सुनील कुमार महला
16 मार्च को पूरे देश में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस(नेशनल वैक्सीनेशन डे) मनाया जाता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि यह वर्ष 1995 से हर साल 16 मार्च को मनाया जाने वाला एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है।इसे राष्ट्रीय प्रतिरक्षण दिवस के नाम से भी जाना जाता है, क्यों कि टीकाकरण से हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। वास्तव में, यह दिवस टीकाकरण(वैक्सीनेशन)के महत्व और सार्वजनिक स्वास्थ्य में इसकी भूमिका को बताने के क्रम में मनाया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि टीकाकरण की जीवन को बचाने में बहुत ही महत्वपूर्ण व अहम् भूमिका होती है। टीकाकरण के कारण ही वर्ष 1980 में चेचक का उन्मूलन, उसके बाद कई देशों से पोलियो का उन्मूलन हो सका है, वास्तव में यह वैश्विक टीकाकरण प्रयासों की प्रभावशीलता का प्रमाण है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि साल 2024 में विश्व टीकाकरण सप्ताह की थीम ‘मानवीय रूप से संभव: टीकाकरण के ज़रिए जीवन बचाना’ रखी गई थी।’सभी के लिए टीकाकरण मानवीय रूप से संभव है’ के बैनर तले, विश्व टीकाकरण सप्ताह 2025 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि और भी अधिक बच्चे, किशोर, वयस्क – और उनके समुदाय – टीके से रोके जा सकने वाली बीमारियों से सुरक्षित रहें। कहना चाहूंगा कि ये टीके ही हैं जो हमारे ज्यादा जीवन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। बहरहाल, 16 मार्च को इस दिवस को मनाने के पीछे कारण यह है कि इसी दिन सबसे पहले वर्ष 1995 में भारत में ‘ओरल पोलियो वैक्सीन’ की पहली खुराक वितरित की गई थी।कार्यक्रम के अनुसार, 0 से 5 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को पोलियो वैक्सीन की 2 मौखिक बूंदें प्रदान की गईं और इसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2014 में भारत पोलियो मुक्त देश बन गया। वास्तव में, यह दिन भारत सरकार के ‘पल्स पोलियो अभियान’ का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है, जो पूरे देश से पोलियो को मिटाने,इसे ख़त्म करने की एक नायाब व बड़ी पहल थी। राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य कर्मियों को धन्यवाद देने का एक सही अवसर है जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हम हमेशा स्वस्थ रहें। टीकाकरण से कई खतरनाक और संक्रामक रोगों को रोका जा सकता है। कुछ बीमारियों में तो टीकाकरण आजीवन स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करता है। पाठकों को बताता चलूं कि टीकाकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शरीर में वैक्सीन डाली जाती है, ताकि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके। गौरतलब है कि टीकों में सूक्ष्मजीव और वायरस मृत या जीवित अवस्था में होते हैं। टीकाकरण (वैक्सीनेशन) हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को उत्तेजित करता हैं और बीमारियों की रोकथाम करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो टीकाकरण, बीमारियों के नियंत्रण और उन्मूलन के लिए सबसे प्रभावी और लागत-कुशल कार्यक्रमों में से एक है, जो हर साल दुनिया भर में लाखों लोगों की जान बचाता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व टीकाकरण दिवस, जो हर साल 10 नवंबर को मनाया जाता है, का उद्देश्य संक्रामक रोगों से बचाव और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा में टीकों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दुनिया के हर देश में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम मौजूद हैं और टीकों को मौतों को रोकने और जीवन को बेहतर बनाने के लिए सबसे सुरक्षित, सबसे किफ़ायती और सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों में से एक माना जाता है। भारत में आज अनेक वैक्सीन निर्माण इकाइयां स्थापित हैं। पाठकों को बताता चलूं कि भारत ने 16 जनवरी 2021 में कोविड-19 के विरुद्ध दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया और देश अपनी कुल आबादी के 61.3 प्रतिशत लोगों का पूर्ण टीकाकरण करने में सफल रहा है।यह विशाल प्रयास, देश भर में टीकाकरण अभियान से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों और स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं के योगदान से सम्भव हुआ। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान में भारत ने 200 करोड़ वैक्सीन का आंकड़ा पार किया। जहां विश्व के कई देश अभी भी कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं, भारत ने टीकाकरण का बड़ा लक्ष्य हासिल करके न सिर्फ कीर्तिमान बनाया है, बल्कि दुनिया के कई देशों को राह भी दिखाई है।कोविड महामारी में भी मानव जाति पर आए इस संकट की घड़ी में दुनिया को वैक्सीन की भरपूर सप्लाई करके भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत वैक्सीनेशन व वैक्सीन निर्माण में विश्व का एक अग्रणी देश है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के वैक्सीनेशन कार्यक्रम में साठ फीसदी टीके भारत में ही बनते हैं,जो दर्शाता है कि भारत टीका निर्माण में विश्व का एक सिरमौर देश है।