मानवीय दखल से बढ़ता पर्यावरण असंतुलन

शिशिर शुक्ला

हाल ही में नेशनल ओशनिक एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के द्वारा दी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, महासागरों के अंदर के तापमान में भी वृद्धि होने लगी है। पिछले वर्ष की तुलना में समुद्र तल के तापमान में 0.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। उपलब्ध प्रमाणिक आंकड़ों के अनुसार समुद्र सतह के ताप में होने वाली इस रिकॉर्ड बढ़ोतरी का कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन है। दिन प्रतिदिन नियंत्रण से बाहर होती जा रही मानवीय गतिविधियों की वजह से आज संपूर्ण पृथ्वी पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु के असंतुलन की मार झेलने को विवश है। महासागरीय तापमान में विगत तीन वर्षों में हुई तीव्र वृद्धि स्पष्ट रूप से संकेत दे रही है कि वैश्विक तापन की समस्या कहीं न कहीं अनियंत्रित रूप ले चुकी है। जहां एक ओर जीवाश्म ईंधन के दहन एवं औद्योगिक इकाइयों के द्वारा बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य ग्रीन हाउस गैसों को पर्यावरण में समाहित किया जा रहा है, वहीं पेड़ पौधों के अनियंत्रित कटान के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभाव को न्यून करने वाले कारक को भी शनैः शनै: समाप्त किया जा रहा है। प्रकृति के साथ मानव की इस छेड़छाड़ का नतीजा विभिन्न आपदाओं के रूप में देखने को मिल रहा है।

एक अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान की रिपोर्ट कहती है कि जलवायु में होने वाले परिवर्तन के कारण सूखा पड़ने की आपदा एक सामान्य घटना में तब्दील होती जा रही है एवं भविष्य में गंभीर एवं आकस्मिक सूखे की समस्या में तेजी आ सकती है। निश्चित रूप से किसी भी आकस्मिक आपदा का पूर्वानुमान लगा पाना भी बहुत कठिन है। आकस्मिक व दीर्घाकालीन सूखे की समस्या के पीछे वर्षा की न्यूनता ही मुख्य रूप से उत्तरदायी है एवं वर्षा न होने के पीछे कहीं न कहीं मानवीय गतिविधियां ही पूर्णरूपेण जिम्मेदार हैं। मनुष्य ने प्रकृतिविरोधी कृत्यों को महज इसलिए अंजाम दिया है ताकि उसका अपना जीवन सुविधामय बन सके। उदाहरणार्थ, वृक्षों के अनियंत्रित कटान के पीछे हमारे कतिपय स्वार्थ निहित हैं, जोकि सम्भवतः अत्यंत तुच्छ स्तर के हैं। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते वक्त हमने दूरदर्शिता एवं विवेक को पूर्णतया दरकिनार कर दिया है। आज का समय मानवीय बुद्धि एवं विवेक से कहीं आगे निकलकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक पहुंच गया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित करने में जो तेजी दिखाई जा रही है वह निस्संदेह कहीं न कहीं मानवीय दायित्वों एवं कर्तव्यों का भार एक मशीन पर डाल देने के लिए है। एक हालिया शोध रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ऐप चैट जीपीटी के द्वारा औसतन एक उपयोगकर्ता के संवाद अर्थात लगभग बीस से पच्चीस प्रश्नोत्तर में पांच सौ मिलीलीटर ताजे पानी की खपत की जाती है। इतनी बड़ी मात्रा में ताजे जल का कृत्रिमता हेतु उपयोग, वह भी तब जबकि हम जल संकट की भीषण समस्या को झेल रहे हैं, निस्संदेह विचारणीय है। विकास का जामा ओढ़कर की जा रही त्वरित एवं अदूरदर्शितापूर्ण मानवीय गतिविधियां वृहद स्तर पर जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण असंतुलन का कारण बन रही हैं। खास बात तो यह है कि पर्यावरण को दिन प्रतिदिन पहुंचने वाली क्षति के प्रति सतर्कता के नाम पर हम पूर्णतया शिथिल हैं।

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 की तुलना में 2022 में संपूर्ण विश्व में कोयले का उपयोग बढ़ा है। और तो और, 14 देश ऐसे हैं जहां नए कोयला संयंत्र स्थापित किए गए हैं। संपूर्ण विश्व इस बात से भलीभांति अवगत है कि ग्लोबल वार्मिंग हेतु सर्वाधिक जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन ही हैं। ऐसी स्थिति में कोयले का इस्तेमाल बढ़ाना निश्चित रूप से एक मूर्खतापूर्ण कदम है। वस्तुतः पर्यावरण असंतुलन एवं जलवायु की अस्थिरता, प्रकृति द्वारा मानवीय कृत्यों के प्रत्युत्तर में उत्पन्न गंभीर चुनौतियां हैं। इनसे निपटने के लिए हमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता को छोड़कर अपनी प्रकृतिप्रदत्त बुद्धिमत्ता का ही सहारा लेना होगा। इस हेतु हमें सर्वप्रथम वनों एवं वृक्षों के अनावश्यक कटान पर पूर्णतया रोक लगानी होगी ताकि कार्बन डाइऑक्साइड के दुष्प्रभाव पर नियंत्रण करने का एक माध्यम मिल सके। द्रुतगति से बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए परंपरागत ऊर्जास्रोतों पर निर्भरता घटानी होगी, साथ ही साथ नवीकरणीय ऊर्जास्रोतों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को निश्चित रूप से बढ़ाना होगा ताकि हम जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता से मुक्त हो सकें। पृथ्वी पर जीवन हेतु अनुकूल दशाओं को जीवित एवं विकसित रखने के लिए मनुष्य को अपनी गतिविधियों पर नियंत्रण के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा।