फ़्रांस में मैक्रो सरकार संकट में, भारत के सामरिक रिश्ते क़ायम रहेंगे?

In the macro government crisis in France, will India's strategic relations survive?

ललित मोहन बंसल

‘आ बैल मुझे मार’, वाली कहावत फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो के लिए ‘जी का जंजाल’ बन गई है। मैक्रो ने यूरोप में दक्षिणपंथी ताक़तों के उभरने से ‘भयभीत’ निर्धारित समय से तीन वर्ष पूर्व मई, 2024 में चुनाव कराने की घोषणा कर दी। कहा यह जा रहा है कि वह फ़्रांस में अपने मध्य मार्गी पक्ष को पुष्ट करना चाहते थे। उन्हें यह भली भाँति मालूम है कि फ़्रांस की इकानमी, भारत से दो पायदान नीचे, बुरे दौर से गुजर रही है, विनियोजन घट रहा है, बेरोज़गारी चरम पर है, महंगाई पर अंकुश नहीं हो पा रहा है, ऊर्जा की दरें आसमान छू रही हैं और व्यापार बढ़ नहीं रहा है। ऐसे में ‘आम आदमी पार्टी’ की तर्ज़ पर फ़्रांस में समाजवादी और साम्यवादी समूहों ने रातों रात ‘’न्यू पॉपुलर फ़्रंट’’ के नाम से एक नई पार्टी खड़ी कर दी। इस पार्टी के नेताओं ने कथित ‘बाहरी ताकतों’ की मदद से देर रात तक जन सभाएँ की, रेवड़ियों की बौछार लगाई। रविवार, सात जुलाई को चुनाव के दूसरे चरण की पहली रात दक्षिण पश्चिम फ़्रांस में ऐसी अनेक जनसभाएँ की गईं। इनमें राष्ट्रपति मैक्रो की नीतियों और वादों के विरुद्ध घोषणाएँ की गईं। इनमें बेरोज़गारी को मिटाने, न्यूनतम मज़दूरी और भत्ते दिलवाने, ऊर्जा सहित महंगाई दूर करने तथा एक बड़े मुद्दे में पेंशनभोगी मज़दूरों और कामगारों की बढ़ी हुई आयु सीमा कम करने का वादा किया गया। इनका असर हुआ।

जानते हैं, इसके अगले दिन रविवार सात जुलाई को मतदान के बाद रात में क्या परिणाम आये? यूरोप में अपनी प्रतिष्ठा को चार चाँद लगाने को आतुर राष्ट्रपति मैक्रो की मध्य मार्गी ‘’एन्सेंबल एलाएंस’’ (163) नई नवेली कट्टरपंथी वाम मार्गी ‘न्यू पॉपुलर फ़्रंट’ (182) के बाद दूसरे स्थान पर सिमट गई। उल्लेखनीय है कि पहले दौर में अप्रत्याशित रूप से आगे चल रही कट्टरपंथी दक्षिण पार्टियों के समूह ‘’नेशनल रैली’’ ( 143) ने पिछले चुनाव की तुलना में 54 सीटें अधिक जीतीं। इसमें सर्वाधिक क्षति राष्ट्रपति मैक्रो की ’एन्सेंबल एलाएंस’’ की हुई। मैक्रो की सत्तानशी ‘’एन्सेंबल एलाएंस’’ दो पार्टियों के बीच ‘सैंडविच’ बन कर रह गई है।

दक्षिणपंथी पहले दौर में जीत कर क्यों पिछड़ गये?

यूरोप में जर्मनी और स्पेन के निशाने पर दक्षिणपंथी ‘’नेशनल रैली’’ को पहले दौर के चुनाव मतदान में किंचित् बढ़त मिली थी। कहते हैं कि इसके बाद दक्षिण पंथी ‘नेशनल रैली’ विदेशी ताक़तों के निशाने पर आ गई। उन्हें पहले दौर की अप्रत्याशित सफलता का ख़ामियाजा भुगतना पड़ा। और रविवार, 7 जुलाई को दूसरे दौर में पासा पलट गया। अब स्थिति यह है कि इस चुनाव में किसी भी फ़्रंट को 577 सदस्यीय सदन में से 289 का स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। फ़्रांस अब ‘हंग पार्लियामेंट’ की स्थिति में है। वैधानिक स्थिति यह है कि किसी भी फ़्रंट को बहुमत नहीं मिलने के बावजूद वह बारह महीनों के बीच दोबारा चुनाव नहीं करा सकते। राष्ट्रपति मैक्रो को अगले दस दिनों में सर्वाधिक सीट जीतने वाले फ़्रंट ‘न्यू पॉपुलर फ़्रंट’ के नेता को प्रधान मंत्री पद के लिए आमंत्रित करना होगा। मैक्रो के सम्मुख दूसरी चुनौती यह है कि उन्हें फिर से सत्ता में काबिज होने और राष्ट्रपति चुनाव में खड़ा होने के लिए तीन वर्ष बाद 2027 में भाग्य आज़माना है। एक तो आर्थिक स्थिति डग-मग है। दूसरे, पेरिस में 26 जुलाई से ओलंपिक खेलकूद होने हैं। राष्ट्रपति मैक्रो नहीं चाहेंगे कि विश्व समुदाय के समुख वह हास्य के पात्र बने।

क्या मेलेंचोन को प्रधान मंत्री के रूप में आमंत्रण देंगे?

