दिल्ली के हैदराबाद हाउस में हुए भारत-रूस शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और रूस के बीच कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। यह शिखर सम्मेलन केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि 2030 तक के आर्थिक, ऊर्जा, रक्षा और क्रिटिकल मिनरल्स सहयोग का रोडमैप है, जो डॉलर वर्चस्व को चुनौती देता हुआ रुपये-रूबल युग की घोषणा करता है। रुपये-रूबल व्यापार और बहु-मुद्रा व्यवस्था डॉलर प्रभुत्व को चुनौती दे रही है जबकि रियायती ऊर्जा, परमाणु सहयोग और संयुक्त उत्पादन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को सुदृढ़ कर रहे हैं।
योगेश कुमार गोयल
विश्व राजनीति की जटिलताओं और शक्ति-संतुलन के नए उभार के बीच कुछ संबंध ऐसे होते हैं, जो समय के साथ अपनी प्रासंगिकता को विस्तार देते हुए नई दिशाएं निर्धारित करते हैं। भारत और रूस का रिश्ता ऐसे ही संबंध का उदाहरण है, जो युद्धों, तकनीकी क्रांतियों, आर्थिक परिवर्तन और वैश्विक संरेखणों के अनेक चक्रों से गुजरते हुए भी ध्रुव तारे की तरह स्थिर बना रहा है। यह स्थिरता वैश्विक परिदृश्य में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, रूसी विश्वास और दोनों देशों के साझा हितों का परिणाम है। नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में 5 दिसंबर को आयोजित 23वें वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन ने इस ऐतिहासिक स्थिरता को पुनर्पुष्ट करते हुए भविष्य की दिशा स्पष्ट कर दी। यह रिश्ता अब अतीत का बोझ नहीं, भविष्य की वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में एक सक्रिय और आवश्यक घटक है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-रूस संबंधों को ‘ध्रुव तारे की तरह स्थिर’ कहा तो वह केवल एक कूटनीतिक प्रशंसा वाक्य नहीं था। ध्रुव तारा दिशा दिखाने वाला स्थायी प्रकाश-स्रोत है और भारत-रूस संबंध भी आज वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं, ऊर्जा-भू-राजनीति, उभरती तकनीकों, व्यापारिक विविधीकरण और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा तय करते प्रतीत होते हैं।
इस शिखर वार्ता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और रूस के बीच संबंध राष्ट्रीय हित, परस्पर सम्मान और साझा दृष्टिकोण की दृढ़ बुनियाद पर टिके हैं। ऐसे समय में, जब वैश्विक राजनीति अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता, यूरोपीय सुरक्षा संकट, पश्चिमी प्रतिबंधों, नाटो विस्तार और यूक्रेन युद्ध के दबावों से आकंठ भरी हुई है, भारत और रूस का संबंध संतुलन, स्वायत्तता और दीर्घकालिक नीति-दृष्टि का मॉडल बनकर उभर रहा है। दोनों देशों ने ‘भारत-रूस आर्थिक सहयोग कार्यक्रम 2030’ नामक नए रोडमैप को मूर्त रूप दिया, जो व्यापार, ऊर्जा, उर्वरक, तकनीकी नवाचार, समुद्री अवसंरचना, श्रम गतिशीलता और रणनीतिक उद्योगों में साझेदारी को एक व्यापक और भविष्यनिष्ठ आधार प्रदान करता है। यह समझौता दो देशों के व्यापारिक हितों का विस्तार नहीं बल्कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में डॉलर वर्चस्व को चुनौती देने वाली और बहुध्रुवीय आर्थिक संरचना को स्थापित करने वाली एक साहसिक पहल भी है।
भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंधों की प्रकृति अब मूल्य, तकनीक और रणनीतिक नियंत्रण पर आधारित होती जा रही है। 2024 में दोनों देशों का व्यापार 64 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था और अब 2030 तक इसे 100 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य उस नई आर्थिक संरचना की घोषणा है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच 96 प्रतिशत भुगतान रुपये और रूबल में होने लगा है। इस तथ्य का अर्थ वैश्विक आर्थिक विमर्श में अत्यधिक दूरगामी है, जो न केवल डॉलर की निर्भरता को चुनौती देता है बल्कि वैश्विक व्यापार को एक ऐसी राह पर ले जाता है, जहां मुद्रा-स्वायत्तता, आर्थिक आत्मनिर्भरता और बहु-मुद्रा व्यापार व्यवस्था भविष्य का आधार बन सकती है। शिखर सम्मेलन में कृषि-उद्योग क्षेत्र में उर्वरक उत्पादन पर सहमति आने से भारत की खाद्य और कृषि सुरक्षा रणनीति को ऐतिहासिक मजबूती मिली है। आज जहां दुनिया संसाधन-संकट, कृषि लागत, उत्पादन सीमाएं और उर्वरक आपूर्ति से संबंधित अनिश्चितताओं का सामना कर रही है, वहीं भारत और रूस का संयुक्त यूरिया उत्पादन कार्यक्रम भारत को केवल खरीदार देश नहीं, वैश्विक कृषि-आपूर्ति श्रृंखला में सक्रिय उत्पादक राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा। यह भारत की आत्मनिर्भर कृषि नीति, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के दीर्घकालिक ढ़ांचे को सुदृढ़ करेगा।
फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में रूस में भारतीय तकनीक से फार्मा फैक्टरी की स्थापना स्वास्थ्य-क्षेत्र में भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा का संकेत है। भारत आज दुनिया के लिए ‘फार्मेसी ऑफ द ग्लोब’ बन चुका है। कोविड काल में दुनिया ने यह देखा कि दवा निर्माण केवल उद्योग नहीं बल्कि सामरिक शक्ति भी है। रूस में दवा निर्माण भारत को न केवल बाजार देगा बल्कि ऐसे समय में तकनीकी और कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनाएगा, जब पश्चिमी दवाईयों की आपूर्ति-राजनीति वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली पर नियंत्रण का उपकरण बन चुकी है। भारत-रूस संबंधों का सबसे ठोस और दीर्घकालिक आयाम ऊर्जा क्षेत्र है। रूस भारत का सबसे बड़ा ऊर्जा-आपूर्तिकर्ता बन चुका है और उसने विश्व के ऊर्जा-संकट के मध्य भारत को अबाध आपूर्ति देकर यह साबित किया कि यह संबंध परिस्थितियों से संचालित नहीं बल्कि विश्वास पर आधारित है।
सम्मेलन में परमाणु ऊर्जा पर हुई चर्चा और कुडनकुलम प्लांट के विस्तार की पुनर्पुष्टि भारत की स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा रणनीति को एक नई दिशा देती है। रूस द्वारा छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर उपलब्ध कराने का प्रस्ताव उस परिवर्तन की पूर्वपीठिका है, जहां भारत विकेन्द्रीकृत ऊर्जा प्रणालियों के माध्यम से हर क्षेत्र को स्वच्छ ऊर्जा से जोड़ सकेगा। यह भारत के नेट-जीरो संकल्प की व्यवहारिक यात्रा का महत्वपूर्ण चरण है। क्रिटिकल मिनरल्स का मुद्दा आने वाली औद्योगिक क्रांति की रीढ़ है। एआई, इलैक्ट्रिक वाहन, एयरोस्पेस, बैटरी निर्माण और रोबोटिक्स, इन सभी उद्योगों का अस्तित्व लिथियम, निकेल, कोबाल्ट और रेयर-अर्थ मेटल्स पर निर्भर है। पश्चिमी देशों ने इन खनिजों पर एकाधिकारवादी नियंत्रण बनाने का प्रयास किया है जबकि भारत-रूस इस समीकरण को बदल रहे हैं। रूस के पास विशाल खनिज संसाधन हैं और भारत के पास विकासशील तकनीक, अनुसंधान क्षमता और उत्पादन की औद्योगिक शक्ति। दोनों का मिलन वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा को नया आयाम प्रदान करेगा।