आज भारत में टीकाकरण के लिए कई टीके उपलब्ध हैं। इनमें क्रमशः खसरा, टेटनस (धनुष बाय), पोलियो, क्षय रोग, गलघोंटू, काली खांसी, हेपेटाइटिस-बी, रोटावायरस,एचपीवी(गर्भाशय ग्रीवा कैंसर रोकने के लिए) शामिल हैं।टीकाकरण न केवल लोगों की सुरक्षा करता है, बल्कि जन-समुदाय प्रतिरक्षा का निर्माण करके सामुदायिक स्वास्थ्य को भी मजबूत करता है। पीआईबी पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार टीकाकरण दशकों से भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति का केंद्र-बिंदु रहा है, जिससे बीमारी के प्रसार और बाल मृत्यु दर को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि (यूआईपी) भारत की सबसे व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में से एक है, जिसका लक्ष्य हर साल लाखों नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं को जीवन रक्षक टीके उपलब्ध कराना है। वर्ष 1978 में टीकाकरण के विस्तारित कार्यक्रम के रूप में शुरू किये गए इस अभियान को वर्ष 1985 में यूआईपी के रूप में पेश किया गया। इसका कवरेज शहरी केंद्रों से ग्रामीण क्षेत्रों तक बढ़ाया गया, जिससे स्वास्थ्य सेवा पहुंच में असमानताओं को दूर किया जा सके। वर्ष 1992 में, यूआईपी को बाल जीवन रक्षा और सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम में और बाद में, 1997 में राष्ट्रीय प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में शामिल किया गया। वर्ष 2005 से, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत, यूआईपी भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों का एक केंद्रीय घटक बन गया है, जो यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करता है कि टीके देश के सबसे दूरदराज के हिस्सों में भी हर बच्चे तक पहुँचें। यहां यदि हम आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2023-24 के लिए देश का पूर्ण टीकाकरण कवरेज राष्ट्रीय स्तर पर 93.23% है।दिसंबर 2014 में शुरू किया गया मिशन इंद्रधनुष (एमआई), भारत सरकार की एक रणनीतिक पहल है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में बच्चों के लिए पूर्ण टीकाकरण कवरेज को बढ़ाना है और 90% कवरेज लक्ष्य को हासिल करना है। मिशन इंद्रधनुष विशेष रूप से कम टीकाकरण दर वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें दुर्गम क्षेत्र और ऐसे समुदाय शामिल हैं, जहाँ बच्चों को या तो टीका नहीं लगाया गया है या आंशिक रूप से टीका लगाया गया है। यह मिशन एक लक्षित दृष्टिकोण अपनाता है और उन जिलों तथा क्षेत्रों को प्राथमिकता देता है जहाँ टीकाकरण का स्तर कम है। बहरहाल, भारत में यू-विन पोर्टल की भी शुरुआत की गई है। गौरतलब है कि यू-विन पोर्टल भारत के टीकाकरण प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत गर्भवती महिलाओं और जन्म से लेकर 17 वर्ष तक के बच्चों के टीकाकरण का पूरी तरह से डिजिटल रिकॉर्ड उपलब्ध कराता है। इस डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उद्देश्य वैक्सीन वितरण और रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति आसानी से अपने टीकाकरण रिकॉर्ड तक पहुँच सके और इसका प्रबंधन कर सके। अंत में यही कहूंगा कि यह उम्मीद की जा सकती है कि वर्ष 2025 की थीम सार्वभौमिक टीकाकरण कवरेज प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली दोनों की ओर से सामूहिक भागीदारी व जिम्मेदारी पर जोर दे सकेगी।यह एक सार्वभौमिक तथ्य है कि एक बड़ी आबादी का टीकाकरण करके, हम न केवल संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकते हैं, बल्कि हमारे बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों, बच्चों सहित कमजोर समूहों के स्वास्थ्य की भी रक्षा करते हैं। इतना ही नहीं,जागरूकता बढ़ाने के अलावा, राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस टीकों से जुड़ी मिथकों और गलत धारणाओं को दूर करने में भी मदद करता है। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि टीकाकरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से वंचित और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक पहुँचने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम, मिशन इंद्रधनुष और यू-विन पोर्टल जैसी पहलों के माध्यम से, देश ने टीकाकरण कवरेज बढ़ाने, टीके से रोके जा सकने वाली बीमारियों से निपटने और बाल मृत्यु दर को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। टीकाकरण (यह) हमारे देश को विभिन्न जटिल स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने में देश की क्षमता को रेखांकित करता है। तो आइए ! हम टीकाकरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाएं और देश की स्वास्थ्य प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें, क्यों कि एक स्वस्थ आबादी ही विकास की असली निशानी है।