बहुत गहरी हैं भारत-अफगानिस्तान संबंधों की ऐतिहासिक जड़ें

India-Afghanistan relations have deep historical roots

विवेक शुक्ला

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्तकी की भारत यात्रा ने पुरानी दोस्ती को नई जान फूंक दी है। मुत्तकी बीते गुरुवार को राजधानी दिल्ली पहुंचे, जहां उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से विस्तृत चर्चा की। यह 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान के किसी वरिष्ठ नेता की पहली भारत यात्रा है। इस मुलाकात में भारत ने काबुल में अपने पूर्ण दूतावास को फिर से सक्रिय करने की घोषणा की, जो चार वर्षों के अंतराल के बाद एक बड़ा कूटनीतिक कदम है।

मुत्तकी की यात्रा से एक उम्मीद बंधी है। विदेश मंत्री जयशंकर ने पाकिस्तान को ‘साझा खतरा’ बताया, जबकि तालिबान ने 2025 के पहलगाम हमले की निंदा की। भारत-अफगानिस्तान संबंध शताब्दियों की परीक्षा से गुजरे हैं। प्राचीन बौद्ध विरासत से आधुनिक बुनियादी ढांचे तक, ये बंधन लचीले साबित हुए। मुत्तकी की यात्रा मानवतावादी सहायता को कूटनीतिक संवाद में बदलने का अवसर है। जैसे अशोक के शिलालेख आज भी बोलते हैं। दोनों देशों को आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक विकास जैसे साझा मुद्दों पर एकजुट होना होगा। यह न केवल क्षेत्रीय शांति के लिए जरूरी है, बल्कि साझा इतिहास की मांग भी।

लेकिन मुत्तकी की यह यात्रा केवल वर्तमान की राजनीति नहीं, बल्कि भारत-अफगानिस्तान के गहन ऐतिहासिक बंधनों की याद दिलाती है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आधुनिक विकास परियोजनाओं तक, ये संबंध सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक धागों से बुने गए हैं।

भारत और अफगानिस्तान के संबंध प्राचीन काल से ही गहरे हैं, जब ये क्षेत्र एक सांस्कृतिक निरंतरता का हिस्सा थे। सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 3300-1300 ईसा पूर्व) के अवशेष अफगानिस्तान के उत्तरी भागों में भी मिलते हैं, जो व्यापारिक मार्गों के माध्यम से जुड़े हुए थे।

चंद्रगुप्त मौर्य के समय (305 ईसा पूर्व) यह संबंध औपचारिक रूप ले चुके थे। सेल्यूकस निकेटर ने अफगान क्षेत्र मौर्य साम्राज्य को सौंप दिया, बदले में 500 हाथी और वैवाहिक संबंध प्राप्त किए। सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) ने अफगानिस्तान को बौद्ध धर्म का केंद्र बनाया। कंधार में उनके शिलालेख आज भी मौजूद हैं, जो धम्म के प्रचार की गवाही देते हैं। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भी, इंडो-ग्रीक और कुशान साम्राज्यों ने इस क्षेत्र को भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़े रखा। कुषाण शासक कनिष्क (मध्य पहली शताब्दी) ने बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया, जिसका प्रभाव गंधार कला में दिखता है।

ये प्राचीन संबंध केवल राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक थे। अफगानिस्तान के बामियान बुद्ध (जो 2001 में तालिबान द्वारा नष्ट किए गए) भारतीय बौद्ध विरासत के प्रतीक थे। व्यापार मार्गों ने मसाले, रत्न और विचारों का आदान-प्रदान सुनिश्चित किया, जो आज भी दोनों देशों की साझा विरासत को दर्शाता है।

