराज के मुद्दे को उछालना, जिससे हिंदू वोट एकजुट हुआ। पांचवां, महिला कल्याण योजनाओं (जैसे नकद हस्तांतरण) को हाइलाइट कर महिलाओं को वोट बैंक बनाना।
अमित शाह ने बिहार में 19 दिन बिताए, कार्यकर्ताओं से सीधी मुलाकात की और गठबंधन सहयोगियों (जदयू, लोजपा-रामविलास) के बीच मतभेद दूर किए। चिराग पासवान और नीतीश कुमार के बीच तनाव को शाह ने ही सुलझाया। परिणामस्वरूप, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, जद(यू) ने बेहतरीन स्ट्राइक रेट हासिल किया। शाह की संगठनात्मक कुशलता ने एंटी-इनकंबेंसी को भी हराया।
जीत के बाद शाह ने कहा कि यह जनादेश विकास, महिलाओं की सुरक्षा, सुशासन और गरीब कल्याण पर मुहर है। जंगलराज और तुष्टीकरण की राजनीति को बिहार ने नकार दिया। विपक्ष के ‘वोट चोरी’ आरोपों को खारिज करते हुए शाह ने मतदाता सूची शुद्धिकरण को राष्ट्रव्यापी मूड बताया।
संक्षेप में, अमित शाह की दूरदर्शी रणनीति, असंतोष प्रबंधन और माइक्रो-प्लानिंग ने एनडीए को असंभव लग रही जीत दिलाई। यह जीत भाजपा की बिहार में मजबूती और शाह के चुनावी मास्टरमाइंड की मिसाल है। बिहार 2025 ने साबित किया कि संगठन और रणनीति से कोई भी चुनौती पार की जा सकती है।





