वैश्विक भुखमरी सूचकांक में लगातार पिछड़ता भारत

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर भारत के समक्ष चिन्ताजनक बात सामने आई है। जिस देश ने 5 ट्रिलियन जी डी पी पाने का लक्ष्य रखा हो , उस देश में अब भी सभी लोगों को भर पेट भोजन नसीब न हो रहा हो, यह विकट समस्या प्रकट होती हुई दिख रही हैं। भुखमरी एक बहुत ही घातक स्थिति है जिसके परिणामस्वरूप कुपोषण और यहां तक कि जीवन का नुकसान भी होता है। भारत में भुखमरी की हालत काफी खस्ता है जो बहुत लंबे समय से चला आ रहा है । ऐसा इसलिए है , क्योंकि भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, भुखमरी हर साल हजारों मौतों का कारण बनती है इसलिए इसपर लगाम लगाने की जरूरत महसूस हो रही है।

हमारे समाज के संतुलित विकास के लिए यह बेहद आवश्यक है कि मानव का अच्छे ढंग से सर्वांगीण विकास हो, जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति का स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को पोषित संतुलित आहार की आवश्यकता होती है और लोगों को समय से संतुलित भोजन की इतनी मात्रा मिलती रहनी चाहिए कि वो शारिरिक रूप से स्वस्थ रहकर जीवन यापन कर सकें।

ग्‍लोबल हंगर इंडेक्‍स 2022 के आंकड़े :

भुखमरी से प्रभावित देशों की ताजा सूची आई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के आंकड़ों में भारत छह पायदान नीचे खिसककर 121 देशों में से 107वें स्थान पर पहुंच गया। भारत का स्‍कोर 29.1 है। वैश्विक सूची में भारत दक्षिण एशियाई देशों में से सिर्फ युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान से बेहतर है।पाकिस्‍तान को इसी इंडेक्‍स में 26.1 का स्‍कोर मिला है, उसकी रैकिंग 99 है। बांग्‍लादेश का स्‍कोर 19.6 और रैंकिंग 84 है तो नेपाल का स्‍कोर 19.1 और रैंकिंग 81। वहीं म्‍यांमार को 15.6 का स्‍कोर दिया गया है। ग्‍लोबल हंगर इंडेक्‍स 2022 में श्रीलंका का स्‍कोर 13.6 है।

भुखमरी को मापने का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों में से एक ‘2030 तक शून्य भुखमरी’ का शिखर हासिल करना है। अभी जो ग्‍लोबल हंगर इंडेक्‍स आया है, उसे दो यूरोपियन NGOs- कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेलथूंगरहिल्फ ने मिलकर जारी किया है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए डेटा संयुक्‍त राष्‍ट्र (यूएन) के अलावा यूनिसेफ, फूड एंड एग्रीकल्‍चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) समेत कई एजेंसियों से लिया गया है। ग्‍लोबल हंगर इंडेक्‍स (जीएचआई) तैयार करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के तीन पैमाने हैं- खाने की कमी, बच्‍चों के पोषण स्‍तर में कमी और बाल मृत्‍यु-दर। इन्होंने चार पैमानों पर देशों को रैंक किया है। ये हैं- अंडरनरिशमेंट, चाइल्‍ड स्‍टंटिंग, चाइल्‍ड वेस्टिंग और चाइल्‍ड मॉर्टलिटी यानी अल्पपोषण, बाल बौनापन, बाल अपव्यय और बाल मृत्यु दर।

चार संकेतकों के आधार पर रिपोर्ट तैयार हुआ है। कुपोषण, जो अपर्याप्त भोजन की उपलब्धता को दर्शाता है। इसकी गणना कुपोषित आबादी की गणना से निकाली जाती है। इसमें भी उन लोगों की गणना खासतौर पर शामिल है, जिनकी कैलोरी सेवन की मात्रा अपर्याप्त है। चाइल्ड वेस्टिंग यानी भयंकर कुपोषण का पैमाना. इसे पांच साल से कम उम्र के ऐसे बच्चों की गणना करके निकाला जाता है, जिनका वजन उनकी लंबाई के सापेक्ष कम होता है। चाइल्ड स्टंटिंग का पैमाना लगभग स्थायी कुपोषण को दर्शाता है।इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों से की जाती है, जिनका वजन उनकी उम्र के लिहाज से कम होता है। बाल मृत्युदर वास्तव में अपर्याप्त पोषण और अस्वस्थ वातावरण को भी सामने लाती है। इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर से की जाती है। आंशिक तौर पर ये पोषण की कमी से होने वाली मौतों का मिश्रित आंकड़ा होता है।

दुनिया में स्थिति :

2030 सतत् विकास एजेंडा के लक्ष्य 2 का उद्देश्य भूख और हर तरह के कुपोषण को मिटाना और खेती की उत्पादकता दोगुनी करना है। सबके लिए पौष्टिक आहार लगातार सुलभ कराने के लिए टिकाऊ आहार उत्पादन और खेती की विधियों की आवाश्यकता होगी। दुनिया के सभी देश एसडीजी हासिल करने की दिशा में काम करें यह जरूरी है ताकि पूरा विश्व इन लक्ष्यों को हासिल कर सके।

