मानसिक रोग का बढ़ता दायरा

increasing scope of mental illness

विजय गर्ग

आजकल की भाग-दौड़ वाली दुनिया में बेचैनी, डिप्रेशन और मानसिक तनाव जैसी मानसिक समस्याएं बड़ी तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रही हैं। इससे न तो कोई देश बचा है और न ही कोई राज्य । इसका शिकार किशोर, बड़े, वृद्ध, स्त्री और पुरुष सभी हो रहे हैं। विशेष रूप से, किशोरों में यह समस्या कुछ ज्यादा ही जटिल होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की ‘मेंटल हेल्थ आफ चिल्ड्रन एंड यंग पीपल’ नामक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 10 से 19 वर्ष का प्रायः प्रत्येक सातवां किशोर किसी-न-किसी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी लगभग एक तिहाई समस्याएं 14 साल की उम्र से पहले शुरू हो जाती हैं, जबकि इनमें से आधी समस्याएं 18 वर्ष से पहले सामने आने लगती हैं। तात्पर्य यह कि जब हमारे मासूम बाल्यावस्था से किशोरावस्था की ओर बढ़ने लगते हैं, सामान्यतः उसी दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अलग-अलग समस्याएं उन्हें अपना शिकार बनाने लगती हैं।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर सात में से एक किशोर डिप्रेशन का शिकार है। इंडियन जर्नल आफ साइकिएट्री में वर्ष 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारत में पांच करोड़ से अधिक किशोर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं जूझ रहे थे। इनमें से ज्यादातर किशोर बेचैनी और डिप्रेशन जैसी समस्या का सामना कर रहे थे। यूनिसेफ के अनुमान के मुताबिक कोरोना के बाद ये आंकड़े पहले की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़े हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, पूरी दुनिया में 30 करोड़ से ज्यादा लोग बेचैनी से जूझ रहे हैं और 28 करोड़ लोग डिप्रेशन का सामना कर रहे हैं। जर्नल ‘द लैंसेट साइकिएट्री’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार आस्ट्रेलिया में 75 प्रतिशत किशोर बेचैनी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों में कई हार्मोनल और शारीरिक बदलाव हो रहे होते हैं। उसी दौरान उन्हें बोर्ड परीक्षाओं एवं करियर के लिए कोर्स चयन जैसे दबावों से भी गुजरना पड़ता है। ऐसे में, यदि उन्हें घर और स्कूल में उचित परिवेश नहीं मिले तो ये परिस्थितियां प्रायः उनमें बेचैनी और डिप्रेशन पैदा कर देती हैं।

इनके अतिरिक्त, हमारी प्रतिदिन की आदतों में शामिल हो चुके फास्ट फूड, साफ्ट ड्रिंक्स और इंटरनेट मीडिया भी बेचैनी और डिप्रेशन का कारण बन रहे हैं। इन मामलों में क्लिनिकल केयर से अधिक जरूरत बच्चों को इन मानसिक बीमारियों से बचाने को लेकर रणनीति बनाए जाने की है। वहीं डब्ल्यूएचओ एवं यूनिसेफ की रिपोर्ट में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए समुदाय आधारित माडल तैयार करने की बात कही गई है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार