नीतीश के एक कदम की दूरी पर इंडिया तो दूसरी पर एनडीए

गोविन्द ठाकुर

‘”नीतीश कुमार की राजनीति को समझना हर किसी के बूते की बात नहीं है..वो दरबाजे के साथ साथ दो खिड़की भी खोल कर रखते हैं.. ना जाने कब जरुरत पड़ जाय़े..तभी तो बिहार में 2005 से सत्ता में बने हुए हैं..ललन सिंह से कमान लेकर नीतीश ने संकेत दे दिये हैं कि अगर उसे हल्के में लिया गया तो इंडिया वालों के लिए ना दिल्ली की गद्दी खाली होगी और ना ही पटना की..यह साफ है कि नीतीश कुमार की प्रेशर पोलिटिक्स जारी है.. पीएम मेटेरियल ना सही तो संयोजक बनाओ बरना खिड़की के पार मोदी हैं तैयार… ”
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति से सबसे ज्यादा चिंता विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में है। तभी राहुल गांधी ने नीतीश को फोन करके उनके मन की थाह लेने की कोशिश की थी। तब उन्होंने कहा था कि सब ठीक है। लेकिन बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता इस बात से नाराज हैं कि जब नीतीश ने ही समूचे विपक्ष को एकजुट किया तो उनको अभी तक विपक्षी गठबंधन का संयोजक क्यों नहीं बनाया गया? । नीतीश से पहले चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास किया था लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी। तभी नीतीश भी अपने को विपक्षी गठबंधन का स्वाभाविक नेता मान रहे थे। लेकिन चार बैठक के बाद भी उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली।

पिछली बैठक में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम की घोषणा कर दी, जिसका अरविंद केजरीवाल ने समर्थन किया। उसके बाद से नीतीश भाजपा के प्रति खुल कर प्रेम दिखाने लगे। बताया जा रहा है कि चौथी बैठक में कांग्रेस की ओर से नीतीश को संयोजक बनाने का प्रस्ताव किया जाना था। लेकिन ममता ने उस दिन अपना दांव चल दिया। अब कांग्रेस को चिंता हो गई है कि अगर नीतीश को संयोजक बनाया और उसके बाद उन्होंने पाला बदल दिया तब तो विपक्षी गठबंधन पूरी तरह से पंक्चर हो जाएगा। पिछले दिनों बिहार के नेताओं के साथ खड़गे और राहुल की बैठक हुई थी, जिसमें बिहार कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि बिहार में भाजपा को टक्कर देने के लिए नीतीश का साथ होना बहुत जरूरी है। उनके बगैर भाजपा से नहीं लड़ा जा सकेगा। तभी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी नेता नीतीश को लेकर दुविधा में हैं।

दूसरी ओर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने अस्तित्व का संकट है। वे राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल कर सरकार चला रहे हैं लेकिन राजद की ओर से उनको कमजोर करने की कोशिश हो रही है। वे भाजपा के साथ जाना चाहते हैं लेकिन भाजपा को भी पूरी तरह से सरेंडर चाहिए। जानकार सूत्रों का कहना है कि राजद और भाजपा दोनों बिहार की राजनीति से नीतीश फैक्टर को खत्म करना चाहते हैं। असल में बिहार की राजनीति में पिछले करीब तीन दशक से नीतीश कुमार एक धुरी बने हुए हैं और वह भी बिना किसी मजबूत जातीय आधार के। उन्होंने 1994 में समता पार्टी बनाई थी और तब से वे बिहार के राजनीति के सबसे अहम भूमिका में हैं।

लेकिन अब दोनों बड़ी पार्टियां- राजद और भाजपा उनको खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी ओर से ऐलान किया है कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के चेहरे पर लड़ा जाएगा। लेकिन बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद चाहते हैं कि नीतीश अभी तुरंत तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाएं। यह भी कहा जा रहा है कि पिछले साल अगस्त में जब नीतीश ने भाजपा को छोड़ा था तब लालू प्रसाद के साथ उनका समझौता हुआ था कि वे एक साल में तेजस्वी को गद्दी सौंप देंगे। सो, लालू की ओर से नीतीश पर भारी दबाव है। लालू परिवार के कई सदस्य राज्य की सत्ता का केंद्र बने हैं, इससे भी नीतीश को समस्या है। इसके अलावा लालू की पार्टी के विधायक और मंत्री जैसे सुनील सिंह, चंद्रशेखर, सुधाकर सिंह आदि लगातार नीतीश के खिलाफ बयान दे रहे हैं। लालू प्रसाद को लग रहा है कि अगर तेजस्वी अभी सीएम नहीं बने तो बेटे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखने की उनकी हसरत पूरी नहीं होगी और अगर नीतीश फैक्टर बने रहे तो मंडल, समाजवादी और पिछड़ों की राजनीति पूरी तरह से राजद के हाथ में नहीं आएगी।