दुनिया भर की आबादी का 17.7% हिस्सा भारत में रहता है, यानी अगर भारत और भारतीयों के जीवन का सतत विकास नहीं होता है तब तक दुनिया भर में यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा, और भारत के अच्छे प्रदर्शन के लिए जरूरी है कि सरकार हर क्षेत्र में बेहतर कार्य करें। भुखमरी दूर करने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि हर किसी के पास स्वस्थ जीवन जीने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता वाला भोजन उपलब्ध हो।

दक्षिण एशिया पर भुखमरी का बोझ अब भी सबसे अधिक है। 28.1 करोड़ अल्पपोषित लोगों में भारत की 40 प्रतिशत आबादी शामिल है। हम अपना आहार कैसे उगाते और खाते हैं इस सबका भूख के स्तर पर गहरा असर पड़ता है, पर ये बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। अगर सही तरह से काम हो तो खेती और वन विश्व की आबादी के लिए आमदनी के अच्छे स्रोत, ग्रामीण विकास के संचालक और जलवायु परिवर्तन से हमारे रक्षक हो सकते हैं। खेती दुनिया में रोज़गार देने वाला अकेला सबसे बड़ा क्षेत्र है, दुनिया की 40% आबादी और भारत में कुल श्रमशक्ति के 54.6% हिस्से को खेती में रोज़गार मिला है।

भारत में स्थिति :

भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुछ राज्यों को छोड़कर लगभग सभी राज्यों में भुखमरी की स्थिति अत्यंत गंभीर है। भुखमरी से निजात पाने के लिये भारत द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन अधिकांश राज्यों का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं है। मात्र पाँच ऐसे राज्य हैं जो कि भूख की समस्या से निपटने के लिये सबसे अच्छा काम कर रहे हैं। ये पाँच राज्य हैं- पंजाब, केरल, गोवा, मिज़ोरम और नगालैंड। वहीं झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मेघालय तथा राजस्थान में यह समस्या लगातार बनी हुई है। भूख की समस्या से निजात पाने में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड, हरियाणा, तमिलनाडु और कर्नाटक समेत कई राज्यों का प्रदर्शन ठीक-ठाक है। भुखमरी खत्म करने में राज्य सरकारें विफल रही हैं, इस विफलता का एक प्रमुख कारण राज्यों और देश की आबादी को माना जा रहा है।

भुखमरी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास :

ऐसा नहीं है कि भुखमरी दूर करने के लिए भारत सरकार ने कार्य न किए हो बल्कि भारत सरकार ने अपने विभिन्न नीतियों और योजनाओं के द्वारा लगातार प्रयास किया है लेकिन अब तक परिणाम वही ढांक के तीन पात की तरह ही आया है। भारत ने राष्ट्रीय पोषण रणनीति की शुरुआत की थी जिसका उद्देश्य भारत में कुपोषण के मामलों में कमी लाना है। राष्ट्रीय पोषण मिशन बच्चों के विकास की निगरानी करने के साथ ही आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रदान किये जाने वाले खाद्य राशनों की चोरी की भी जाँच करता है। स्कूलों में शुरू कि गई

मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील योजना) का उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है , जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर सीधा तथा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अंत्योदय अन्न योजना भी सरकार के द्वारा चलाया जा रहा है जिसका उद्देश्य गरीब परिवारों को रियायती मूल्य पर भोजन उपलब्ध कराना है। जिसका लाभ दिख भी रहा है और बहुत से गरीबों को दो वक्त की रोटी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

2017-18 में शुरू किये गए पोषण अभियान का उद्देश्य विभिन्न कार्यक्रमों के बीच तालमेल और अभिसरण के माध्यम से स्टंटिंग, कुपोषण, एनीमिया और जन्म के समय शिशुओं में कम वज़न की समस्या को कम करना, बेहतर निगरानी और बेहतर सामुदायिक सहयोग स्थापित करना है। एकीकृत बाल विकास योजना की बात की जाए तो इसके द्वारा 0-6 वर्ष की आयु, गर्भवती महिलाओं और किशोरियों में बच्चों पर ध्यान केंद्रित करके बचपन की व्यापक देखभाल और विकास की परिकल्पना करती है। प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना के तहत, गर्भवती महिलाओं के बैंक खातों में 6,000 रुपए सीधे हस्तांतरित किये जाते हैं ताकि वे प्रसव हेतु बेहतर सुविधाओं का लाभ उठा सकें।

भारत की यह विडंबना रही है कि अन्न का विशाल भंडार होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी होते हैं। अगर इसके कारणों की पड़ताल करें तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव, अकुशल नौकरशाही, भ्रष्ट सिस्टम और भंडारण क्षमता के अभाव में अन्न की बर्बादी जैसे कारक सामने आते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है और सरकार इसका हल खोज पाने में असफल रही है। ऐसे में अब कोविड-19 महामारी के बीच भुखमरी की समस्या और भी भीषण बन गयी है। सौभाग्य से हमारे पास अन्न के पहाड़ मौजूद हैं, जिनका तीव्र और विवेकपूर्ण इस्तेमाल इस संकट को बड़ी हद तक सुलझा सकता है। लेकिन इसके वितरण की चुनौती को हल करना पड़ेगा। नहीं तो भारत की एक बड़ी आबादी कोरोना से बच जाएगी लेकिन भूख का सामना नहीं कर पाएगी।