यही स्थिति भारत में ‘दक्षिणपंथी’ भाजपा के विरुद्ध ‘इंडिक समूह’ के सामने भी आई थी। उस समय इंडिक एक सर्वमान्य नेता के चयन में विफल रहा। फ़्रांस में यह क़यास लगाया ही नहीं गया था कि आनन फ़ानन में बने ‘’न्यू पॉपुलर फ़्रंट’’ में किसी एक सर्वमान्य नेता का चयन हो। अभी प्रधान मंत्री के दावेदार के रूप में जीन-लुक मेलेनचो का नाम खुल कर सामने आ रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति से माँग की है कि संविधानिक स्थिति के अनुरूप सबसे बड़े दल के नेता को प्रधान मंत्री के रूप में मनोनीत करने के लिए निमंत्रण देना चाहिए। लेकिन दक्षिणपंथी नेशनल रैली के युवा नेता जॉर्डन बार्डेला ने कहा है कि अब फ़्रांस अनिश्चितता और अस्थिरता के दौर में पहुँच गया है। ऐसी स्थिति में कट्टरपंथी वामदलों के साथ काम करना मुमकिन नहीं है। यही बात राष्ट्रपति मैक्रो की पार्टी के नेताओं ने भी कहा है कि कट्टरपंथी वामपंथी दलों के समूह के साथ काम करना सहज नहीं है। स्थिति यह भी है कि न्यू पॉपुलर फ़्रंट की रचना ही चुनाव की घोषणा के बाद हुई है। तब इनमें से किसी एक सर्वमान्य नेता का चयन नहीं हो पाया था।

अड़चनें और मुद्दे क्या हैं?

न्यू पॉपुलर फ़्रंट की नीतियाँ और मुद्दे ऐसे हैं कि फ़्रांस की निर्धन और मेहनतकश जनता ने बड़ी बड़ी पंक्तियों में घंटों खड़े हो कर वोट दिया। इस फ़्रंट ने न्यूनतम मज़दूरी देने, आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतें निर्धारित करने, मैक्रो की कथित पेंशन स्कीम में आयु सीमा बढ़ाए जाने और तत्काल फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता दिलाई जाने के साथ साथ गाजा में इज़राइल-हमास के बीच युद्ध बंद कराए जाने का भरोसा दिलाया था।

यहाँ दक्षिणपंथी पार्टियों के समूह की नेता मैरेन ले पेन की माने तो इस चुनाव को वस्तुत: राष्ट्रपति चुनाव (2027) का सेमीफ़ाइनल मानना अधिक उपयुक्त होगा। उनका स्पष्ट मत है कि देश के परम्परागत मूल्यों की रक्षा करने के लिए उनकी पार्टी का गठन उनके पिता जीन मैरी ले पेन ने किया था। वह आव्रजन के सख़्त ख़िलाफ़ थे। इस पर उनके विचारों को दक़ियानूसी और प्रगतिशील समाज में बाधक बताया गया। इसके बाद उनकी बेटी मैरीन ले पेन ने मोर्चा सँभाला और एक 28 वर्षीय तेज तर्रार जॉर्डन बार्डेला के साथ मिल कर प्रचार का बीड़ा उठाया। सन् 2017 में आठ, 2022 में 89 और अब (2024) में उन्होंने 132-152 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था। ले पेन की माने तो आगामी राष्ट्रपति चुनाव रुचिकर होगा। इसके ठीक विपरीत जर्मनी के और स्पेन के पेड्रो साँचेज राष्ट्रध्यक्षों ने टिप्पणी की है कि बेहतर हुआ कि दक्षिणपंथी पार्टियों का समूह सत्ता में नहीं आया।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति निवास ‘ऐलिस पैलेस’ के सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि जनता के विश्वास मत की हरसंभाव कदर की जाएगी। मैक्रो के सम्मुख सोमवार की सुबह अपने पद से त्यागपत्र देने आये मौजूदा प्रधान मंत्री गैब्रियल अटल ने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र थमाया तो उन्होंने फ़िलहाल लेने से इनकार कर दिया। ये गैब्रियल अटल भी मैक्रो की ही पार्टी से हैं। पेच यहाँ यह है कि फ़्रांसीसी संसद में जो तीन ब्लॉक उभर कर आये हैं, उनमें से किसी के पास भी 289 अर्थात् बहुमत नहीं है। यहाँ का विधान भी एक दूसरे में विलय अथवा ख़रीददारी के लिए अनुमति नहीं देता, अर्थात् संसद तो हंग होगी ही, इसके भविष्य को लेकर भी चिंताएँ उभर कर आना सहज है। हालाँकि एक पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकोइस हॉलेंडे (2012-2017) सांसद का चुनाव जीत गये हैं।

