
अजय कुमार
अभी कुछ दिनों पूर्व दुबई में खेले गए एशिया क्रिकेट कप के एक मैच में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह से रौंद दिया था। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ था, ज़्यादातर मौकों पर भारत अपने दुश्मन देश को जंग के मैदान से क्रिकेट के मैदान तक में पटकनी देता रहता है। भारत और पाकिस्तान के बीच कई बार उस समय हॉकी से लेकर क्रिकेट तक के अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुकाबले होते रहे थे, जब दोनों देशों की सीमाओं पर तनाव या जंग जैसे हालात रहे थे। पूर्व में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर आज मोदी की सरकार, कोई इन अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों से किनारा नहीं कर सकती है। यह बात सब जानते और समझते हैं, लेकिन कुछ कथित बुद्धिजीवी और विपक्ष के नेता एशिया कप में भारत-पाक के बीच के मुकाबले ही आड़ लेकर मोदी सरकार को देश विरोधी साबित करने में लगे हैं। इसके लिए जनता को भड़काया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि भारत एशिया कप में पाकिस्तान के खिलाफ खेलने के लिए बाध्य था, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भाग लेना किसी भी क्रिकेट बोर्ड की जिम्मेदारी और समझौते का हिस्सा है। यदि भारत खेलने से इंकार करता तो कई स्तरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता, जिसमें आर्थिक, राजनैतिक और खेल जगत की प्रतिष्ठा प्रभावित होती। इस मुद्दे पर भारत में विरोध मुख्यतः राजनीतिक है, पर इसके पीछे आर्थिक, कूटनीतिक और खेल प्रबंधन की मजबूरियां भी हैं।
एशिया कप जैसा टूर्नामेंट इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) और एशियन क्रिकेट काउंसिल (एसीसी) द्वारा आयोजित होता है, जिसमें सदस्य देशों को अपनी टीम भेजनी पड़ती है और पूरे मैच शेड्यूल का पालन करना होता है। अगर भारत भाग नहीं लेता या पाकिस्तान के साथ खेलने से इंकार करता, तो भारत को टूर्नामेंट से बाहर कर दिया जाता और भविष्य के आईसीसी इवेंट्स में भारत की भागीदारी पर सवाल उठते। वहीं आर्थिक दृष्टि से, भारत-पाक मैच सबसे अधिक आकर्षण पैदा करता है, जिससे ब्रॉडकास्टिंग, स्पॉन्सरशिप और रेवेन्यू में भारी नुकसान होता। भारत की छवि वैश्विक क्रिकेट जगत में नकारात्मक होती और आईसीसी सख्त कदम उठाता, जैसे जुर्माना या बैन।
यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत-पाक मैच सबसे बड़े दर्शक संख्या, हाईएस्ट टीवी रेटिंग्स और स्पॉन्सरशिप डील्स का केंद्र है। भारत के न खेलने से आईसीसी और एसीसी को करोड़ों रुपये का नुकसान होता। आईसीसी में भारत की वित्तीय हिस्सेदारी घट जाती। अन्य टेलीविजन नेटवर्क और ब्रॉडकास्टर्स को री-नेगोशिएशन करनी पड़ती। दरअसल, इस बात को भुलाया नहीं जा सकता कि खेल प्रतियोगिताओं को लेकर भारत का रुख साफ है। पाकिस्तान से द्विपक्षीय मैच नहीं, पर बहुपक्षीय टूर्नामेंट्स में सरकार की अनुमति से खेलना ही पॉलिसी है। द्विपक्षीय सीरीज या पाक में टूर्नामेंट की बीजेपी/सरकार इजाजत नहीं देती, पर एशिया कप, वर्ल्ड कप जैसे टाइटल्स में भाग लेना ज़रूरी है, ताकि भारत की क्रिकेट रणनीति, रेपुटेशन और ग्लोबल पोजिशन सुरक्षित रहे।
बहरहाल, भारत में इस मैच को लेकर भारी विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक बयानबाजी की लहर देखी गई। प्रमुख विपक्षी दलों से लेकर राजनीतिक संगठनों आम आदमी पार्टी, शिवसेना, कांग्रेस आदि विरोध में सड़क पर उतर आए। पाक क्रिकेटर्स के पुतले जलाए गए। सुप्रीम कोर्ट तक याचिका गई, कि राष्ट्रहित से ऊपर नहीं है क्रिकेट। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज की तारीख में सीमा पार आतंकी घटनाओं के बाद आम भारतीय जनमानस में पाकिस्तान के खिलाफ मैच ही विरोध का प्रतीक बन गया है। स्पोर्ट्स को भावनात्मक तौर पर देखा जाता है। परिवारों, फौजी समुदाय और युवा वर्ग में मैच बहिष्कार की आवाज तेज हो जाती है। यही वजह है कि “राष्ट्रभक्ति बनाम रुपया” की बहस अब तक जारी है, जबकि केंद्र सरकार और बीसीसीआई बहुपक्षीय टूर्नामेंट्स में राजनीतिक दिशा-निर्देश का पालन करते हुए खेलने को मजबूर हैं। वहीं द्विपक्षीय खेल मुकाबलों में खेल अधिनियम के तहत बीसीसीआई और खेल मंत्रालय का तालमेल जरूरी है।
कुल मिलाकर भारत-पाक क्रिकेट विवाद राजनीति की रणभूमि बन चुका है, पर “खेल” की मजबूरी ऐसी है कि भारत आईसीसी या एसीसी के सामने पूरी तरह से मैच से पीछे नहीं हट सकता। भारत का न खेलना खिलाड़ियों के करियर, निवेश, और अगले वर्ल्ड इवेंट्स पर असर डालता। विरोध राजनीतिक है, पर पर्दे के पीछे खेल एवं आर्थिक हित ज्यादा ताकतवर हैं। इस मैच का विरोध भारत में कूटनीतिक और भावनात्मक स्तर पर है, लेकिन भारत को खेलने की मजबूरी उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता, वित्तीय निवेश और खेल प्रबंधन के कारण है। यदि भारत इनकार कर देता, तो भारी वित्तीय नुकसान, अंतरराष्ट्रीय सजा और भारत की क्रिकेट प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े होते।