- 11 जनवरी – इन्सुलिन की खोज के शताब्दी वर्ष पर विशेष
- दुनिया में मधुमेह से सबसे अधिक पीड़ित बच्चे भारत में
- दो डॉक्टर बहनें बन रही है देवदूत
गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : भारत बच्चों के मधुमेह की विश्व राजधानी बनने जा रहा है । अनुमान है कि वर्तमान में विश्व में 537 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और भारत में मधुमेह से पीड़ित बच्चों और किशोरों की आबादी दुनिया में सबसे अधिक है। भारत के बाद अमरीका में सबसे अधिक बच्चे डायबिटीज़ से पीड़ित हैं।भारत में मधुमेह पीड़ित बच्चों का औसत जीवन काल 25 वर्ष से भी कम है। इस प्रकार ये बच्चे असमय अकाल मृत्यु से काल के ग्रास बन रहें हैं ।
हालाँकि इन्सुलिन की खोज के शताब्दी वर्ष में भारत सरकार बच्चों के मधुमेह की गंभीरता को समझ इस दिशा में ढ़ोस प्रयासों में जुट गई है और प्रदेश सरकारों में गुजरात सरकार सर्व प्रथम बच्चों के मधुमेह की एक कारगर नीति घोषित कर सकती है। विश्व में डाक्टरों के संगठन आपी भी निकट भविष्य में अमरीका में होने वाले अपने सम्मेलन में इस विषय पर संज्ञान लेने पर गम्भीरता से विचार कर रहा हैं।
विश्व में सबसे पहले मधुमेह रोग के निदान हेतु सौ वर्ष पहलें 11 जनवरी 1922 को कनाडा के एक अस्पताल में एक बच्चे को ही इन्सुलिन की खुराक दी गई थी। मधुमेह से पीड़ित इस बच्चे का नाम लियोनार्ड थॉम्पसन था।मरणासन्न इस 14 वर्षीय बच्चे को इन्सुलिन की खुराक देने से हुई जीवन रक्षा के बाद दुनिया में इस क्रांतिकारी दवाई से करोड़ों लोगों के जीवन बचाया जा सका हैं।
दो डॉक्टर बहनें बन रही है देवदूत
गुजरात की दो डॉक्टर बहनें डॉ. स्मिता जोशी और डॉ शुक्ला रावल ने भारत में डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों की मदद का बीड़ा उठाया है । वे भारत में बच्चों के मधुमेह का निदान करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाने (टाइप वन ज्युवेनाईल डायबिटीज़) का वातावरण और जन जागरण अभियान चला रही हैं।
अपने इस मिशन को पूरा करने के लिए वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लगातार अपील कर रही हैं। साथ ही वे केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्री मनसुख भाई मंडाविया और गुजरात के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्री ऋषिकेश पटेल सहित भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के कई मन्त्रियों,वरिष्ठ अधिकारियों और देश-विदेश के चिकित्सकों तथा समाजसेवी संस्थाओं आदि से निरन्तर सम्पर्क में हैं।
टाइप वन ज्युवेनाईल डायबिटीज़ जन जागरण अभियान के सिलसिले में दोनों बहनें देश-दुनिया के विभिन्न भागों में जा रही हैं। इसी क्रम में उन्होंने कई बार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की यात्रा पर रही तथा उन्होंने गुजरात के राजकोट में ढाई हजार परिवारों के एक विशेष शिविर में जन जागरूकता का कार्य किया।
7500 किमी सेल्फ ड्राइव का कीर्तिमान
इसके पहलें वे कश्मीर से कन्या कुमारी और बाद में अमरीका में सेन फ़्रांसिस्को से अटलांटा तक 7500 किमी सेल्फ ड्राइव का कीर्तिमान बना डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों के लिए जन जागरूकता अभियान चला चुकी है।इस अभियान में उनके साथ पुत्र डॉ.राजा जोशी और डॉ.मन पंचोली भी पूरे मनोयोग के साथ जुटे हुए हैं। पिछलें दिनों उन्होंने पुनः अमरीका की यात्रा की और देश के विभिन्न प्रान्तों में भी गई।
दोनों डॉक्टर बहनें चाहती है कि इस शताब्दी वर्ष में बच्चों में मधुमेह की रोकथाम और निदान (टाइप वन ज्युवेनाईल डायबिटीज़) के लिए तत्काल एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाने की जरुरत है,क्योंकि एक अनुमान के अनुसार दुनिया में मधुमेह से सबसे अधिक पीड़ित करीब ढाई लाख बच्चे भारत में ही हैं।हालाँकि बीबीसी ने यह संख्या पन्द्रह लाख के आसपास बताई हैं।भारत के बाद मधुमेह से पीड़ित सबसे अधिक बच्चे अमरीका में है।
भारत में चल रहें स्वास्थ्य कार्यक्रमों में डाइबिटिज के ईलाज से लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों की उम्र तीस वर्ष से अधिक निर्धारित है,जिसके कारण डाइबिटिज पीड़ित बच्चे किसी भी योजना के अन्तर्गत लाभान्वित होने के पात्र नहीं हैं। गुजरात की इन दोनों चिकित्सक बहनों डॉ .स्मिता जोशी और डॉ. शुक्ला बेन रावल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को देश-विदेश में बच्चों में मधुमेह (टाइप-1 डायबिटीज ) के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भावुक पत्र लिख कर 11 जनवरी 2023 को “राष्ट्रीय मधुमेह बाल दिवस” घोषित करने का आग्रह भी किया था। मधुमेह पीड़ित बच्चों के सम्बन्ध में जन जागरूकता पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री के “मन की बात” कार्यक्रम में भी बार बार सन्देश दिया जा सकता हैं । डॉक्टर जोशी बहनों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक “युग पुरुष” बताते हुए लिखा हैं कि आपका स्पर्श मधुमेह पीड़ित बच्चों के स्वास्थ्य के लिए “पारस मणि” जैसा साबित होगा।
100 वर्षों के बाद भी, भारत में बच्चों के टाइप 1 मधुमेह के बारे में जागरूकता का अत्यधिक अभाव है। ज्यादातर लोग मानते हैं कि मधुमेह 50-60 साल की उम्र के बाद ही होता है और यह अमीर लोगों का राज रोग है लेकिन हकीकत में यह एक गलत धारणा है। भारत में जागरूकता के अभाव में अंधापन, गुर्दे की विफलता, हृदय गति रुकना आदि कारणों से बच्चों की समय से पहले मृत्यु की दर बहुत अधिक है।
दोनों डाक्टर बहनें मधुमेह से पीड़ित बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने के पुनीत कार्य में सभी से सहयोग की अपील कर रही हैं और उनका सुझाव है कि पर इस नीति की घोषणा किया जाना पूरी दुनिया के सामने भारत का मानवता के लिए एक बड़ा सन्देश साबित हो सकता है।