
रविवार दिल्ली नेटवर्क
यूडाइस(यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफोर्मेशन सिस्टम फोर एजुकेशन) एक राष्ट्रीय डेटाबेस है, जो भारत के शिक्षा क्षेत्र से संबंधित आंकड़े और जानकारी एकत्र करता है। यूडाइस रिपोर्ट का उद्देश्य स्कूलों, स्कूलों में छात्र संख्या, शिक्षकों, विभिन्न सुविधाओं, और शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी प्रदान करना है। पाठकों को बताता चलूं कि यह रिपोर्ट शिक्षा नीति और योजना बनाने में सहायक होती है। हाल ही में आई यूडाइस-2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 140 ऐसे देश जिनकी आबादी से ज्यादा भारत में शिक्षक हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार यह एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत में शिक्षकों की संख्या कुछ देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा मानव संसाधन निवेश कर रहा है। यह पहली बार है जब देश में स्कूली शिक्षकों की संख्या एक करोड़ के पार हो गई है।केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफोर्मेशन फार सिस्टम एजुकेशन (यूडीआइएसई) प्लस की रिपोर्ट में बताया गया है कि किसी भी शैक्षणिक वर्ष में पहली बार शिक्षकों की संख्या में यह वृद्धि छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने और शिक्षकों की उपलब्धता में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। गौरतलब है क भारत के शिक्षा क्षेत्र में 2.9 लाख सरकारी स्कूलों में 2.6 लाख प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले शिक्षक कार्यरत हैं। यदि हम यहां पर शिक्षा तक पहुंच की बात करें तो रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 99% से अधिक बच्चे प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जो भारत में शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति को दर्शाता है। इतना ही नहीं, माध्यमिक शिक्षा का आंकड़ा भी बढ़ा है, जहां 80% से अधिक बच्चे 10वीं कक्षा तक पढ़ाई कर रहे हैं। भारत में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:30 के आसपास है, जो कि एक सामान्य स्तर पर माना जाता है, हालांकि, यह राज्यवार भिन्न हो सकता है। यदि हम यहां पर शिक्षा पर खर्च की बात करें तो भारत सरकार ने शिक्षा पर 2024-25 में लगभग 10.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान रखा है, जिसमें एनसीईआरटी, स्मार्ट क्लास, और डिजिटल शिक्षा जैसे पहल शामिल हैं। भारत में 13 लाख से अधिक सरकारी स्कूल और 2.6 लाख से अधिक प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें कुल मिलाकर 27 करोड़ से अधिक छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लड़कियों का नामांकन अब लगभग 50% हो चुका है, जो शिक्षा के क्षेत्र में लिंग समानता की दिशा में सकारात्मक कदम है।इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो लगभग 85% स्कूलों में पानी, शौचालय और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में इन सुविधाओं की कमी बनी हुई है।बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि शिक्षा के क्षेत्र में यह आंकड़े सुधार की दिशा में भारत की उपलब्धियों और चुनौतियों को दर्शाते हैं। बहरहाल, यह अच्छी बात है कि दुनिया के 140 ऐसे देश जिनकी आबादी से ज्यादा भारत में शिक्षक हैं, लेकिन किसी भी देश में अधिक संख्या में शिक्षक होना शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण पहलू जरूर हो सकता है, लेकिन कहना ग़लत नहीं होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता कई कारकों पर निर्भर करती है, और शिक्षक संख्या इसके एक हिस्से के रूप में काम करती है। यदि किसी देश में अधिक शिक्षक हैं, तो यह छात्रों के लिए अधिक व्यक्तिगत ध्यान, बेहतर कक्षाएं, और शिक्षण प्रक्रिया में लचीलापन सुनिश्चित कर सकता है, लेकिन इसके लिए अन्य बुनियादी पहलुओं की भी नितांत आवश्यकता होती है। मसलन, शिक्षकों का प्रशिक्षण एक बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी पहलू है। शिक्षकों का सही प्रशिक्षण और उनकी पेशेवर दक्षता भी जरूरी है। यदि शिक्षक अपने विषय में प्रवीण नहीं हैं, तो अधिक संख्या का कोई लाभ नहीं होगा। इसके अलावा, संसाधनों की उपलब्धता एक अन्य जरूरी पहलू है। शिक्षा के लिए आवश्यक संसाधन जैसे पुस्तकें, डिजिटल उपकरण, कक्षा का वातावरण और अन्य सुविधाएँ भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि शिक्षक और संसाधन दोनों मिलकर शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।यह भी एक तथ्य है कि सरकारी नीतियाँ, शिक्षण विधियाँ, और सुधार कार्यक्रम भी गुणवत्ता को कहीं न कहीं प्रभावित करते हैं। अगर शिक्षा नीति मजबूत नहीं है, तो शिक्षक और संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं हो पाता।समाज और परिवार का योगदान भी एक अन्य जरूरी और महत्वपूर्ण पहलू है। छात्रों के घर का वातावरण और समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता भी अहम होती है। एक अच्छा वातावरण छात्रों के विकास में मदद करता है। इसलिए, अधिक संख्या में शिक्षक होना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन उसे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की दिशा में कारगर बनाने के लिए समग्र सुधार की आवश्यकता है। अंत में यही कहूंगा कि शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए कई पहलुओं पर ध्यान दिया जा सकता है। मसलन, शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार, स्मार्ट क्लास रूम्स का निर्माण (तकनीकी उपकरण,ऑनलाइन संसाधन) बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक है। आज जरूरत इस बात की है कि पाठ्यक्रम को अपडेट करके उसे समकालीन समाज और भविष्य की आवश्यकताओं से जोड़ा जाए।केवल थ्योरी पर नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल और कौशल आधारित शिक्षा पर भी ध्यान दिया जाए। व्यावहारिक शिक्षा दिया जाना बहुत जरूरी है। शिक्षा में समावेशिता पर बल दिया जाना चाहिए। मसलन, गरीब, पिछड़े और विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जाएं, ताकि वे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें। इसके अतिरिक्त, विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के अनुरूप शिक्षा दी जानी चाहिए।मूल्य आधारित शिक्षा आज की महत्ती आवश्यकता है। मूल्य आधारित शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को समाज, देश और परिवार के प्रति जिम्मेदारी, सहानुभूति, इमानदारी, समानता, और न्याय जैसी मूलभूत विचारधाराओं को सिखाने का काम करती है। छात्र-छात्राओं को प्रेरणा और प्रोत्साहन शिक्षा को बेहतर बनाने में एक कारगर कदम साबित हो सकता है। इतना ही नहीं, गरीब और मिडिल क्लास परिवारों के बच्चों के लिए छात्रवृत्तियाँ और वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। आज स्कूलों की सुविधाओं में और भी अधिक सुधार किए जाने की आवश्यकता है, जैसे कि किताबों, प्रयोगशालाओं, और अन्य बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता आदि।