जी 20 में इस तरह कुछ बड़ा कर सकता है भारत

सीता राम शर्मा ” चेतन “

निःसंदेह यह भारत के साथ हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है कि एक दिसंबर से भारत विश्व के सबसे विकसित, समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्रों के समूह जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है ! स्वाभाविक नियमानुसार मिली इस अध्यक्षता का एक बेहतर वैश्विक लाभ के अवसर के रूप में सदुपयोग करना भारत सरकार का संकल्प है । जिसका देश के हर नागरिक को स्वागत करना चाहिए । इस शक्तिशाली और प्रभावशाली वैश्विक संगठन की अध्यक्षता करते हुए भारत ना सिर्फ अपनी क्षमता और ताकत का अपने और वैश्विक हित में भरपूर उपयोग कर सकता है बल्कि इस अवसर का सदुपयोग कर अपने सामर्थ्य, प्रभाव और कार्य क्षेत्र का भी समुचित विस्तार कर सकता है । हालांकि वर्तमान केंद्र सरकार और उसके नेतृत्वकर्ता नरेंद्र मोदी इस राष्ट्रीय अवसर का लाभ उठाने में कोई कोर कसर छोड़ेंगे इसकी संभावना कतई नहीं है बावजूद इसके इस अवसर के महत्व और अवसर का ज्यादा से ज्यादा लाभ कैसे उठाया जाए इस पर देश के हर एक नागरिक, दल और संगठन को अपने स्तर से चिंतन और प्रयास करना चाहिए । गौरतलब है कि भारत को अध्यक्षता का यह अवसर तब मिला है जब लगभग पूरी दुनिया एक तरफ जहां कोरोना महामारी की त्रासदी से उबरने का प्रयास कर रही है वहीं दूसरी तरफ रुस युक्रेन युद्ध ने कई तरह के संकट खड़े कर दिए हैं । आतंकवाद और पर्यावरण संकट तो पहले से मुंह बाए खड़े हैं । प्रथम दृष्टया एक कमजोर मस्तिष्क और दृष्टिकोण से इस स्थिति को विडंबना या दुर्भाग्य माना जा सकता है पर वास्तविकता तो यही है कि अत्यंत दुर्लभ और संकटग्रस्त समय तथा माहौल ही एक बुद्धिमान, श्रेष्ठ और योग्य व्यक्ति, सत्ता तथा शासन के लिए कुछ बड़ा और महान कार्य करने का सबसे उपयुक्त समय होता है । ऐसे समय का कुशलतापूर्वक सदुपयोग करने पर ना सिर्फ संसाधन, शक्ति और समय का कम उपयोग होता है बल्कि ऐसे समय में अर्जित की गई उपलब्धियों को ज्यादा महत्वपूर्ण भी समझा जाता है । अब सवाल यह है कि वर्तमान विषम वैश्विक परिस्थितियों में आखिर भारत जी 20 की मिली अध्यक्षता का अपने और वैश्विक हित में कैसे ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग करे । ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाए ।

भारत को चाहिए कि वह एक वर्ष के इस समय को चार चरणों में चार अलग-अलग मार्गों से पूरा करने का एक खाका तैयार कर उस पर काम करे । चार चरण अर्थात चार तिमाही और चार मार्ग अर्थात चार क्षेत्र, जिनमें चरणबद्ध तरीके से काम हो । बेहतर होगा कि भारत सरकार इसके लिए अलग-अलग चार क्षेत्र की चार विशेषज्ञ टीम भी गठित करे । चार तिमाही तो स्पष्ट है पर चार क्षेत्र कौन से हों, इसके चयन पर ध्यान देना आवश्यक है । जी 20 के वर्तमान अस्तित्व और उसके उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि ये चार क्षेत्र आर्थिक, सामरिक, सुरक्षा और सहयोग के क्षेत्र हो सकते हैं । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन चारों क्षेत्रों में रुस युक्रेन युद्ध संकट के कारण सामरिक क्षेत्र पर वैश्विक चर्चा और चिंता ज्यादा है । जिस पर जी 20 के साथ विश्व के कई देश भी भारत की मुख्य भूमिका निर्वाह करने की क्षमता को भलीभांति समझ, मान और कह रहे हैं । भारत रुस के मैत्रीपूर्ण संबंध और दोनों के बीच व्यापार और विश्वास का माहौल इसका मुख्य और सही कारण है । यही कारण है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने वैश्विक मंच पर भी बहुत आत्मीय और मित्रवत भाव से दुनिया के एक सबसे शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्ष रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को यह कह दिया कि यह युग युद्ध का नहीं कूटनीति का है । जिसके बाद कुछ पश्चिमी नेताओं ने मोदी की कूटनीति की इसी बात का अधिकाधिक उपयोग कर पुतिन को मनोवैज्ञानिक तौर पर कमजोर कर दोनों मित्र देशों के रिश्तों को कमजोर करने का भी प्रयास किया, पर वे यह भूल गए कि ना तो पुतिन उनकी उस कूटनीति से अनभिज्ञ हैं और ना ही मोदी ही । अब सवाल यह उठता है कि वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में जी 20 की अध्यक्षता करते हुए और वैश्विक अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए भारत कैसे सामरिक क्षेत्र में सबसे पहले रुस युक्रेन युद्ध को समाप्त कराने में बड़ी भूमिका निभाए ? मुझे लगता है कि भारतीय प्रधानमंत्री का इसके लिए एक दूसरा वक्तव्य देना महत्वपूर्ण और प्रभावशाली प्रयास सिद्ध हो सकता है । मोदी को उचित समय और मंच पर युक्रेन से यह आग्रह करना चाहिए कि वह रुस से युद्ध विराम पर बात करते हुए रुसी हितों और आशंकाओं का समाधान करे । दोनों के बीच विश्वास का माहौल बनाए ।

