अजेश कुमार
सुदृढ़ सामुदायिक व्यवस्था विकास की रूपरेखा बनाती है। विकास की इसी व्यवस्था को देखकर लोग सामुदायिकता के तहत काम कर तेजी से आगे की ओर बढ़ रहे हैं। सहकारिता की यह भावना ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी उद्योग में काफी तेजी से बढ़ी है। भारत में डेयरी सहकारिता दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र मे एक महत्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में बढ़ती सहभागिता के कारण ही आज यह कृषि और संबद्ध गतिविधियों से उत्पादन के मूल्य का करीब 17 प्रतिशत है। देश में दुग्ध उत्पादन की मौजूदा स्थिति की बात करें तो आज करीब 7 करोड़ ऐसे ग्रामीण किसान परिवार डेयरी से जुड़े हुए हैं,जिनके पास कुल गायों की 80 प्रतिशत आबादी है। कामकाज करने वाली 70 प्रतिशत महिलाओं का हिस्सा डेयरी व्यवसाय में कार्य कर रहा है। इनमें से अधिकांश महिलाएं सहकारिता को अपनाकर दुग्ध उत्पादन कर देश के आर्थिक विकास में प्रभावी भूमिका निभा रही है।
भारत एक कृृषि प्रधान देश है। या यूॅ कहे कि भारत गांवों में बसता है। गांवों में आजीविका का मुख्य साधन कृषि है,यही कारण है कि भारत हर साल पूरी दुनिया के उत्पादन में करीब 22 फीसदी का योगदान देता है। आज के दौर में जहां खाद्य उत्पादन में लोग लगे हुए हैं वहीं आर्थिक स्थिति सुदृृढ़ करने के लिए आमदनी के दूसरे रास्ते भी तलाशे जा रहे हैं। गांवों में आमदनी के बेहतर रास्ते न होने के कारण लोग दुग्ध उत्पादन की ओर तेजी से बढ़े हैं। अच्छी आय होने के कारण भारत में डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ा है। कृृषि के क्षेत्र में पुरुष वर्ग खेतों में काम कर अन्न उत्पादन में लगा रहता है तो महिलाएं खेती के अलावा पशुपालन में लगकर घर में समृृद्धि लाने में लगी रहती हैं।
भारतीय महिलाओं में बचत की प्रवृृति पाई जाती है। अक्सर देखा जाता है कि महिलाएं कुछ न कुछ करके घर को मजबूत करने में लगी रहती हैं। गांवों में आय के बेहतर रास्ते न होने के कारण महिलाएं दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में लगी हुई हैं। भारतीय कृृषि अनुसंधान परिषद और डीआरडब्ल्यूए की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चलता है कि पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत है। इसी रिपोर्ट के अनुसार,छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश और बिहार में पशुपालन के क्षेत्र में 70 प्रतिशत महिलाएं लगी हुई हैं। पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन में इन महिलाओं की सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है। सहभागिता को अपनाकर महिलाएं न केवल सशक्त हो रही हैं बल्कि देश के आर्थिक ढ़ाचे को भी मजबूत कर रही हैं।
आज के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाआंे के लिए डेयरी आय और रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। बात दुग्ध उत्पादन की करें तो लाखों भारतीय ग्रामीण परिवारों के लिए डेयरी एक सदियों पुरानी परंपरा है। दुग्ध किसी भी अन्य कृषि वस्तु की तुलना में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान देता है। डेयरी दुग्ध बाजार में करीब 84 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दूध विक्रेताओं,मिठाई के दुकानदारों की जीविका चला रहा है। डेयरी उत्पाद पशुधन क्षेत्र के उत्पादन का 70 प्रतिशत है और यह करीब 75 मिलियन महिलाओं और 15 मिलियन पुरुषों को रोजगार प्रदान करता है।
