भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी बनाम पाकिस्तान

India-US Defence Partnership vs Pakistan

अम्बिका कुशवाहा ‘अम्बी’

दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक गतिशीलता भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के बीच जटिल रक्षा और कूटनीतिक संबंधों से गहरे प्रभावित होती है। भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग ने न केवल क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित किया है, बल्कि पाकिस्तान के साथ संबंधों को भी पुनर्परिभाषित किया है। हाल के भारत-पाकिस्तान युद्ध और मई 2025 के सीजफायर में अमेरिका की मध्यस्थता ने रक्षा समझौतों और क्षेत्रीय स्थिरता पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है।

पिछले दो दशकों में भारत और अमेरिका ने रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए कई ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। ये समझौते न केवल सैन्य क्षमताओं को बढ़ाते हैं, बल्कि वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा में साझा हितों को भी रेखांकित करते हैं। प्रमुख समझौतों में शामिल हैं:

  1. COMCASA (2018): संचार संगतता और सुरक्षा समझौता, जो सुरक्षित संचार प्रणालियों और डेटा साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
  2. BECA (2020): भू-स्थानिक सहयोग और विनिमय समझौता, जो सटीक नक्शों, टोही और खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान को सक्षम बनाता है।
  3. SOSA (2024): आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा समझौता, जो रक्षा आपूर्ति श्रृंखला की विश्वसनीयता और सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
  4. 10-वर्षीय रक्षा ढांचा समझौता: 2025 तक नवीनीकृत, यह समझौता संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  5. iCET (Initiative on Critical and Emerging Technology): कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों में सहयोग को बढ़ावा देता है।

इन समझौतों के परिणामस्वरूप, भारत ने अमेरिका से 20 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के हथियार और उपकरण खरीदे हैं, जिनमें P-8I पोसाइडन विमान, अपाचे हेलीकॉप्टर और MQ-9 रीपर ड्रोन शामिल हैं। मालाबार, युद्ध अभ्यास और टाइगर ट्रायम्फ जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास दोनों देशों की सेनाओं के बीच अंतर-संचालनशीलता को मजबूत करते हैं। 2023 में शुरू हुआ रक्षा सहयोग रोडमैप खुफिया, निगरानी, टोही (ISR), समुद्री जागरूकता और हवाई युद्ध प्रणालियों जैसे क्षेत्रों में सहयोग को और गहरा करता है।

भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों के पीछे कई रणनीतिक उद्देश्य हैं:

● चीन के प्रभाव को संतुलित करना: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर और भारत-चीन सीमा पर तनाव के जवाब में, दोनों देश एक साझा रणनीति पर काम कर रहे हैं।

● आतंकवाद का मुकाबला: दक्षिण एशिया, विशेष रूप से पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादी समूहों, के खिलाफ संयुक्त प्रयासों को मजबूत करना।

● रक्षा प्रौद्योगिकी का विकास: भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना और उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुंच सुनिश्चित करना।

● क्षेत्रीय स्थिरता: भारत-पाकिस्तान तनाव जैसे क्षेत्रीय संघर्षों को नियंत्रित कर दक्षिण एशिया में शांति बनाए रखना।

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच संबंधों का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। शीत युद्ध के दौरान, पाकिस्तान अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी था, जिसने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान उसे F-16 लड़ाकू विमान और अरबों डॉलर की सैन्य सहायता प्राप्त हुई। हालांकि, 21वीं सदी में संबंधों में तनाव आया, विशेष रूप से आतंकवादी समूहों को आश्रय देने के आरोपों और पाकिस्तान के चीन के साथ बढ़ते संबंधों के कारण।

मीडिया स्रोत के अनुसार, 2025 में, अमेरिका ने पाकिस्तान को 845 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की, लेकिन यह सहायता सख्त शर्तों और निगरानी के साथ थी।

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव, विशेष रूप से कश्मीर और नियंत्रण रेखा (LoC) पर, दक्षिण एशिया की सुरक्षा स्थिति को जटिल बनाते हैं। मई 2025 में दोनों देशों के बीच हुए सीजफायर में अमेरिका ने महत्वपूर्ण मध्यस्थता भूमिका निभाई। X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सीजफायर को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में प्रस्तुत किया। हालांकि, भारत ने इसे एक द्विपक्षीय समझौता बताया और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्पष्ट रूप से खारिज किया।

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग ने पाकिस्तान के लिए कई रणनीतिक और कूटनीतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। जिनके कुछ प्रभाव निम्न हैं:

● सैन्य असंतुलन: भारत की बढ़ती सैन्य क्षमताएँ, जैसे MQ-9 रीपर ड्रोन, S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली और उन्नत मिसाइल प्रणालियाँ, पाकिस्तान के लिए गंभीर चुनौती हैं। ये प्रणालियाँ भारत को पाकिस्तान के पारंपरिक और परमाणु हथियारों के खिलाफ मजबूत रक्षा प्रदान करती हैं।पाकिस्तान ने अपनी मिसाइल प्रौद्योगिकी को उन्नत करने का दावा किया है, लेकिन भारत का रक्षा आधुनिकीकरण क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को स्पष्ट रूप से भारत के पक्ष में झुका रहा है।

● कूटनीतिक दबाव: अमेरिका का भारत के साथ गहरा रक्षा सहयोग और हिंद-प्रशांत रणनीति में भारत की केंद्रीय भूमिका पाकिस्तान को असुरक्षित महसूस कराती है। अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है।

● चीन का कारक: पाकिस्तान के चीन के साथ मजबूत संबंध, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और सैन्य सहयोग, भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों के लिए एक जवाबी रणनीति के रूप में देखे जाते हैं।
X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया कि ऑपरेशन सिंदूर में JF-17 जैसे चीनी उपकरणों के कमजोर प्रदर्शन ने अमेरिका को अपनी कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करने का अवसर प्रदान किया।

● आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव: भारत और अमेरिका के बीच 2030 तक 500 अरब डॉलर के व्यापार लक्ष्य में रक्षा व्यापार एक प्रमुख हिस्सा है। इसके विपरीत, पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी सहायता सीमित और सख्त शर्तों पर आधारित है, जो उसके रणनीतिक महत्व को कम करता है।भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताएँ, जैसे डीआरडीओ द्वारा विकसित मिसाइल प्रणालियाँ, अमेरिकी प्रौद्योगिकी के साथ मिलकर, पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाती हैं।

भारत-अमेरिका रक्षा समझौते दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करते हैं, जिससे पाकिस्तान पर सैन्य और कूटनीतिक दबाव बढ़ता है। ये समझौते न केवल भारत की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाते हैं, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाते हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध आतंकवाद विरोध और क्षेत्रीय स्थिरता तक सीमित हैं, जिसमें सख्त शर्तें और कम विश्वास शामिल है।

मई 2025 का भारत-पाकिस्तान सीजफायर अमेरिका की मध्यस्थता का एक उदाहरण है, लेकिन भारत की स्पष्ट नीति, कश्मीर जैसे मुद्दों पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करना, यह दर्शाती है कि वह अपनी स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है। भविष्य में, भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग और गहरा होने की संभावना है, जो पाकिस्तान के लिए नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करेगा।