भारत को एक राष्ट्र के रूप में जल सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी

India as a nation must prioritise water security

विजय गर्ग

डे ज़ीरो—एक ऐसा शब्द है जो अब केवल एक संभावित आपदा नहीं, बल्कि 21वीं सदी के सबसे गंभीर मानवीय संकटों में से एक का प्रतीक बन चुका है। यह शब्द पहली बार 2018 में वैश्विक स्तर पर चर्चा में तब आया जब दक्षिण अफ्रीका का कैपटाउन शहर पानी की आपूर्ति पूरी तरह समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया था। ‘डे ज़ीरो’ वह दिन होता है जब शहर के सभी नल बंद कर दिए जाते हैं, और नागरिकों को सार्वजनिक वितरण केंद्रों पर लंबी कतारों में खड़े होकर सीमित मात्रा में पानी प्राप्त करना पड़ता है। कैपटाउन में यह सीमा प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 25 लीटर निर्धारित की गई थी। हालांकि इस संकट का कारण केवल जलवायु परिवर्तन या वर्षा की अनिश्चितता नहीं था—यह दशकों की नीति विफलता, शहरों का अति-विस्तार, परंपरागत जल स्रोतों की उपेक्षा और जल प्रबंधन में बड़ी खामियों का संयुक्त परिणाम था।

कैपटाउन ने कड़ी नीतियों और नागरिक सहभागिता से इस आपदा को कुछ समय के लिए टाल दिया है। लेकिन पानी की गंभीर किल्लत की आहट अब भारत के दरवाज़े तक होने लगी है। भारत जैसे देशों में, जहां जनसंख्या अत्यधिक है, शहरीकरण अनियंत्रित है, और भूजल दोहन पर कोई स्पष्ट नियंत्रण नहीं—डे ज़ीरो अब भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि एक आसन्न यथार्थ है।

बेंगलुरु, जिसे कभी ‘झीलों का शहर’ कहा जाता था, आज जल संकट के सबसे भीषण दौर से गुजर रहा है। यहां की अधिकांश झीलें अब या तो कचरा डंपिंग साइट बन चुकी हैं या अवैध निर्माण की भेंट चढ़ गईं। भूजल स्तर हर वर्ष 10-12 मीटर की दर से नीचे जा रहा है। बेंगलुरु में डे ज़ीरो की आंशिक झलक तब देखने को मिली जब पूरे शहर में टैंकर के पानी पर निर्भरता बढ़ी।
चेन्नई भी 2019 में डे ज़ीरो जैसे संकट का सामना कर चुका है जब उसके चारों जलाशय सूख गए थे। वहीं दिल्ली की स्थिति भी बेहतर नहीं—शहर की मुख्य जलधारा यमुना प्रदूषण और अतिक्रमण की शिकार है, जबकि भूजल स्तर अत्यधिक गंभीर श्रेणी में जा चुका है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भारत के 21 बड़े शहरों में जलापूर्ति पूरी तरह समाप्त हो सकती है।

पानी के मामले में हरियाणा की स्थिति भी चिंताजनक है। धान,गन्ने जैसी अत्यधिक जल-खपत वाली फसलों का विस्तार, सिंचाई तकनीकों का अल्प उपयोग और नगण्य वर्षा जल संचयन ने भूजल अंधाधुंध तरीके से समाप्त कर दिया। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार हरियाणा के 85 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों में भूजल स्तर खतरनाक स्तर पार कर चुका है।

भारत में जल संकट के लिए जिम्मेदार केवल वर्षा की अनियमितता नहीं है, बल्कि जल निकायों पर अतिक्रमण, नीति असंगति, शहरी अपशिष्ट का जल स्रोतों में मिलना और लोगों में जल बचत के प्रति उदासीनता जैसे कारक भी उतने ही उत्तरदायी हैं।
जल संकट से निपटने के लिए कई योजनाएं तो बनाई गईं, लेकिन उनका क्रियान्वयन कागज़ी आंकड़ों तक ही सीमित रह गया। मसलन, जल जीवन मिशन को सिर्फ ‘हर घर नल’ तक सीमित समझा गया, जबकि उसका मूल उद्देश्य स्थानीय जल स्रोतों का सशक्तीकरण और सामुदायिक सहभागिता के ज़रिए जल आत्मनिर्भरता था।

इस स्थिति से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। जल को केवल सरकारी जिम्मेदारी न मानकर नागरिक सहभागिता पर बल देना होगा। जल संरक्षण को जीवनशैली में लाना होगा – जैसे कैपटाउन में लोगों ने बर्तनों में नहाने का पानी जमा कर पौधों को सींचा, हाथ धोते समय नल बंद करना सीखा और शौचालयों में रिसाइकल पानी का प्रयोग शुरू किया।
भारत में भी प्रत्येक इमारत में वर्षा जल संचयन अनिवार्य करना चाहिए, जिसे स्थानीय निकाय सख्ती से लागू करें। भूजल का मापन, नियमन और पुनर्भरण एक समर्पित मिशन के तहत चलाया जाए। जल जीवन मिशन को स्थानीय स्रोतों को पुनर्जीवित करने और जल संरक्षण पर केंद्रित करना होगा। शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट की जगह परकोलेशन पिट्स, बायोस्वेल्स और हरित क्षेत्र बढ़ाने होंगे ताकि वर्षा जल भूमि में जज्ब हो सके। पानी की कीमत समझना और उपभोग पर नियंत्रण लाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए स्लैब आधारित मूल्य निर्धारण, जहां न्यूनतम जरूरतों के बाद अतिरिक्त खपत पर उच्च शुल्क लगे, एक व्यावहारिक नीति हो सकती है। इससे पानी का विवेकपूर्ण उपयोग प्रोत्साहित होगा। वहीं, तकनीकी नवाचार जैसे जल रिसाव की स्मार्ट निगरानी, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग और समुद्री जल से मीठा पानी बनाने की प्रक्रिया को प्रमुखता दी जानी चाहिए। चेन्नई ने समुद्री जल शोधन संयंत्र की ओर कदम बढ़ाया है, और यह उन तटीय शहरों के लिए प्रेरणा हो सकता है जहां भूजल या वर्षा जल अपर्याप्त है।

स्कूलों और कॉलेजों में जल शिक्षा को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाए। आने वाली पीढ़ी को जल के महत्व और उसके संरक्षण के व्यावहारिक तरीकों से परिचित कराना अब एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी बन गई है।

भारत को एक राष्ट्र के रूप में जल सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी, नीतिगत, प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर समन्वित प्रयास करने होंगे। दरअसल, जल को लेकर आत्मनिर्भरता केवल योजना की भाषा में नहीं हो, ज़मीनी क्रियान्वयन और जनचेतना में झलकनी चाहिए। तभी हम डे ज़ीरो के खतरे को टाल सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट