भारत को नेताओं की नहीं सर्जेताओं की जरूरत

(कर्मयोगी समाज सुधारक मेवालाल पाटीदार से बातचीत)

नरेंद्र तिवारी

राष्ट्र को अब नेताओं की नहीं सर्जेताओं कि आवश्यकता है। देश की संसद में जारी दिशाहीन बहस, नेताओं के अमर्यादित भाषण नागरीक समाज को दिग्भर्मित कर रहें हैं। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए जाति, धर्म, भाषा, श्रेतीयता जैसे कमजोर बंधनो से उभरकर राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने संम्बंधी विषयो पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं। यह कहना है संत पुरुष, कर्मयोगी, तपस्वी पंडित मेवालाल जी पाटीदार का वें भारत सरकार के उपराष्ट्रपति से संत-ईश्वर सम्मान से सम्मानित हुए है। बड़वानी जिले की सेंधवा तहसील में मुम्बई आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा संचालित गायत्री धाम जामली की स्थापना से लेकर उसकी प्रगति के प्रमुख स्तम्भकार रहें है। उनके समक्ष राष्ट्रीय एकता, राजनीतिक दलों के आचरण, वर्तमान दौर में विज्ञान का महत्व, पर्यावरण संरक्षण हेतु पौधारोपण का महत्व, मानवीय आचरण में आ रही गिरावट, समाज मे बढ़ती अश्लीलता जैसी अनेकों शंकाए प्रकट की गई। उन्होंने सभी का समाधानपरक उत्तर भी दिया।

शंका- भारत आजादी का अमृत महोत्सव बना रहा है, आजादी संघर्षों, बलिदानों से प्राप्त हुई है। अनेकता में एकता संविधान की मूल विशेषता एवं आजादी का मूल तत्व है, धार्मिक, जातीय, भाषाई कट्टरता के परिणाम स्वरूप धर्म और जातियों में आक्रमकता देखने को मिल रही है, यह आक्रमकता राष्ट्रीय एकता में बिखराव के रूप में देखी जा रही है।

समाधान- आजादी बहुत कीमती है, हमारे संत सुधारक और शहीदों ने इसे बडे संघर्षों से प्राप्त किया है। भारत के नागरिकों को धर्म, पंथ, जाति की भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्र के संविधान का आदर करें। हमारी नैतिक जवाबदेही को समझे। राष्ट्रीय पर्वो पर भी उतना ही उत्साह, उल्लास, उमंग रहना चाहिए जो हमारे धार्मिक, जातीय उत्सवों के दौरान रहते है। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान राष्ट्र को समृद्ध और सशक्त बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें धार्मिक, जातीय भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय चरित्र का विकास करना होगा। नागरीको को यह ध्यान रखना चाहिए कि सरकारों तक या व्यवस्था तक कोई बात पहुचाने के तरीके हिंसात्मक, ध्वंसात्मक न हो, आमतौर पर देखा गया है कि राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक आंदोलनों में राष्ट्रीय संपत्तियों को नुकसान पहुचाने की घटनाएं घट रही है। सार्वजनिक संपत्तियों की रक्षा नागरिकों का मौलिक दायित्व है। आंदोलन और प्रदर्शनों का तरीका संवैधानिक होना चाहिए। भारत राष्ट्र अपना शिखर ध्वज विश्व पटल पर तभी फहरा सकता है जब नागरीको में राष्ट्रीय चरित्र विकसित होगा।

शंका-जय जवान जय किसान का राष्ट्रीय नारे को भारत के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान के रूप आगे बढाया। विज्ञान समाज के लिए वरदान है या अभिशाप एक संत समाज सुधारक के रुप मे विज्ञान को कैसे देखते है।

समाधान- विज्ञान निश्चित रूप से जनजीवन की समस्याओं को आसान बनाने का माध्यम है। विज्ञान अध्यात्म और समाज का मित्र है, फर्क यह है की हम इसका प्रयोग कैसे करतें है। आज विज्ञान के आविष्कारों ने मॉनव जीवन के श्रम को कम किया है। विज्ञान ने ही संचार क्रांति के माध्यम से मनुष्य के जीवन को आसान और सुविधा सम्पन्न बनाया है। यातायात के साधनों ने दुनिया मे एक स्थान से दूसरे स्थान की पहुच को सुगम किया है। घरैलु जीवन मे भी विज्ञान का महत्व बढ गया है। विज्ञान उपयोगवादी होना चाहिए। जब विज्ञान भोगवादी हो जाएगा नुकसानदेह हो जाएगा। वैज्ञानिक भी इस सच्चाई से परिचित है कि मोबाइल से निकलने वाली विकिरण, अलग-अलग उपग्रहों की तरंगें मॉनव मन, बालमन, पर्यावरण, पशु पक्षी को गहरा आघात पहुचाते है। बच्चो के स्वास्थ्य एवं मानसिकता पर इन किरणों तरंगों का बहुत प्रभाव पड़ रहा है। जिससे बाल अपराध, बाल आत्महत्या, अनिद्रा, बाल नपुसंकता, छोटी उम्र में असाध्य रोग, नेत्र ज्योति कम होना। कम उम्र में शुगर, बीपी जैसी बीमारियां होना विज्ञान के दुष्प्रभाव है। विज्ञान मर्यादा में है तो हमारा मित्र है, बेलगाम विज्ञान मॉनव का शत्रु है। विज्ञान महावतार है जो सभी प्रकार की शक्तियों के साथ विनाश खड़ा करने में भी समर्थ है। विज्ञान के बढ़ते आविष्कारों ने मानवीय ऊर्जा, इंसानी श्रम का उपयोग कम कर दिया है। मॉनव की ऊर्जा का उपयोग भी होना चाहिए। मनुष्य श्रम का नियोजन भी होना चाहिए। विज्ञान का मर्यादा में उपयोग कर हम उसे विनाश से सर्जन की ओर ले जा सकते है।

शंका- भारत मे राजनीतिक दल नागरिक समाज के मार्गदर्शन का कार्य करते थै, वर्तमान दौर के लगभग सभी दलों में मूल्यहीनता, सिद्धान्तहीनता व्याप्त हो गयी है। नागरिक समाज दिशानिर्देशित होने के स्थान पर दिशाभ्रम का शिकार हो गया है। एक समाज सुधारक के रूप में कैसे देखते है।

समाधान-राजतंत्र समाज तंत्र के भौतिक ढांचे को व्यवस्थित करने के लिए जन-जन की गाड़ी कमाई का सर्जनतन्त्र है। समाज मे नेता तो मिल जाते है। सृजेता नहीं मिलते। राष्ट्र को नेताओ की नहीं सर्जेताओं की आवश्यकता है। राष्ट्र में नेताओं के माध्यम से चार गुण विकसित होते है। एकता, सुचिता, समता और ममता आज समाज मे इन चारों गुणों का अभाव देखा जा रहा है। सासंद में जिस प्रकार का शोर शराबा व्याप्त है। आदर्श खत्म से हो गए है। सांसद की बहस देखकर मन दुखी हो रहा है। आम मतदाता अपने नेताओं के इन आचरणों से व्यथित है। आज से 50 वर्ष पूर्ण नेताओं के भाषण सुनने जनता बिना प्रबंधन पहुचती थी। आज नेताओं को उधोगपतियों का सहारा लेना होता है। प्रबंधन करना पड़ता है। मतदान का अर्थ बदल गया है। मतदान में प्रलोभन, व्यसन, लालच समाहित हो गए है। नेताओ में चरित्र का अभाव है। चाणक्य ने दीपक की रोशनी में कुटिया से देश चलाया है। भरत ने चरण पादुकाओं को आदर्श मानकर न्याय का शासन स्थापित किया है। राजनीति में मूल्यों का होना बहुत जरूरी है। भारत को शिखर राष्ट्र बनना है तो नेताओं के स्थान पर राष्ट्र को सर्जेताओं के हाथों में नैतृत्व सौपना होगा। चरित्रवान राष्ट्र सृजेता भारत को विश्व शक्ति बना सकते है।

शंका- मानव समाज ने जंगल के जीवन से प्रजातांत्रिक समाज तक की यात्रा की है। मनुष्य सभ्यता के इस विकास से हर्षित और उल्लासित भी है। किंतु समाज मे घटित घटनाएं मनुष्य समाज में व्याप्त मूल्यहीनता को प्रकट कर रही है। मणिपुर की घटना मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट की प्रतीक है। इस घटना से राष्ट्र शर्मिदा हुआ है। मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट को कैसे देखते है।

समाधान- निश्चित है व्यक्ति परिवार और समाज यह तीनों मिलकर राष्ट्र बनता है। किसी राष्ट्र की जनसख्या उसकी उपलब्धि नही है। मॉनव इस समय नैतिक बौद्धिक ओर सामाजिक दृष्टि से जिस पतन के रास्ते पर खड़ा हुआ है। समाज मे घटित घटनाओं में पर्दे के पिछे नेताओं और प्रशासन की भूमिका रहती है। समाज मे चारित्रिक गिरावट चिंता का विषय है। मणिपुर की घटना सभ्य समाज को कलंकित करने वाली है। यह समाज मे संस्कार की कमी की परिचायक है। मॉनव समाज को शील सदाचार और संयम की जरूरत है। राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण संस्कारो से ही सम्भव है।

शंका-बढ़ता शहरीकरण पर्यावरण के लिए खतरा बना हुआ है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर समाज को क्या सन्देश देना चाहेंगे।
समाधान-शांति कुंज हरिद्वार से पूरे भारत और विश्व मे वृक्ष गंगा अभियान चलाया जाता है। इस अभियान में हमारा मुख्य कार्य जल, जंगल, जमीन का संरक्षण, संवर्धन एवं उन्नयन करना होता है। उसके तहत तरु मित्र महायज्ञ, तरु वाटिका को विकसित करते है। मॉनव जीवन के विकास में पर्यावरण की महती भूमिका है। मनुष्य ने बढ़ते आधुनिकीकरण की आड़ में जंगलों को नष्ट किया, जल स्त्रोतों को नष्ट किया है। सीमेंट के जंगलों में खड़ा मनुष्य अपनी प्रगति पर इतरा जरूर रहा है। किन्तु असली प्रगति वास्तविक विकास पर्यावरण के संरक्षण से ही सम्भव है। गायत्री परिवार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहा है। प्रकृति मनुष्य को बेहतर जीवन देती है। इसकी रक्षा करना मानवता का परम दायित्व है। उन्होंने आधुनिकता के नाम पर समाज मे बढ़ती अश्लीलता पर भी चिंता व्यक्त की उनका कहना था कि समाज को संस्कारों ओर चरित्र निर्माण की जरूरत है। नव सर्जन की जरूरत है। इस हेतु भारत को सर्जेताओं की आवश्यकता है।