दक्षिण पश्चिम से डेमोक्रेटिक मध्यमार्ग मूवमेंट के नेता और महापौर पौ फ्रैंकोइस बायरू कहते हैं,’’ कट्टरपंथी वामपंथी और कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों के मिलन के बिना भी बहुमत साबित किया जा सकता है, लेकिन कट्टर वामपंथी पार्टियों की विचारधारा और अपेक्षाएँ इतनी तीव्र हैं कि ये एक धरातल पर खड़े नहीं हो सकते। इनमें सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट समूह हैं। इनमें फाँस एन्बोड के नेता जीन-लुक मेलेंचोन एक ऐसे विवादास्पद नेता हैं जो अंतर्विरोधों से ग्रस्त हैं।

इसके ठीक विपरीत जर्मनी के और स्पेन के पेड्रो साँचेज राष्ट्रध्यक्षों ने टिप्पणी की है कि बेहतर हुआ कि दक्षिणपंथी पार्टियों का समूह सत्ता में नहीं आया।

भारत के अनन्य मित्र, सामरिक रिश्तेदारी और राफ़ेल की ख़रीदारी में फ़्रांस के राष्ट्रपति इमियुएल मैक्रो के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने यूरोप में तेज़ी से उभर कर आये।

फ़्रांस की इकानमी और भारत से रिश्ते:
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी रुस और आस्ट्रिया के दौरे पर हैं। इंग्लैंड और फ़्रांस में सत्ता में बदलाव और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर इन दिनों जो परिस्थितियों उभर कर आ रही हैं, उन्हें देखते हुए मोदी को एक ग्लोबल नेता के रूप में देखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में दुनिया भर के वैश्विक नियोक्ताओं की निगाहें भारत पर लगी हैं। नियोक्ताओं को क्या चाहिए, एक स्थिर सरकार, कुशल नेतृत्व और सस्ते, मेहनतकश एवं डिजिटल में कुशल श्रम के साथ भरपूर ऊर्जा।

भारत और फ़्रांस के बीच हालाँकि 1998 में द्विपक्षीय रिश्ते सुदृढ़ हुए। फ़्रांस ने भारत के पर्यावरण नियंत्रण और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में हमेशा साथ दिया है। सामरिक रिश्तों के क्षेत्र में सिविल नुक्लियर एनर्जी, डिफ़ेंस और अंतरिक्ष के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग रहा है। इसके अलावा समतल मोडुलर रिएक्टर टेक्नॉलाजी, डिजिटल टेक्नॉलाजी, डिजिटल पब्लिक संरचना, पर्यावरण संतुलन तथा शिक्षा के क्षेत्र में मिलजुल काम कर चुके हैं। वस्तुत: इन का विकास मोदी के कार्यकाल में हुआ और सामरिक रिश्तों की बयार बहने लगी। एक के बाद एक ढेरों वार्ताओं में द्विपक्षीय संबंधों को समधुर बनाने के लिए भू राजनीतिक के क्षेत्र में सुरक्षा और सामयिक ग्लोबल विषयों पर खुल कर चर्चा होने लगी है। इसके लिए फ़्रांस ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कतिपय मुद्दों में भारत का साथ दिया। 2017-2022 कालखंड पर नज़र दौड़ाएँ, तो फ़्रांस भारत का दूसरा बड़ा रक्षात्मक उत्पाद की आपूर्ति में साझीदार बन गया। आज भारत बड़े फ़क्र से दावा कर सकता है कि अमेरिका की अनुपस्थिति में इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र में फ़्रांस की मज़बूत पकड़ के कारण दक्षिण चीन सागर में भारत को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। आज कह सकते हैं कि इस क्षेत्र में यु ए ई आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और जापान के साथ त्रिपक्षीय फ़्रेमवर्क की रचना में ख़ुशगवार परिणाम आये हैं। नई दिल्ली और फ़्रांस के बीच पारस्परिक सूझबूझ का नतीजा है कि दोनों के बीच मल्टी पोलर आर्डर के तहत सामरिक स्वायत्तता:के क्षेत्र में भी गति आई है।

बेशक, फ़्रांस की इकानमी अच्छी स्थिति में नहीं है। सन् 2022 में फ़्रांस अमेरिका, , जापान, जर्मनी, भारत और इंग्लैंड के बाद सातवें स्थान (2.78 ख़रब डालर) पर थी। उसकी 2021 में साढ़े छह प्रतिशत और 2022 में घट कर मात्र ढाई प्रतिशत । 2024 के अंत तक 0.7% से ऊपर जाने की संभावनाएँ हैं। इसके सन् 2025 में बढ़ने के अनुमान हैं। सार्वजनिक ऋण 2025 के आते आते 114 % होने के अनुमान हैं। बेरोज़गारी चरम पर 7.7 प्रतिशत है, जो सन् 2023 से बढ़नी शुरू हुई तो कम होने का नाम नहीं ले रही है।