बात डेयरी क्षेत्र की करें तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू से ही ऐसी स्थिति रही है कि महिलाएं पशुपालन के क्षेत्र में हमेशा से ही सक्रिय रही हैं। नेशनल सैंपल सर्वे आॅर्गनाइजेशन के आंकड़ों को देखें तो देश के 23 राज्यों में कृषि,वानिकी और मछली पालन में ग्रामीण महिलाओं का कुल उत्पादन में लगी हुई हैं। दुग्ध उत्पादन में महिलाओं की इसी भूमिका को देखकर आजादी से पहले गुजरात के आणंद में 14 दिसंबर,1946 में एक अमूल डेयरी यानि दुग्ध उत्पाद के सहकारी आंदोलन की शुरुआत की गई थी,जो आज देश का एक विख्यात ब्रांड बन चुका है। सहकारिता के आधार पर संचालित की जाने वाली अमूल डेयरी की स्थापना देशी किसानों को दूध का सही दाम दिलाने और उन्हें शोषण से मुक्त कराने के लिए की गई थी।
बात,दरअसल गुजरात से ही शुरु हुई। उस दौरान गुजरात में केवल एक ही डेयरी थी,पोलसन डेयरी। पोलसन डेयरी की स्थापना 1930 में हुई थी। पोलसन डेयरी,अंग्रेजों और उत्तम श्रेणी के लोगों को दुग्ध उपलब्ध कराने के लिए बहुत प्रख्यात थी,लेकिन यह देशी किसानों के शोषण के लिए भी विख्यात हो चुकी थी। किसानों के शोषण की बात जब वहां के राष्ट्रीय नेता सरदार बल्लभ भाई पटेल को पता चली तो उन्होंने देशी किसानों को शोषण से मुक्त कराने का संकल्प लिया। सरदार पटेल ने उत्तेजित किसानों को साथ में लेकर पोलसन डेयरी के खिलाफ नाॅन-काॅपरेशन आंदोलन चलाकर पोलसन डेयरी को दूध पहुंचाना बंद कराया। देशी किसानों का नुकसान न हो,इसलिए किसानों को सहकारिता के आधार पर एकजुट कर अहमदाबाद से करीब 100 किमी की दूरी पर बसे एक छोटे से गांव आणंद में अमूल ;आणंद सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेडद्ध की स्थापना की।
सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में आणंद में स्थापित अमूल जल्द ही भारत का एक दुग्ध सहकारी आंदोलन बन गया। अमूल का मूल केन्द्र आज भी गुजरात में ही है और आज एक ब्रांड बन चुका है। अमूल को सफल बनाने में महिलाओं की काफी अहम भूमिका मानी जाती है। अमूल आज भी गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड नाम की सहकारी संस्था के प्रबंधन में चल रहा है। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के चलते अमूल किसी सहकारी आंदोलन की दीर्घ अवधि में सफलता का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। अमूल विकासशील देशों में सहकारी उपलब्धि के श्रेष्ठतम उदाहरणों में गिना जाता है। डेयरी यानि दुग्ध उत्पाद के सहकारी आंदोलन का पर्याय बन चुके अमूल ने भारत में श्वेत क्रांति की नींव रखी जिससे भारत संसार का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बन गया है। अमूल ने एक सम्यक माॅडल प्रस्तुूत किया है। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के चलते सफलता के पायदान पर पहुंचे अमूल से आज अकेले गुजरात के करीब 26 लाख दुग्ध उत्पादक, आणंद सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड के अंशधारी ;मालिकद्ध हैं।
पूरे विश्व में दूध एवं दुग्ध उत्पादों का एक ब्रांड बन चुके अमूल की स्थापना केवल दो संस्थानों और सिर्फ 247 लीटर दूध के साथ हुई थी,लेकिन 1960 के दशक के अंत तक अमूल गुजरात मंे कामयाबी की बुलंदियों को छू रहा था। सहकारिता के आधार पर चल रहे अमूल की कामयाबी का जानकारी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को हुई तो उन्होंने आणंद जाने का मन बनाया। सन् 1964 में श्रीशास्त्री को कैटल फील्ड प्लांट का उद्घाटन करने के लिए आणंद आमंत्रित किया गया। श्रीशास़्त्री आमंत्रण पाकर आणंद पहुंचे और प्लांट का उद्घाटन किया। योजना के अनुसार श्रीशास्त्रीजी को उसी दिन वापस लौटना था लेकिन वे अमूल के काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आणंद में ही रुककर सहकारिता के आधार पर चल रहे अमूल की कार्यप्रणाली को समझने का निश्चय किया।
