भारत-ब्रिटेनः नया धरातल

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

ब्रिटेन के कई प्रधानमंत्री और महारानी एलिजाबेथ भी भारत आ चुकी हैं लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन की यह यात्रा दोनों देशों के लिए जितनी सार्थक रही है, वह अपने आप में एतिहासिक उपलब्धि है। जाॅनसन का साबरमती आश्रम जाना अपने आप में एक घटना है। जो आश्रम महात्मा गांधी ने बनाया था और जिस गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला दी थीं, उस गांधी के आश्रम में कोई ब्रिटिश प्रधानमंत्री जाए और जमीन पर बैठकर चरखा चलाए, यह अपने आप में एक किस्सा है।

चार किलोमीटर के रास्ते में जाॅनसन का हजारों लोगों ने जैसा भाव-भीना स्वागत किया, वैसा उन्होंने पहले कभी देखा नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने कह दिया कि उन्हें अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर जैसा अनुभव हो रहा है। ये ऐसे पहले अंग्रेज प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने भारत आकर हिंदी में मोदी को कहा कि वे उनके ‘खास दोस्त’ हैं। अंग्रेजी भाषा के गुलाम भारत में आकर कोई अंग्रेज प्रधानमंत्री हिंदी में बोले, यह अपने आप में अजूबा है। इसका पहला कारण तो यह है कि विश्व राजनीति और व्यापार में भारत का प्रभाव बढ़ रहा है। दूसरा, आजकल की ब्रिटिश राजनीति में भारतीय मूल के नागरिकों का बढ़ता हुआ वर्चस्व है। अब क्योंकि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर आ गया है, इसलिए भारत-जैसे बड़े राष्ट्रों के साथ उसे अपने राजनीतिक, व्यापारिक और सामरिक संबंध घनिष्ट भी बनाने हैं। यदि दिवाली तक दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो गया तो निश्चय ही कुछ वर्षों में भारत-ब्रिटेन व्यापार दुगुना हो सकता है। आस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ हुए भारत के मुक्त-व्यापार समझौते के सुपरिणाम अभी से दिखने लगे हैं। भारत-ब्रिटेन समझौता तो नए हजारों रोजगार पैदा कर सकता है।

जाॅनसन ने यह भी कहा है कि उनकी सरकार योग्य भारतीयों को वीज़ा देने में उदारता बरतेगी। जाॅनसन और मोदी ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में भी सामरिक सहकार पर सहमति व्यक्त की है। जाॅनसन ने ब्रिटेन द्वारा भारत को बेचे जानेवाले शस्त्रों, नई सामरिक तकनीकों और सामुद्रिक निगरानी की कई तकनीको को देने का भी वादा किया है। दोनों राष्ट्रों ने शस्त्र-निर्माण के संयुक्त कारखाने खोलने का भी संकल्प किया है। अफगान जनता को पहुंचाई जानेवाली भारतीय सहायता की जाॅनसन ने प्रशंसा की और दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान को आतंकवाद का अड्डा बनाने का विरोध किया। दोनों राष्ट्रों ने अफगानिस्तान में सर्वसमावेशी सरकार को जरुरी बताया। ऐसा लग रहा था कि इस दिल्ली-यात्रा के दौरान जाॅनसन की कोशिश यह होगी कि वे भारत को अपनी तरफ झुकाएंगे याने उसे रूस की आलोचना के लिए मजबूर करेंगे लेकिन इसका उल्टा ही हुआ। जाॅनसन ने भारत की यूक्रेन-नीति की सराहना की और मोदी की तारीफ में कई कसीदे काढ़ दिए।

उन्होंने ब्रिटेन में सक्रिय कई खालिस्तानी और आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का भी वायदा किया। उन्होंने भारत को खुश करने के लिए यह भी कह दिया कि वे सीमा-पार से आनेवाले आतंकवाद की कड़ी भर्त्सना करते हैं। ऐसा लगता है कि इस यात्रा के दौरान जो समझौते और संवाद हुए हैं, वे इन दोनों देशों को संबंधों के नए और ऊँचे धरातल पर पहुंचा देंगे।