दूसरी ओर भाजपा ने नीतीश फैक्टर को खत्म करने की कोशिश 2020 के विधानसभा चुनाव में भी की थी। तब वे भाजपा के साथ ही मिल कर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन भाजपा की शह पर चिराग पासवान ने नीतीश की पार्टी के हर उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया था। सोचें, तब नीतीश राजद-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ तो लड़ ही रहे थे लोक जनशक्ति पार्टी के भी खिलाफ लड़ रहे थे, जिसके पीछे भाजपा की ताकत थी। भाजपा के अनेक बड़े नेता लोक जनशक्ति पार्टी की टिकट से चुनाव लड़े थे। फिर भी नीतीश 43 सीट जीत कर आए। लेकिन वे काफी कमजोर हुए और राजद व भाजपा के बाद तीसरे नंबर की पार्टी रह गए।
तभी से वे भाजपा से बदला लेना चाहते हैं तो राजद को भी गद्दी नहीं देना चाहते हैं। इस बात को राजद और भाजपा दोनों ने समझा हुआ है। इसलिए कोई मौका नहीं देना चाहता है। भाजपा चाहती है कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ें, भाजपा का सीएम बनाएं तभी समझौता होगा। नीतीश सीएम रहते हुए तालमेल चाहते हैं और साथ ही लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव कराना चाहते हैं। वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि बाद में भाजपा फिर कोई चिराग पासवान टाइप का दांव न चले तो दूसरी ओर भाजपा चाहती है कि उनकी ऐसी हालत कर दी जाए कि वे फिर गठबंधन बदल ना सकें। इसलिए उनके एक तरफ कुआं और दूसरी ओर खाई है। दोनों में से कोई उनको सीएम नहीं रखना चाहता है।

नीतीश कुमार की यह खासियत है कि वे किसी समय राम मनोहर लोहिया, जेपी और कर्पूरी ठाकुर के चेले बन जाते हैं तो किसी समय दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी के गुणगान करने लगते हैं। कुछ समय पहले वे पटना में दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर फूल चढ़ाने गए। पिछले एक हफ्ते में वे अटल बिहारी वाजपेयी और अरुण जेटली को श्रद्धांजलि देने गए। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनका भाजपा प्रेम बहुत काम नहीं आ रहा है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पिघल नहीं रहा है और इस वजह से नीतीश को अच्छी डील नहीं मिल रही है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा इस बार न तो बराबरी का समझौता करने को तैयार है और न उनको मुख्यमंत्री रखने को तैयार है। पिछली बार यानी 2017 में जब नीतीश वापस लौटे थे तब भाजपा ने अपनी जीती हुई लोकसभा की छह सीटें छोड़ कर नीतीश से समझौता किया था। दोनों पार्टियां 17-17 सीटों पर लड़ी थीं। और भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री भी बनाए रखा था। इस बार कहा जा रहा है कि भाजपा ने उनसे कहा है कि वे मुख्यमंत्री पद छोड़ें, भाजपा का सीएम बनेगा और नीतीश अपना दो उप मुख्यमंत्री बना लें। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा ने उनको 10 लोकसभा सीट का प्रस्ताव दिया है। इसमें ज्यादा से ज्यादा दो की बढ़ोतरी हो सकती है। भाजपा अकेले 20 सीट लड़ना चाहती है और लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़ों, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनता दल को गठबंधन में बनाए रखना चाहती है। वह मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी को भी गठबंधन में लाने की बातचीत कर रही है। इसके अलावा भाजपा लोकसभा के साथ विधानसभा का चुनाव कराने को तैयार नहीं है। इस तरह वह नीतीश को कमजोर करने की सुनियोजित रणनीति पर काम कर रही है।

इन तमाम नीतीशी राजनीति से इंडिया गठबंधन हलकान हो रही है, खासकर कांग्रेस नहीं चाहती है कि नीतीश अपना दूसरी खिड़की खोले वरना गठबंधन के सारे खिड़की खुल जायेंगे.. भले ही नीतीश चाहे तो तो कांग्रेस और राजद कुछ और सेक्रीफाईस करने को तैयार है। इस तरह नीतीश के एक ,चाल से दोनों हाथों में लड्डू है।