सुरक्षा बलों में बढ़ता टकराव गहन चिंता का विषय

तनवीर जाफ़री

मणिपुर गत सौ दिनों से भी अधिक समय से हिंसा की आग में झुलस रहा है। हिंसक वारदातों के इस लंबे दौर में हत्याएं ,बलात्कार ,महिलाओं की नग्न परेड,घर व बस्तियां जलाने,बड़ी संख्या में धर्मस्थलों को जलाने जैसी तमाम दुर्भाग्यपूर्ण अपराधिक घटनायें हो चुकी हैं। परन्तु इन सबसे भयावह वारदात है मणिपुर में उन पुलिस व सुरक्षाबलों का विभाजित हो जाना व उनपर पक्षपाती होने का आरोप लगना,जिनपर राज्य में हिंसा को रोकने का ज़िम्मा है । माना जा रहा है कि यदि सुरक्षा बालों में धार्मिक व जातीय आधार पर विभाजन न हुआ होता तो तो राज्य में इतना ख़ून ख़राबा हुआ होता न ही इतनी हिंसक वारदातें हुई होतीं। मणिपुर से इस तरह की ख़बरें हिंसा भड़कने के पहले दौर से ही आनी शुरू हो गयी थीं कि मैतेयी व कुकी समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले राज्य पुलिस के सुरक्षा कर्मियों द्वारा अपने अपने समुदाय के लोगों को सरकारी हथियार बांटे गये। तो कहीं शह पाये हुए इन्हीं उपद्रवियों द्वारा थानों व शस्त्रागारों से हथियार लूट लिये गये। ज़ाहिर है जब उपद्रवियों के हाथों में संगीन सरकारी शस्त्र हों और स्वजातीय पुलिस कर्मियों का भी खुला साथ हो तो हिंसा के तांडव को भला राज्य की कौन से मशीनरी रोक सकती है?

परन्तु जब जब देश के किसी भी राज्य में किसी भी कारणवश हिंसाअत्यधिक बढ़ जाती है या इसकी संभावना होती है और हालात राज्य की पुलिस के नियंत्रण से बाहर प्रतीत होते हैं तो ऐसे में सरकार वहां शांति बहाली के लिये अर्ध सैनिक बल यानी पैरा मिलिट्री फ़ोर्स की टुकड़ियां आवश्यकतानुसार तैनात करती है। यह विश्वास किया जाता है कि अर्ध सैनिक बल निष्पक्ष रूप से कार्य करते हुये अपना कर्तव्यों का पालन करेंगे। अर्ध सैनिक बलों की टुकड़ियां किसी भी राज्य की पुलिस से अधिक प्रशिक्षित व आधुनिक शस्त्रों से लैस होती है। और यदि कहीं यह स्थिति अर्ध सैनिक बलों से भी नियंत्रित होती दिखाई नहीं देती तब वहां या तो सेना तैनात की जाती है या फिर राज्य पुलिस व अर्ध सैनिक बलों को शांति स्थापना के प्रयासों में सेना सहयोग करती है। हमारे देश में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन संचालित होने वाले अर्ध सैनिक बल है- सीमा सुरक्षा बल, जोकि पाकिस्तान व बांग्लादेश से लगनी वाली सीमाओं पर तैनात रहती है। जबकि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सी आई एस एफ़ का काम उद्योग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की सुरक्षा करना होता है। इसी प्रकार केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल अर्थात सी आर पी एफ़ की तैनाती उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में या आम चुनाव में की जाती है। इसी प्रकार भारत-तिब्बत सीमा पुलिस आई टी बी पी को तिब्बत व चीन की सीमा पर लगाया जाता है।

जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अर्थात एन एस जी को आतंकवाद के विरुद्ध होने वाले ऑपरेशंस में इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह सशस्त्र सीमा बल को देश की नेपाल व भूटान से लगी सीमा पर तैनात किया जाता है। अर्धसैनिक बालों की इसी श्रेणी में आने वाले एक प्रमुख सुरक्षा बल का नाम है ‘असम राइफ़ल्स’। लगभग 64 हज़ार जवानों पर आधारित ‘असम राइफ़ल्स’ का प्रशासनिक कार्य केंद्रीय गृह मंत्रालय देखता है जबकि इसका परिचालन रक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है। ‘असम राइफ़ल्स’ के प्रशिक्षण के अनुरूप इसे पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों तथा भारत-म्यांमार सीमा पर तैनात किया गया है। पूर्वोत्तर में पूर्व में भी होने वाली हिंसा या उथल पुथल को नियंत्रित करने में ‘असम राइफ़ल्स’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसे देश के सबसे अच्छे सैन्य सुरक्षा संगठनों में एक माना जाता है।

यही असम राइफ़ल्स पूर्वोत्तर के अशांत राज्य मणिपुर में भी विगत कई वर्षों से तैनात है। प्रशिक्षण के मुताबिक़ इसे मणिपुर के कई क्षेत्रों विशेषकर पर्वतीय इलाक़ों व म्यांमार से लगती सीमा के क्षेत्रों में तैनात किया गया है। उधर मणिपुर पुलिस पक्षपात के आरोपों का सामना कर रही है। कुकी समुदाय का भरोसा मणिपुर पुलिस से पूरी तरह उठ गया है वहीं असम राइफ़ल्स के ऊपर यह समुदाय भरोसा जता रहा है। ठीक इसके विपरीत मैतेयी समुदाय के लोग यहाँ तक कि भारतीय जनता पार्टी के अनेक विधायक व नेता भी मणिपुर के कई अशांत क्षेत्रों में असम राइफ़ल्स की तैनाती का विरोध कर रहे हैं। ग़ौर तलब है कि मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई लोगों की तादाद लगभग 53 प्रतिशत है। और राजनैतिक व आर्थिक रूप से भी मैतेई समुदाय काफ़ी सुदृढ़ स्थिति में है। ये गैर-जनजातीय समुदाय है। इनमें अधिकांशतः हिंदू समुदाय के हैं। जबकि कुकी और नागा समुदाय की कुल आबादी 40 प्रतिशत के क़रीब है। राज्य के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय के ही हैं। स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय के हैं। .