मध्यकाल में अफगानिस्तान भारत के लिए अवसर और चुनौती दोनों रहा। 10वीं शताब्दी से गजनवी, गौरी, खिलजी, लोदी और मुगल जैसे अफगान मूल के वंशों ने उत्तरी भारत पर आक्रमण किए, जो राजनीतिक उथल-पुथल लाए लेकिन सांस्कृतिक समन्वय भी। महमूद गजनवी (998-1030) के आक्रमणों ने सोमनाथ मंदिर को लूटा, लेकिन इन्होंने फारसी साहित्य और वास्तुकला को भारत में रोपा। गौरी वंश (12वीं शताब्दी) ने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी, जो अफगान शासकों द्वारा संचालित थी।

मुगल काल (1526-1858) में यह संबंध और गहरा हुआ। बाबर, अफगान मूल का था। 18वीं शताब्दी में अहमद शाह दुर्रानी ने अफगान साम्राज्य स्थापित किया, जिसने पंजाब तक विस्तार किया, लेकिन महाराजा रणजीत सिंह के सिख साम्राज्य ने इसे रोका।

इस काल में आर्थिक लेन-देन फला-फूला। अफगानिस्तान के सूखे मेवे, घोड़े और ऊनी वस्त्र भारत पहुंचे, जबकि भारतीय वस्त्र और मसाले अफगान बाजारों में बिके। सांस्कृतिक रूप से, सूफी संतों जैसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) ने दोनों क्षेत्रों को जोड़ा। हालांकि आक्रमणों ने तनाव पैदा किया, लेकिन ये संबंध विनाशकारी नहीं, बल्कि परिवर्तनकारी साबित हुए।

आधुनिक युग: स्वतंत्रता से सोवियत युग तक

19वीं शताब्दी में ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने इन संबंधों को नया मोड़ दिया। अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत पड़ोसी थे, लेकिन ‘ग्रेट गेम’ में रूस के साथ ब्रिटेन की होड़ ने अफगानिस्तान को बफर राज्य बना दिया।

भारत ने अफगानिस्तान के साथ 1950 में ‘मैत्री संधि’ पर हस्ताक्षर किए, जो शांति और राजनयिक संबंधों की गारंटी थी। 1973 में मोहम्मद दाऊद खान के गणतंत्र को मान्यता दी गई। लेकिन 1979 के सोवियत आक्रमण ने संबंधों को जटिल कर दिया। भारत ने सोवियत-समर्थित सरकार को मान्यता दी। मुजाहिदीन को पाकिस्तान का समर्थन था, जिससे भारत-पाक तनाव बढ़ा। 1989 में सोवियत वापसी के बाद नागरिक युद्धों में भारत ने नजीबुल्लाह सरकार का साथ दिया।

दोनों देशों के 1996-2001 में तालिबान शासन के दौरान संबंध बेहद खराब हो गए। बेशक,1999 के इंडियन एयरलाइंस अपहरण कांड ने तनाव बढ़ाया। तालिबान द्वारा बामियान बुद्धों का विध्वंस भारत में आक्रोश का कारण बना।

2001 के अमेरिकी आक्रमण के बाद संबंध पुनर्जीवित हुए। भारत ने 3 अरब डॉलर से अधिक की अफगानिस्तान की सहायता दी। 2005 में अफगानिस्तान को सार्क सदस्यता दिलाई गई। 2011 की रणनीतिक साझेदारी ने सैन्य प्रशिक्षण और विकास पर जोर दिया। भारत ने 200 से अधिक स्कूल बनाए, 16,000 अफगान छात्रों को छात्रवृत्ति दी, और चावल-गेहूं की आपूर्ति की। सांस्कृतिक रूप से, बॉलीवुड और क्रिकेट ने पुल बनाए—अफगान टीम ने भारत में अभ्यास किया। 2008 और 2009 के काबुल दूतावास हमलों ने दुख पहुंचाया, लेकिन भारत ने हार नहीं मानी। बेशक, 2021 में तालिबान की वापसी ने चुनौतियां खड़ी कीं।

मुत्तकी की भारत यात्रा की कुछ जानकार निंदा भी कर रहे हैं। पर उन्हें समझना होगा कि किसी भी देश की विदेश नीति को बहुत सोच-विचार करने के बाद अंतिम रूप दिया जाता है।