अच्छा न खेलने, रणनीति को अमली जामा न पहनाने के कारण जर्मनी से सेमीफाइनल हारे : श्रीजेश

India lost the semi-final to Germany due to poor performance and poor execution of strategy: Sreejesh

ध्यान अर्जेंटीना के खिलाफ जीत के साथ कांसा जीतने पर लगाएं

सत्येन्द्र पाल सिंह

चेन्नै : देश को लगातार पिछले दो ओलंपिक -टोक्यो (2020) और पेरिस (2024) में बतौर गोलरक्षक कांसा जिताने के बाद अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने वाले पीआर श्रीजेश का भारत की जूनियर टीम के चीफ कोच के रूप में यहां चल रहा एफआईएच जूनियर पुरुष हॉकी विश्व कप 2025 पहला बड़ा टूर्नामेंट है।सबसे ज्यादा सात बार जूनियर पुरुष हॉकी विश्व कप जीत चुकी जर्मनी के हाथों भारतीय टीम की अपने मार्गदर्शन में रविवार को सेमीफाइनल में हार पर उन्होंने साफ कहा , ‘ हम जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल अच्छा न खेलने, बहुत गलतियां करने, आसान गोल खाने और अपनी रणनीति को अमली जामा न पहना पाने के कारण हारे। जर्मनी जैसी टीम को जब आप आसान गोल करने का मौका देते तो फिर वह वापसी का मौका नहीं देती। हमें जर्मनी के खिलाफ उसकी शैली से खेलने की बजाय अपना ताकत और अपने खेल पर भरोसा खेलना चाहिए। हमारी टीम की अपनी अलग ताकत है और जर्मनी की अपनी। जर्मनी से सेमीफाइनल में हार पर रुदन की बजाय मैं अब अपनी टीम के खिलाड़ियों से यही कहूंगा कि अपना पूरा ध्यान अर्जेंटीना के खिलाफ कांस्य पदक मैच जीतने पर लगाए क्योंकि जूनियर विश्व कप से खाली हाथ लौटने ज्यादा दर्द देगा। कांस्य पदक के साथ जूनियर पुरुष विश्व कप से विदा होना खाली हाल लौटने से बेहतर होगा। अर्जेंटीना के खिलाफ कांस्य पदक के लिए मैच में उतरने पर मेरी अपनी टीम को बस यही सलाह है कि वे उसके खिलाफ जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल की गलतियों को दोहराने से बचे और उसे बीच मैदान से उसे हमले बोलने का मौका न दें।’

उन्होंने कहा,‘हमारे खिलाड़ियों के शुरू में गोल खाने के बाद वापसी करना मुश्किल हो गया। जहां तक हमारे जर्मनी से यह सेमीफाइनल 1-5 के बड़े अंतर से हारने की बात है तो मेरा मानना है कि हार जीत बहुत मायने रखती है। फिर चाहे आप 0-1 से हारे यह फिर 0-10 से हार तो हार ही है। बावजूद इसके इस बात पर गौर करना ज्यादा जरूरी है कि आप किस तरह से हारे। हमें लंबी गहरी सांस लेकर इस हार की विवेचना कर इससे सबक लेकर आगे बढ़ने की जरूरत होती है। केवल सेमीफाइनल हार से टीम घटिया या कमजोर नही हो जाती ।जब आप टीम में बतौर टीम उतरते हैं तो कामयब होने या जीत के लिए सभी के संयुक्त प्रयास की जरूरत है। जब आप कोई मैच हारते हैं चाहे वह सेमीफाइनल हो या कोई अन्य मैच तो आपको यह मानना चाहिए की आपसे आपकी प्रतिद्वंद्वी टीम बेहतर खेली। उसने मौकों को भुनाया वह इसीलिए जीतने में कामयाब रही। बतौर टीम कामयाबी या फिर यूं कहिए की जीत के लिए आपको मिल कर प्रतिद्वंद्वी टीम पर हमले बोलने, हमले की योजना बनाने के साथ अपने किले की मजबूती से चौकसी की भी जरूरत होती है। हमने जर्मनी के खिलाफ शुरू में न तो गोल करने के मौके बनाए न ही पेनल्टी कॉर्नर बनाए। जर्मनी ने इसके उलट हमारे खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर बनाने के साथ गोल करने के मौके बनाए और वह इसीलिए सेमीफाइनल जीतने में कामयाब रही। हमने आखिरी क्वॉर्टर में जिस तरह पेनल्टी कॉर्नर बना गोल किया यदि हम पहले ही क्वॉर्टर में ऐसा करते तो गोल कर सकते थे। हमने जर्मनी के खिलाफ शुरू में न खुद गोल करने के मौके बनाए बल्कि उसे इसके मौके दिए।

उन्होंने कहा , ‘जहां तक बतौर कोच मेरी बात है तो मैंने हमेशा कहा की एक बार टूर्नामेंट के लिए पहुंचने पर मेरा काम खत्म हो जाता है। टूर्नामेंट में खेलने उतरने पर हमारे खिलाड़ियों को हमने जो कुछ भी शिविर में तैयारी और मेहनत की होती है उससे टूर्नामेंट में हमें बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलती है। अपनी इस मेहनत को खिलाड़ियों को मैदान पर दिखाने की जरूरत होती है। हमने जो योजना बनाई होती है तो उसे मैदान पर दिखाने की बारी होती है। टूर्नामेंट में खेलने उतरने पर हम अपने खिलाड़ियों को फोकस होकर अपना सर्वश्रेष्ठ देने के साथ यह बताते हैं उसे कहां क्या और बेहतर करने की जरूरत है। मेरा भारतीय जूनियर हॉकी टीम के चीफ कोच के रूप में यह पहला टूर्नामेंट था और मैंने भी इस टूर्नामेंट में हर मैच से बहुत कुछ सीखा। मैंने भी जाना भी मुझे आगे क्या बेहतर करने की जरूरत है। मैं आगे भी हर टूर्नामेंट से सीख कर बतौर कोच भारतीय टीम के सीख कर और बेहतर करने की की पुरजोर कोशिश करुगा।अर्जेंटीना के खिलाफ बुधवार को कांस्य पदक के लिए मैच में उतरने पर मेरी अपनी टीम को बस यही सलाह है कि वे उसके खिलाफ जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल की गलतियों को दोहराने से बचे और उसे बीच मैदान से उसे हमले बोलने का मौका न दें। हमारी टीम ऐसा करती है तो बेशक कांसा पदक जीत सकती है।‘