गौरतलब है कि यदि युक्रेनी राष्ट्रपति रुस को यह पुख्ता विश्वास दिलाएं कि वह नाटो का सदस्य नहीं बनेगा और रुस के विरुद्ध किसी भी षड्यंत्र और कार्रवाई में किसी भी तरह से उसके शत्रु देशों को सहयोग नहीं करेगा तो युद्ध समाप्त हो सकता है । भारत को जी 20 की अध्यक्षता करते हुए कुछ नया भी करने की जरूरत है । भारत सदस्य देशों को विश्वास में लेकर वैश्विक शांति, सुरक्षा और सहयोग के क्षेत्र में एक नई शुरुआत करने का प्रयास करे तो बेहतर होगा । एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य को लेकर उसे मानवता के कल्याण और भविष्य के लिए नई मति, नई नीति और नई गति का मंत्र दुनिया को देना होगा । नई मति के तहत उसे लीक से हटकर विश्व समुदाय में जाति और धर्म को लेकर तेजी से पनपते इर्ष्या, द्वेष, घृणा और हिंसा के माहौल को रोकने और फिर खत्म करने का प्रयास करना होगा । विश्व समुदाय को पूरी विनम्रता से मनुष्यता के एक जाति और धर्म शुत्र में पिरोने का प्रयास बहुत खुले दिमाग, विचार और नीति नियमों के साथ करना होगा । वैश्विक शांति, सुरक्षा, समृद्धि और सहयोग का लक्ष्य बिना मनुष्यता की सुरक्षा, समृद्धि और सहयोगात्मक नीति और कर्मों के बिना संभव नहीं, यह सत्य बहुत स्पष्टता से विश्व समुदाय के सामने रखना होगा । बहुत बेहतर होगा कि इस दिशा में एक अभिनव और नई पहल करते हुए भारत वैश्विक राजनेताओं, सत्ता शासकों के साथ प्रमुख वैश्विक धर्मगुरुओं को भी एक मंच पर एक साथ लाने का, वैश्विक भलाई के लिए सबके एक साथ संवाद का कोई कार्यक्रम बनाए । ऐसे कार्यक्रम का आयोजन करे । यदि भारत जी 20 की अपनी अध्यक्षता में ऐसे कठिन और बड़े प्रयास करे तो निःसंदेह एक धरती एक परिवार एक भविष्य का उसका मंत्र वैश्विक समुदाय के बीच ज्यादा सरलता से अपना महत्व और परिणाम पाने में सफल होगा । जिससे भारत की वैश्विक छवि में अभूतपूर्व निखार आएगा । भारत को जी 20 की अध्यक्षता करते हुए विश्व के गरीब और हाशिए पर खड़े देशों और वहां के लोगों के विकास के लिए भी प्रमुखता से चिंतन और कुछ नये सहयोगात्मक प्रयास करने की जरूरत है, जो मोदी के व्यक्तित्व, विचार और व्यवहार में समाहित है । जो भारत के अति प्राचीन महामंत्र और जीवन आचरण वसुधैव कुटुम्बकम का भी सार है ।

अंत में बात जी 20 की भारत की अध्यक्षता को एक वैश्विक अवसर के रूप में देश के भीतर चरितार्थ करने की, तो बेहतर होगा कि इसको लेकर देश के भीतर होने वाले हर कार्यक्रम में जी 20 के साथ कुछ अन्य देशों के शासकों, जन प्रतिनिधियों, लोकप्रिय लोगों को शामिल किया जाए और हर बार अपने वैश्विक दृष्टिकोण, स्वप्न, और लक्ष्यों को उनके माध्यम से विश्व समुदाय के सामने रखा जाए । रही बात जी 20 की अध्यक्षता के एक वर्ष पूरा होने पर 2023 दिसंबर में होने वाले मुख्य समापन कार्यक्रम की तो यदि संभव हो तो भारत को वह कार्यक्रम देश की राजधानी दिल्ली की बजाय जम्मू-कश्मीर या अरुणाचल प्रदेश में पूरी भव्यता के साथ कराने का प्रयास करना चाहिए । शेष फिर कभी ! फिलहाल शुभकामनाएँ पूरे देश के साथ अपने विश्व समुदाय को भी !