निर्मल रानी
कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध जंतर मंतर पर क़रीब चालीस दिनों तक चला पहलवानों का धरना फ़िलहाल उनकी ओर से 15 जून तक स्थगित किया गया है। केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से हुई बातचीत व न्याय मिलने की आश्वासन के बाद ही यौन शोषण से पीड़ित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पदक विजेता पहलवानों ने अपना धरना प्रदर्शन टाल दिया था। परन्तु 15 जून से पहले यानी अपने ऊपर लगे पाक्सो एक्ट व यौन शोषण के आरोपों में अपनी संभावित गिरफ़्तारी अथवा अदालत में आरोप पत्र दाख़िल होने की संभावनाओं के बीच सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने गत 11 जून (रविवार ) को ही अपने गृह नगर गोंडा में अपने समर्थकों की एक विशाल रैली निकाली और जनसभा को सम्बोधित किया। इस रैली में हज़ारों पुरुषों के साथ साथ बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी हिस्सा लिया। निश्चित रूप से उनका यह शक्ति प्रदर्शन सरकार को अपनी ताक़त का अंदाज़ा कराने के लिये ही किया गया था। परन्तु आश्चर्यजनक बात यह रही कि बृजभूषण सिंह ने अपने सम्बोधन में अपने ऊपर लगे आरोपों व उनके विरुद्ध हुई पुलिस प्राथमिकी आदि किसी भी बात का ज़िक्र नहीं किया। हाँ उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत शेर ओ शायरी से करते हुये यह चार पंक्तियाँ ज़रूर पेश कीं। उन्हींने पढ़ा कि – ‘कभी अश्क, कभी ग़म, कभी ज़हर पिया जाता है तब कहीं जाके ज़माने में जिया जाता है। ये मिला मुझको मुहब्बत का सिला -बेवफ़ा कहके मेरा नाम लिया जाता है। इसको रुसवाई कहें कि शोहरत अपनी, दबे होठों से मेरा नाम लिया जाता है। ‘
जिस समय ‘माननीय ‘ सांसद बृजभूषण शरण सिंह यह शायरी पेश कर रहे थे उस समय उनका शारीरिक हाव भाव व आत्मविश्वास तथा उनकी हंसी का अंदाज़ देखने लायक़ था। सीधे शब्दों में क़ानून,पुलिस,सरकार और अपने ऊपर लगे सभी गंभीर आरोपों को धत्ता बताने वाला। उनकी इस शायरी का मतलब राजनैतिक तो क़तई नहीं था। हाँ इसमें आशिक़ाना अंदाज़ ज़रूर था। अब ज़रा उनकी जुरअत देखिये कि एक तरफ़ तो उनके कथित ‘प्रकोप ‘ से पीड़ित देश की शान महिला पहलवान अपनी इज़्ज़त आबरू को आहत करने वाले इसी सांसद के विरुद्ध कार्रवाही की मांग कर रही हैं तो दूसरी तरफ़ यही ‘माननीय ‘ अपने समर्थकों के बीच बेहयाई वाली हंसी हँसते हुये शेर पेश कर रहे हैं कि- ‘इसको रुसवाई कहें कि शोहरत अपनी, दबे होठों से मेरा नाम लिया जाता है। ‘ ? इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने यह घोषणा भी की कि वे अगला लोकसभा चुनाव भी क़ैसर गंज क्षेत्र से ही लड़ेंगे। जबकि अभी न तो चुनाव घोषित हुये हैं न ही प्रत्याशी ? आख़िर भाजपा संसदीय बोर्ड के इस सम्बन्ध में लिये गये किसी फ़ैसले से पहले ही बृज भूषण सिंह ने पूरे दावे व आत्मविश्वास के साथ कैसे कह दिया कि वे अगला लोकसभा चुनाव भी क़ैसर गंज क्षेत्र से ही लड़ेंगे ? और उनके इस तरह की घोषणा के बाद पार्टी की तरफ़ से भी कोई खंडन या स्पष्टीकरण जारी क्यों नहीं किया गया? क्या इसका यह मतलब नहीं कि पार्टी की इतनी बदनामी करने के बावजूद अब भी पार्टी बृजभूषण शरण सिंह के प्रति नरम रुख़ रखती है ? पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों को लेकर तो उन्होंने कुछ नहीं कहा। परन्तु उन्होंने अपने संबोधन का समापन रामचरितमानस की चौपाई और जय श्रीराम के नारे से ज़रूर किया। उन्होंने अपने संबोधन के अंत में रामचरितमानस की यह चौपाई सुनाई – ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा,को करि तर्क बढ़ावै साखा’।