पिछले दिनों मणिपुर के मैतेई समुदाय से संबंधित 31 विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखकर मणिपुर से असम राइफ़ल्स की 9वीं, 22वीं और 37वीं बटालियन को हटाने की मांग की। इन विधायकों ने अपने पत्र में असम राइफ़ल्स की कुछ इकाइयों द्वारा कथित रूप से निभाई गई भूमिकाओं को लेकर चिंता व्यक्त की और उनकी तैनाती को राज्य की एकता के लिए ख़तरा बताया। मणिपुर राज्य की भारतीय जनता पार्टी इकाई ने भी गत 7 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन भेजकर कहा कि ‘राज्य में शांति बनाए रखने में असम राइफ़ल्स की भूमिका की काफ़ी आलोचना हो रही है और सार्वजनिक आक्रोश देखने को मिल रहा है’। भाजपा द्वारा प्रेषित इस ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि ‘असम राइफ़ल्स निष्पक्षता बनाये रखने में असफल रही और जनता ये आरोप लगा रही है कि उनकी भूमिका पक्षपातपूर्ण है जिसमें वो एक समुदाय का समर्थन कर रहे हैं’। दरअसल चूंकि असम राइफ़ल्स की तैनाती लंबे समय से प्रायः पहाड़ी और सीमा से लगते इलाक़े में है और यही कुकी बाहुल्य वाले इलाक़े भी हैं। इसी आधार पर कुकी और असम राइफ़ल्स के बीच घनिष्ठता का आरोप मैतेई समुदाय द्वारा लगाया जा रहा है।

ठीक इसके विपरीत कुकी समुदाय के भी दस विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मणिपुर से असम राइफ़ल्स को न हटाने की अपील की है। कुकी विधायकों ने कहा है की यदि असम राइफ़ल्स को यहां से हटाया गया तो राज्य में कुकी व अन्य आदिवासी समुदाय की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाएगी। असम राइफ़ल्स को मणिपुर से हटाने की भाजपाइयों की मांग के बीच अब यह भी सुनाई देने लगा है कि मणिपुर हिंसा कथित रूप से सीमा पार यानी म्यांमार से प्रायोजित है। इस तरह की ख़बरें असम राइफ़ल्स की दक्षता पर भी सवाल उठाने की ग़रज़ से दुष्प्रचारित की गयी प्रतीत होती हैं। सुरक्षा बंदोबस्त को लेकर राज्य की तस्वीर बिलकुल साफ़ है कि मैतेई समुदाय को राज्य पुलिस पर विश्वास है, असम राइफ़ल्स पर नहीं जबकि कुकी व आदिवासियों को असम राइफ़ल्स पर विश्वास है मणिपुर पुलिस पर नहीं। और मणिपुर में फैली इस व्यापक हिंसा के मध्य इन दोनों ही सुरक्षा संगठनों के बीच टकराव के समाचार भी अब खुलकर सामने आने लगे हैं। उदाहरण के तौर पर मणिपुर पुलिस ने असम राइफ़ल्स के सैनिकों के विरुद्ध बिष्णुपुर ज़िले के फोउगाकचाओ इखाई पुलिस स्टेशन में कथित रूप से काम में बाधा डालने, चोट पहुँचाने की धमकी देने और ग़लत तरीक़े से रोकने की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। प्राथमिकी में आरोपित किया गया है कि ‘असम राइफ़ल्स की 9वीं बटालियन के सैनिकों ने मणिपुर पुलिस के कर्मियों को अपना काम करने से रोका और कथित कुकी उग्रवादियों को सुरक्षित क्षेत्र में भागने का मौक़ा दिया’।

ऐसे में सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन की सरकार के दौर में स्वयं सत्तारूढ़ दल के विधायकों व पार्टी द्वारा असम राइफ़ल्स जैसी देश की सीमाओं की रक्षा करने वाली एजेंसी के प्रति अविश्वास जताना और दूसरे कुकी आदिवासी समाज द्वारा इसी असम राइफ़ल्स के प्रति भरोसा करना और राज्य की उस पुलिस पर अविश्वास जताना जिसपर राज्य भर में शस्त्र बांटने और अपने शस्त्रागारों की रक्षा न कर पाने का भी इलज़ाम है और जो मणिपुर पुलिस सत्तारूढ़ भाजपा की भी ‘पसंदीदा ‘ सुरक्षा एजेंसी है , यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियां आख़िर क्या संकेत देती हैं ? मणिपुर में शांति के प्रयासों के मध्य सुरक्षा बलों के प्रति बढ़ता अविश्वास देश के संघीय ढांचे तथा पुलिस व सुरक्षा बलों के मनोबल के लिहाज़ से चिंतनीय भी है और यह शुभ संकेत भी नहीं है।