
प्रो. महेश चंद गुप्ता
भारत ने हाल ही में जिस ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है, वह केवल एक सैन्य ऑपरेशन नहीं बल्कि उसकी रणनीतिक सोच, वैश्विक दृष्टिकोण और राष्ट्र की सामूहिक ताकत का प्रतीक बन गया है। इस ऑपरेशन की सफलता ने भारत को एक बार फिर यह साबित करने का मौका दिया कि वह केवल एक बड़ी जनसंख्या या पुरातन संस्कृति वाला देश नहीं बल्कि एक रणनीतिक, तकनीकी और सैन्य शक्ति भी है जो वैश्विक समीकरणों को प्रभावित करने में सक्षम है। भारत अब आत्म बल से आगे बढ़ता हुआ राष्ट्र है।
भारत की बढ़ती शक्ति और वैश्विक पहचान देशवासियों के लिए गौरव का विषय है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की रक्षा क्षमता को दुनिया के सामने एक बार फिर मजबूती से प्रस्तुत किया है। संदेश स्पष्ट है कि भारत अपनी ताकत का प्रयोग केवल आवश्यकता पडऩे पर करता है लेकिन जब करता है तो पूरी सटीकता और सफलता के साथ करता है। इस अभियान के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें भारत की ओर टिक गई हैं। अमेरिका और चीन जैसे वैश्विक शक्ति केंद्रों को अब यह समझ आने लगा है कि भारत केवल उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक संभावित नेतृत्वकर्ता राष्ट्र है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत के साथ आगे बढ़ रहा है।
भारत की सोच केवल अमेरिका या चीन की बराबरी करने की नहीं है बल्कि उनसे आगे निकलने और विश्वगुरु के रूप में स्थापित होने की है। ऑपरेशन सिंदूर की सबसे रोचक बात यह रही कि इससे भारतीय राजनीति में भी एक नई चेतना का संचार हुआ। ओवैसी और शशि थरूर जैसे जो नेता पहले सरकार विरोधी माने जाते थे, उन्होंने भी इस ऑपरेशन की सराहना की और राष्ट्रहित को सर्वोपरि माना। इन नेताओं ने भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप मेंं विश्व के विभिन्न देशों मेंं जा कर जिस मजबूती से भारत का पक्ष रखा और पाकिस्तान को बेनकाब किया है, उससे यह स्पष्ट हुआ कि जब बात देश की सुरक्षा और प्रतिष्ठा की होती है, तो राजनीतिक मतभेद पीछे छूट जाते हैं और ‘भारत पहले’ की भावना सर्वोपरि हो जाती है।
यह राष्ट्रवाद का वही रूप है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक से भारतीय जनमानस में गहराता गया है। 2014 से जो राष्ट्र निर्माण की लहर शुरू हुई, वह अब स्पष्ट परिणाम देने लगी है।
भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने उसे वैश्विक निवेश और तकनीकी साझेदारी का केंद्र बना दिया है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के साथ-साथ भारत ने तकनीकी मोर्चे पर भी बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं।
कश्मीर में बना चिनाब नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब रेलवे ब्रिज केवल एक निर्माण परियोजना नहीं बल्कि इंजीनियरिंग कौशल और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आश्चर्यजनक नमूना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिनाब ब्रिज के साथ श्रीनगर के लिए पहली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर लंबे अरसे से देखे जा रहे सपने को साकार कर दिया है। इसी के साथ कश्मीर देश के बाकी हिस्सों से जुड़ गया है। अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सीधी ट्रेन यात्रा संभव हो सकेगी। यह जम्मू और कश्मीर के डोगरा राजा महाराजा प्रताप सिंह का सपना था, जिन्होंने 1880 के दशक के अंत में इस मार्ग की कल्पना की थी और सर्वेक्षण के लिए ब्रिटिश इंजीनियरों को लगाया था। कश्मीर घाटी के लोगों के लिए ये ट्रेन न सिर्फ हर मौसम में आने-जाने के लिए एक भरोसेमंद साधन बन गई है बल्कि इससे इलाके में पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा मिलने की भी उम्मीद है। इससे पहले अप्रेल में मोदी ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में भारत के पहले वर्टिकल लिफ्ट पंबन सी ब्रिज का उद्घाटन किया था। समुद्र के ऊपर बना यह रेलवे ब्रिज अतीत और भविष्य को जोड़ता है।
भारत में अब राफेल लड़ाकू विमानों के मुख्य ढांचे का निर्माण हैदराबाद में किया जाएगा जो कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसके लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड और फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन के बीच हुआ एग्रीमेंट बताता है कि अब भारत केवल आयातक नहीं बल्कि रक्षा उत्पादों का निर्माता और निर्यातक भी बन रहा है। भारत अब हथियारों का सिर्फ उपभोक्ता नहीं, निर्माता और निर्यातक भी बन रहा है। डिफेंस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी भारत को आत्मनिर्भर बना रही है। रक्षा उत्पादन में भारत का भविष्य बेहद उज्ज्वल है।
रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भारत की बड़ी उपलब्धि है। भारत ने रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र को प्रवेश देने की नीति अपनाकर एक बड़ा बदलाव किया है। इससे प्रतिस्पर्धा, नवाचार और गुणवत्ता को बढ़ावा मिला है। भारत और रूस के संयुक्त प्रयास से विकसित हुई ब्रह्मोस मिसाइल की ऑपरेशन सिंदूर के विश्व बाजार में मांग बढ़ी है और कई देश अब भारत से रक्षा उपकरण खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं।
उम्मीद है, भारत अगले दस वर्षों में रक्षा क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा को पीछे छोड़ देगा। इतना ही नहीं, स्वदेशी तकनीक और स्टार्टअप्स के जरिए भारत अपने डिफेंस सेक्टर को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर है।
भारत ने सिर्फ रक्षा नहीं बल्कि ऊर्जा, स्वास्थ्य और तकनीक के क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत विश्व में अग्रणी बन रहा है। सरकार की योजनाओं और प्राइवेट निवेश के समन्वय से भारत अब ऊर्जा निर्यातक देश बनने की राह पर है।
अब भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण शुरू हो चुका है। यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का सबसे अहम हिस्सा है। अब भारत में इससे भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में भी आत्मनिर्भरता मिलेगी।
भारत की विदेश नीति अब केवल अपने हितों तक सीमित नहीं रही बल्कि दुनिया को साथ लेकर चलने की नीति पर केन्द्रीत है। प्रधानमंत्री मोदी का यह स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है कि भारत वैश्विक नेतृत्व में केवल भागीदार नहीं बल्कि मार्गदर्शक की भूमिका निभाना चाहता है। जी 20 की अध्यक्षता, वैश्विक मंचों पर भारत की सक्रिय भागीदारी, ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदला परिदूश्य इस बात के संकेत हैं कि भारत अब एक संतुलनकारी शक्ति बनकर उभर रहा है।
हालांकि भारत की प्रगति उल्लेखनीय है लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। तमाम चुनौतियों से जूझते हुए भारत आगे बढऩे को दृढ़ संकल्पित है। समग्र विकास और समग्र क्रांति की सोच वाले भारत की नीति अब स्पष्ट है।
2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना केवल एक राजनीतिक घोषणापत्र नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय लक्ष्य है। इसके लिए नीति, नियत और नागरिक तीनों का सहयोग आवश्यक है और यही तीनों आज एकजुट होकर भारत को आगे ले जा रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य क्षमता को दिखाने के साथ-साथ एक संदेश भी दिया है कि भारत अब अपने हितों को लेकर संकोच नहीं करता। वह शांति चाहता है, लेकिन किसी भी हस्तक्षेप या चुनौती का जवाब देने में सक्षम है। भारत अब उस मुकाम पर है जहां से वह केवल अपनी समस्याएं ही नहीं सुलझा रहा बल्कि वैश्विक समस्याओं के समाधान में भी भागीदारी निभा रहा है। यही है नया भारत, जो आत्मनिर्भर, शक्तिशाली, तकनीकी रूप से उन्नत, और दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने को तत्पर है । यह उस नये भारत की झलक है जो आत्म विश्वास, एकता, नवाचार और नेतृत्व की भावना से परिपूर्ण है।
(लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, वक्ता एवं विचारक हैं। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी फाउंडेशन के कोऑर्डिनेटर भी हैं।)