प्रधानमंत्री श्रीशास्त्री ने अमूल का काम देख रहे डाॅ.वर्गीज के साथ कई कोआपरैटिव का जायजा लिया और उसकी प्रक्रिया को समझा। श्रीशास़्त्री ने पाया कि जहां अमूल किसानों से दूध उद्गम कर रहा है वहीं वह उनकी आर्थिक अवस्था में भी सुधार ला रहा है। अमूल से बेहद प्रभावित श्रीशास्त्री ने देश के किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए सहकारिता के आधार पर चल रहे अमूल के माॅडल को पूरे देश में अपनाने का विचार किया। सहकारिता के आधार पर दुग्ध क्रांति लाने का संकल्प लेकर श्रीशास्त्री ने इसकी जिम्मेदारी डाॅ. कुरियन को सौंपी।
दुग्ध क्रांति लाने के श्रीशास्त्री के संकल्प को सफल बनाने के लिए सन् 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की गई। तत्कालीन दौर में देश में दूध की मांग ज्यादा थी और उत्पादन कम। मांग को पूरा करने के लिए वल्र्ड बैंक से मदद लेकर आॅपरेशन फ्लड यानि दुग्ध क्रांति की शुरुआत की गई। देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों सहित पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में अमूल माॅडल को अपनाकर सहकारी दुग्ध संघ बनाए गए। देखते ही देखते पूरे देश में करीब एक लाख डेयरी कोआपरैटिव संघ बन गए। इन डेयरी कोआपरैटिव संघों की मदद से दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर भारत विश्व का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बन गया।
महिलाओं की सक्रियता के कारण ही दुग्ध उत्पादन में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। भारत का दुग्ध उत्पादन 1950-51 में 17 मिलियन टन था,जो आॅपरेशन फ्लड के कारण लगातार बढ़ रही है। दुग्ध क्रांति के कारण ही वर्ष 2003-04 में 88.1 मिलियन टन हो गया। वर्ष 2013-14 में दूध का उत्पादन करीब 137.7 मिलियन टन रहा जो वर्ष 2016-17 में 163.6 मिलियन टन हो गया। दुग्ध उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है,जिसका सारा श्रेय इस क्षेत्र में सहकारिता के रूप में जुड़ी महिलाओं को जाता है। महिलाओं के सक्रिय योगादान के कारण ही भारत हर साल दुनिया के दुग्ध उत्पादन में 22 प्रतिशत का योगदान देता है। वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार,भारत में डेयरी उद्योग 5.6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। भारत ने वर्ष 2018 में दुनिया में सबसे अधिक 18.61 करोड़ टन दूध का उत्पान किया,जो एक रिकाॅर्ड है। आज दूध की खपत 480 ग्राम प्रति व्यक्ति है,जिसे पूरा करने के लिए भारत सरकार लगातार प्रयासरत है।
डेयरी क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए भारत सरकार के अलावा प्रदेश सरकारें भी सहकारिता के आधार पर संचालित डेयरी परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही हैं। पशुधन के क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री कहते हैं कि सरकार नई दुग्ध समितियों में महिलाओं को प्राथ्मिकता दी जा रही है। इसी प्राथमिकता का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में डेयरी व्यवसाय महिलाओं के जीवनयापन का एक जरिया बन गया है। लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में महिला डेयरी चला रही रीता सिंह बताती हैं कि उनकी डेयरी में पशुओं का ज्यादातर काम महिलाएं ही करती हैं। इससे महिलाओं को पैसे मिलते हैं जिससे वह बचत कर बेहतर जीवन जी रही हैं। रीता कहती हैं कि इस समय गांव की करीब 20 महिलाएं समिति की सदस्य हैं,जो रोज 85-95 लीटर दूध समिति को देती हैं। गांव की महिलाओं के लिए डेयरी योजना रोजगार का अच्छा साधन बना गया है।