गोंडा में 11 जून को बुलाई गयी बृजभूषण शरण सिंह समर्थकों की रैली में कुछ ऐसी बातें भी सुनी गयीं जिनकी किसी सम्मानित,सभ्य व नैतिकता पूर्ण समाज में उम्मीद नहीं की जा सकती। चूँकि ‘माननीय’ सांसद पर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोप हैं इसलिये रैली में मौजूद मीडियाकर्मियों ने रैली समापन के बाद सांसद समर्थक कुछ महिलाओं से भी बात की। ज़रा एक महिला का जवाब सुनिये और ख़ुद अंदाज़ा लगाइये कि हमारा देश और समाज किधर जा रहा है। जब मीडया ने बृजभूषण शरण सिंह समर्थक एक महिला से उनपर लगे आरोपों के बारे में पूछा तो उसने पूरे आत्म विश्वास से कहा कि – ‘ये बताइये की महिला पहलवान जो हैं ,उनसे क्या हम लोग बेकार हैं ?कहने की बात तो यह है ,क्या बुरे हैं ?क्या हम लोगों को आधी रात को वे बुला नहीं सकते ?हमारे पास तो कोई पावर ऑफ़ एटॉर्नी नहीं है हम कुछ भी उनके ऊपर ख़िलाफ़त नहीं कर सकते हैं ,क्या हम को वह रात में नहीं बुला सकते ?क्या हमारे साथ यौन शोषण नहीं कर सकते थे। लेकिन हमारे साथ उन्होंने नहीं किया ,अपनी जनता के साथ उन्होंने कभी नहीं किया। मोदी जी और सांसद जी के नेतृत्व में यूपी में जो विकास हो रहा है उसमें सब को साथ देना चाहिये’। यह नज़रिया है एक महिला समर्थक का। अब रैली में आये एक पुरुष समर्थक की भी सुनिये। वह कहता है कि – ‘सांसद जी अगर महिला प्रेमी होते,यौन शोषण करते होते ,तो पहले उन महिला पहलवानों की शक्ल देखिये ,यहाँ एक से एक सुंदरियाँ पड़ी हैं।,सांसद जी को क्या किसी की कमी है? यह है एक यौन शोषण और दर्जनों जघन्य अपराधों में लिप्त एक बाहुबली सांसद के समर्थकों के ‘उच्च विचार’।
अब ज़रा देश में इंसाफ़ की बानगी देखिये कि एक तरफ़ तो पीड़ित व दुखी महिला पहलवान को देश के प्रधानमंत्री से इस बात की शिकायत है कि जिन्होंने मेडल आने पर इतना मान सम्मान दिया था, घर बुलाया था और अब वो इस बारे में बात ही नहीं कर रहे हैं। पीड़िता पहलवान साक्षी मालिक से जब पुछा गया कि पाँच महीने से चल रहे उनके आंदोलन पर प्रधानमंत्री मोदी से वह क्या कहना चाहती हैं, तो साक्षी ने कहा कि हमसे अभी इस टॉपिक पर कोई बात ही नहीं की जो कि एक बहुत सेन्सिटिव मुद्दा है, और हम सब तो उनसे पर्सनली मिले भी हैं, उनके साथ लंच किया है, बेटी बुलाते हैं वो हमें, तो यही कहना चाहूँगी कि हमारे मुद्दे को वो अपने संज्ञान में लें.”। जब साक्षी से पुछा गया कि प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी क्या चोट देती है? ये पूछने पर साक्षी बोलीं, “चोट तो देती ही है, 40 दिन के लगभग हम रोड पर थे तब तक भी कुछ नहीं था। जब प्रोटेस्ट किया तब भी कुछ नहीं था जबकि उनको सब पता है कि हम किस चीज़ के बारे में प्रोटेस्ट कर रहे हैं। ” अन्तर्राष्ट्रीय पदक विजेता पहलवानों के साथ हुये कथित यौन शोषण मामले में पीड़िताओं की न्याय की आस के मध्य आरोपी के समर्थकों के अविश्वसनीय ‘कुतर्क और आरोपी के बुलंद हौसले यह सोचने के लिये विवश करते हैं कि क्या हमारे देश में न्याय और नैतिकता दोनों पर ही ग्रहण लगता जा रहा है?