भारत द्वारा रूसी नागरिकों के लिए 30 दिन तक मुफ्त ई-टूरिस्ट वीजा की घोषणा कूटनीति को लोगों की चेतना में स्थापित करती है। यह सांस्कृतिक जुड़ाव की पुनर्पुष्टि है, जिसमें बौद्ध परंपरा, योग, भारत-रूस सांस्कृतिक आकर्षण और ऐतिहासिक धारा की निरंतरता उपस्थित है। यह पहल वैश्विक सूचना-राजनीति के युग में ‘नैरेटिव स्वायत्तता’ के निर्माण की ओर भी संकेत करती है, जिसे रूस के ‘आरटी इंडिया’ ब्यूरो की स्थापना आगे बढ़ाएगी। इस शिखर वार्ता में यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की नई भूमिका को स्पष्ट किया। भारत न तो किसी ध्रुव में समाहित है, न ही किसी वैश्विक सुरक्षा-प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बल्कि वह शांतिवादी और वैचारिक नेतृत्व के नए मॉडल के रूप में उभरा है। ब्रिक्स, जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर भारत और रूस का समन्वय बहुध्रुवीय व्यवस्था के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभा रहा है। यह संबंध केवल सुरक्षा और सामरिक हितों से परे है, यह एक सभ्यतामूलक विमर्श है, जहां भारत और रूस अमेरिकी-यूरोपीय प्रभाव-क्षेत्र की एकध्रुवीयता को चुनौती देते हुए वैश्विक संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
रक्षा क्षेत्र में ब्रह्मोस मिसाइल, सुखोई विमान, एस-400 सिस्टम और नई तकनीकों पर साझेदारी यह स्पष्ट करती है कि दोनों देशों का सुरक्षा बंधन साझा रणनीतिक विश्वास का परिणाम है। पहलगाम और मॉस्को हमलों के संदर्भ में आतंकवाद विरोधी एकजुटता की घोषणा यह सिद्ध करती है कि भारत और रूस नए खतरों की प्रकृति को समझते हैं और समाधान तलाशने में भी एकमत हैं। इन सभी आयामों का संकलन बताता है कि भारत-रूस संबंध न तो बीते युग की स्मृति हैं, न ही समीपस्थ हितों की आकस्मिक आवश्यकता। यह रिश्ते का वह मॉडल है, जो विश्वास, समय, भू-राजनीति, तकनीकी क्षमता और साझा दृष्टि के संयोग से निर्मित हुआ है। यह केवल दो राष्ट्रों का गठजोड़ नहीं, दो सभ्यताओं का मार्गदर्शन है। ध्रुव तारे की उपमा इसीलिए सार्थक है क्योंकि ध्रुव तारा केवल चमकता नहीं, दिशा भी देता है। भारत और रूस का संबंध भी दिशा-निर्देशक है, नई विश्व व्यवस्था की दिशा तय करने वाला, वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं को पहचान देने वाला और शक्ति-संतुलन को न्यायपूर्ण बनाने वाला।
2030 का रोडमैप इस संबंध को केवल नई मंजिल की ओर नहीं ले जाता बल्कि दुनिया को संकेत देता है कि भारत अब उस युग में प्रवेश कर रहा है, जहां वह ध्रुवों की संरचना में योगदान देने वाली शक्ति है। रूस इस यात्रा में सहायक नहीं बल्कि सहयात्री है। यही कारण है कि यह रिश्ता आज पहले से अधिक प्रासंगिक है और आने वाले वर्षों में विश्व राजनीति की धुरी बदलने में यह संबंध एक निर्णायक भूमिका निभाएगा। यह भविष्य के निर्माण का ऐसा दस्तावेज है, जो स्पष्ट करता है कि भारत और रूस किसी तात्कालिक परिस्थिति के सहायक नहीं, बहुध्रुवीय, संतुलित और स्थिर विश्व-व्यवस्था के निर्माता हैं। यही वह पथ है, जो आने वाले समय में वैश्विक राजनीति के मानचित्र को परिवर्तित करेगा और यही वह कारण है कि भारत-रूस संबंध न केवल समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए दिशा-निर्देशक ध्रुव तारा बन चुके हैं।