उत्तर प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों में गिने जाने वाले बुंदेलखंड में केन्द्र के डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड और उप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने क्रांति ला दी है। पूरे बुंदेलखंड में इस परियोजना को महिलाओं के स्वयं सहायता समूह की मदद से चलाया जा रहा है। इस क्षेत्र में दूध उत्पादन के साथ ही पशुओं के गोबर से जैविक खाद बनाया जा रहा है,जिससे उन्हें बेहतर लाभ मिल रहा है।
डेयरी क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार,गाय गंगा महिला डेयरी योजना चला रही है,जिससे एक हजार से अधिक महिलाएं लाभान्वित हुई है। इस योजना से उत्तराखं डमें जहां दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है वहीं महिलाओं को स्वरोजगार भी मिल रहा है। बागेश्वर जिले दुग्ध समिति बनाकर दूध और इससे जुड़े उत्पाद बेचने वाली अंजना कांडपाल कहती हैं कि उनकी डेयरी से 12-15 महिलाओं के लिए रोजगार सृजित हुआ है और वे आत्मनिर्भर बन रहा है। अल्मोड़ा में डेयरी समिति दूध बेचने के साथ घी बनाकर बेचने का काम कर रही है। ऊधमसिंह नगर में कई दुग्ध सहकारी समितियां दुग्ध डेयरी प्रसंस्करण पर ध्यान केन्द्रित कर आर्थिक रूप से समृद्ध हो रही हैं।
सहकारी समिति के तौर पहचान बनाने वाली गुजरात के अमूल की तर्ज पर आन्ध्र प्रदेश में विजया,पंजाब में वेरका,राजस्थान में सारस,कर्नाटक में नन्दिनी,केरल में मिल्मा,उत्तर प्रदेश में पराग ब्रांड ने अपनी बिशेष पहचान बनाई है। बड़े पैमाने पर दुग्ध उत्पादन करने वाली महिला सहकारी समितियों में आधुनिक मशीनों का उपयोग दूध दुहने से लेकर दुग्ध प्रसंस्करण में किया जा रहा है। अमूल की तरह ये समितियां दुग्ध उत्पाद जैसे दही,मक्खन,पनीर,छाछ,दूध पाउडर,श्रीखंड,गुलाब जामुन आदि भी बनाकर आर्थिक समृद्धि का पर्याय बन रही हैं।
डेयरी क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती सक्रियता देश के विकास में एक प्रभावी भूमिका निभा रहा है। महिला डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से दुग्ध उत्पादन और उनका संकलन कर देश विकास की एक नई परिभाषा लिख रहा है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा डेयरी परियोजना में महिलाओं को बढ़ावा देने के कारण महिला डेयरी सहकारी समितियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र और ग्रामीण भारत के विकास पर बिशेष जोर दिया गया है।
कोविड-19 महामारी के दौर में डेयरी उद्योग ज्यादा प्रभावित नहीे रहा। इसे देखते हुए देश में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा बजट में बिशेष प्रावधान किए गए हैं। प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में डेढ़ करोड़ दुग्ध डेयरी उत्पादकों और दुग्ध निर्माता कंपनियों को किसान क्रेडिट कार्ड प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत में पशुधन की हिस्सेदारी हर साल बढ़ रही है ऐसे में महिलाएं डेयरी के क्षेत्र में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती हैं। महिलाओं के लिए समुदाय आधारित प्लानिंग डेयरी क्षेत्र में मददगार साबित हो सकती है।