यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी आलाकमान लोकसभा वाली गलती से बचेगा

In the UP assembly elections, the BJP high command will avoid the Lok Sabha mistake

अजय कुमार

उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति को और मजबूत करने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी आलाकमान अबकी से 2024 के लोकसभा चुनाव की गलती नहीं दोहरायेगी,जब अति आत्मविश्वास में बीजेपी ने उन सांसदों का टिकट नहीं काटा था,जिनसे वोटर नाराज चल रहा था या फिर विवादों में घिरे हुए थे। इसी लिये अबकी बार बीजेपी ने 403 विधानसभा सीटों पर अपने विधायकों और प्रमुख नेताओं के प्रदर्शन का गंभीरता से आकलन शुरू कर दिया है। इस बार पार्टी का लक्ष्य यूपी में हैट्रिक लगाना है, जिसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। इस प्रक्रिया में विधायकों की क्षेत्रीय सक्रियता, जनता से संवाद, विकास कार्यों की प्रगति, बजट उपयोग और उनकी छवि जैसे मापदंडों पर गहन मूल्यांकन किया जा रहा है। खास तौर पर उन विधायकों पर नजर है, जिनसे जनता नाराज है या जो किसी विवाद में फंसे हैं। ऐसे विधायकों के टिकट कटने की संभावना तेज हो गई है, क्योंकि बीजेपी जीत की गारंटी देने वाले उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारना चाहती है।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, विधायकों का यह ऑडिट गोपनीय तरीके से किया जा रहा है। विधायकों को तीन श्रेणियों,ए, बी और सी में बांटा जा रहा है। जिनका प्रदर्शन कमजोर है या जिनकी छवि विवादों से घिरी है, उन्हें सी श्रेणी में रखा जा रहा है, और उनके टिकट कटने का खतरा मंडरा रहा है। जनता की नाराजगी का आलम यह है कि कई क्षेत्रों में लोग अपने विधायकों की अनदेखी और विकास कार्यों में लापरवाही से नाखुश हैं। इसके अलावा, कुछ विधायकों के विवादित बयान और कानूनी मसले भी पार्टी के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। कुछ विधायकों के नाम इस संदर्भ में चर्चा में हैं। बलिया से बीजेपी विधायक आनंद स्वरूप शुक्ला का नाम विवादों से जुड़ा रहा है। उनके कुछ बयानों और स्थानीय स्तर पर जनता से दूरी की शिकायतें सामने आई हैं, जिससे उनकी स्थिति कमजोर मानी जा रही है। इसी तरह, मेरठ के एक विधायक पर भी स्थानीय लोगों ने उपेक्षा का आरोप लगाया है और उनके खिलाफ पार्टी के अंदर भी असंतोष की बातें सामने आ रही हैं।

आलाकमान कमजोर विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रही है,यह जानकारी आते ही कई विधायकों ने जनता से संवाद बढ़ा दिया है। आजकल लखनऊ के एक विधायक योगेष षुक्ल सुबह-सुबह गांव की चौपाल पर चाय की चुस्कियां लेते दिखते हैं, जनता से गप्पे मारते हुए मिल जाते हैं। वहीं, गोरखपुर से विधायक और पूर्व मंत्री फतेह बहादुर ब्रहम भोज तक नहीं छोड़ रहे हैं,इसकी फोटो भी सोषल मीडिया में डालते हैं। तो रात-रात भर कथित तौर पर जनसुनवाई करते रहते रहे हैं। कुछ समय पूर्व फतेह बहादुर ने आरोप लगाया है कि यूपी पुलिस के अधिकारी कुछ माफियाओं के साथ मिलकर उनकी हत्या कराना चाहता है.यह कहकर उन्होंने अपनी ही सरकार की किरकिरी करा दी थी।

कानुपर के विधायक महेष त्रिवेदी भी सोशल मीडिया पर हर दिन फोटो डाल रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने कानपुर में एक सरकारी कर्मचारी को कान पकड़ कर माफी मांगने को मजबूर कर दिया था,यह विधायक नगर आयुक्त को भी मुर्गा बनाने की बात कह चुके हैं। हद तो तब हुई, जब आजमगढ़ के मंत्री राकेश पांडेय ने मुफ्त राशन बांटने का ढोल पीटा, जबकि राशन की दुकान तो पहले से चल रही थी!कहीं मंदिरों में दर्शन, तो कहीं नुक्कड़ सभाओं में बड़े-बड़े वादे। एक विधायक तो पिछले हफ्ते हर गांव में पौधरोपण करवाने पहुंच गए, पर गांव वालों ने पूछ लिया, “साहब, पिछले पांच साल कहां थे? कानपुर की मंत्री प्रतिभा शुक्ला तो अकबरपुर कोतवाली में इंस्पेक्टर के खिलाफ धरने पर बैठ गईं, ताकि जनता को लगे वो उनके हक के लिए लड़ रही हैं। बलिया के विधायक और परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, जो पहले विवादों में रहे, अब अपने क्षेत्र में हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में दिख रहे हैं। हाल ही में एक पुल के उद्घाटन की सूचना न मिलने पर वो नाराज हो गए और अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाई।
गौरतलब हो, बीजेपी ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि पार्टी कमजोर कड़ियों को हटाने में देर नहीं करेगी। दूसरी ओर, विपक्षी दल जैसे समाजवादी पार्टी (सपा) भी इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश में हैं। सपा ने हाल के उपचुनावों में अपने प्रदर्शन को 2027 का सेमीफाइनल मानते हुए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। बीजेपी की इस ऑडिट प्रक्रिया से उन विधायकों में बेचौनी है, जिनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। पार्टी नेतृत्व ने संकेत दिए हैं कि केवल वही उम्मीदवार टिकट पाएंगे, जो जनता की कसौटी पर खरे उतरेंगे और जीत की संभावना को मजबूत करेंगे।
खैर, 2027 का चुनाव बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण होने वाला है, क्योंकि विपक्ष भी ओबीसी और अन्य सामाजिक समीकरणों को भुनाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में, विवादित और अलोकप्रिय विधायकों को हटाकर बीजेपी अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। यह प्रक्रिया न केवल पार्टी की रणनीति को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि यूपी की सियासत में जनता की नाराजगी अब नजरअंदाज नहीं की जा सकती।

खैर, अब जनता भी अब समझने लगी है कि ये सब चुनावी जुगाड़ है। कुछ लोग तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ मुंह चिढ़ाते हुए कहते हैं, “पांच साल बाद याद आया जनता का दुख?” फिर भी, विधायक और मंत्री कोई कसर नहीं छोड़ रहे। अब देखना ये है कि ये हथकंडे कितना रंग लाते हैं। जनता का मूड और आलाकमान का फैसला ही तय करेगा कि कौन पास होता है और कौन फेल!