
प्रीति पांडे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हो रही है। यह यात्रा विशेष रूप से ऐतिहासिक है, क्योंकि यह मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ और भारत-मालदीव राजनयिक संबंधों के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित की गई है।
प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को मालदीव की राजधानी माले पहुंचे, जहां मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने स्वयं एयरपोर्ट पर पहुंचकर उनका भव्य स्वागत किया। राष्ट्रपति मुइज्जू के साथ उनके कैबिनेट के कई मंत्री भी उपस्थित रहे। यह राष्ट्रपति मुइज्जू के कार्यकाल में किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की पहली राजकीय यात्रा है।
एक्स (X) पर साझा की खुशी
माले पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा,
“मैं माले पहुंच गया हूं। मुझे बहुत खुशी है कि राष्ट्रपति मुइज्जू एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए आए। मुझे पूरा विश्वास है कि भारत और मालदीव के रिश्ते आने वाले समय में नई ऊंचाइयों को छुएंगे।”
इससे पहले भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस यात्रा को लेकर पोस्ट किया और इसे भारत-मालदीव संबंधों के लिए महत्वपूर्ण क्षण बताया।
कूटनीतिक और सुरक्षा साझेदारी पर फोकस
प्रधानमंत्री मोदी मालदीव की स्वतंत्रता की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेंगे। दोनों देशों के बीच समुद्री सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, बुनियादी ढांचे के विकास और रक्षा साझेदारी जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है।
अक्टूबर 2024 में राष्ट्रपति मुइज्जू की भारत यात्रा के दौरान स्थापित “व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी” को आगे बढ़ाने के लिए भी दोनों नेता कार्य योजना की समीक्षा करेंगे।
ऐतिहासिक रिश्तों की गहराई
भारत और मालदीव के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध हैं। 1965 में मालदीव की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाला भारत पहला देश था। 1988 में मालदीव में तख्तापलट के प्रयास को विफल करने के लिए भारत की त्वरित सैन्य कार्रवाई ने दोनों देशों के बीच विश्वास को नई मजबूती दी थी।
भविष्य की साझेदारी की ओर
प्रधानमंत्री मोदी की यह तीसरी मालदीव यात्रा न केवल कूटनीतिक दृष्टि से बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह दौरा भविष्य में दोनों देशों के संबंधों को बहुआयामी साझेदारी में बदलने की दिशा में एक निर्णायक कदम सिद्ध हो सकता है।