एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तर पर भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा व्यापार, विशेष रूप से एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) के क्षेत्र में हुआ नया समझौता न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भू-राजनीतिक समीकरणों, टैरिफ युद्ध, कृषि बाज़ारों में प्रवेश,और वैश्विक व्यापार नीतियों के बदलते ढांचे का संकेत भी देता है। हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के संबंधों में कभी सहयोग तो कभी तनाव की स्थिति देखने को मिली है,विशेषकर जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाए थे। ऐसे माहौल में एक वर्ष के लिए किया गया यह विशाल एलपीजी आयात समझौता द्विपक्षीय रिश्तों में सकारात्मक दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है। यह समझौता भले ही भारत की कुल वार्षिक आवश्यकता का मात्र 10 प्रतिशत है,लेकिन इसकी कूटनीतिक भाषा और रणनीतिक संदेश कहीं अधिक बड़े हैं।भारत घरेलू ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है, वहीं अमेरिका को भारतीय बाज़ार में एक नई तकनीकी और व्यावसायिक एंट्री मिल रही है। इसके साथ ही यह समझौता भविष्य में संभावित ट्रेड डील,टैरिफ घटाने, और भारत-अमेरिका संबंधों के सुधार का संकेत माना जा रहा है।
साथियों बातें अगर हम भारतीय किचन में ‘मेड इन अमेरिका’ एलपीजी:ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार का नया आयाम इसको समझने की करें तो,भारत दुनिया के उन देशों में अग्रणी है, जहाँ घरों में एलपीजी का उपयोग सबसे तेज़ी से बढ़ रहा है। वर्तमान में भारत के लगभग 90 प्रतिशत घरों में एलपीजी का उपयोग होता है, और इनमें से 65 प्रतिशत एलपीजी आयात की जाती है। भारत की घरेलू जरूरतों का केवल 35 प्रतिशत ही देश में उत्पादित होता है। इसलिए ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने और आपूर्ति के जोखिम को कम करने के लिए भारत के लिए एलपीजी आयात में नए स्रोत जोड़ना रणनीतिक रूप से अनिवार्य था।अमेरिका दुनियाँ का बड़ा शेल गैस उत्पादक है और वह ऊर्जा निर्यात का विस्तार करना चाहता है। इस संदर्भ में भारत द्वारा अमेरिका से 2.2 मिलियन टन एलपीजी आयात के लिए किया गया एक-वर्षीय समझौता न केवल व्यापारिक है,बल्कि रणनीतिक भी है। यह समझौता अमेरिका को भारतीय ऊर्जा बाजार में पहली वास्तविक एंट्री देता है।अमेरिका लंबे समय से चाहता था कि भारत उसके कृषि उत्पादों, विशेष रूप से गेहूं, मक्का, सोया और डेयरी के लिए अपना बाजार खोले। लेकिन भारत कृषि क्षेत्र में संवेदनशीलता और लाखों किसानों की आजीविका को देखते हुए इसे अनुमति देने से लगातार बचता रहा है।परिणाम स्वरूप अमेरिका ने नाराज होकर भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ बढ़ा दिया।अब एलपीजी समझौता अमेरिका को ‘एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण आर्थिक एंट्री’ देता है, जिससे ट्रंप प्रशासन के व्यापार तनाव को कम करने और भविष्य में बड़े समझौतों की दिशा में बढ़ने की संभावना दिखती है।
साथियों बात अगर हम भारत- अमेरिका एलपीजी समझौता: एक वर्ष का अनुबंध लेकिन भविष्य के व्यापक व्यापारिक सहयोग की नींव समझने की करें तो,नई डील के अनुसार भारत अमेरिका से लगभग 2.2 मिलियन टन एलपीजी खरीदेगा। यह मात्रा भारत की सालाना एलपीजी खपत का केवल 10 प्रतिशत है, लेकिन इसकी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक महत्ता इससे कहीं अधिक है।यह समझौता महत्वपूर्ण क्यों है?यह पहली बार है जब अमेरिका ऊर्जा क्षेत्र में भारत के घरेलू बाजार में सीधे प्रवेश कर रहा है।यह समझौता एक वर्ष के लिए है, लेकिन इसे बड़े, दीर्घकालिक समझौते की पृष्ठभूमि माना जा रहा है।टैरिफ विवादों के बीच यह दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में कदम है।इससे यह संकेत मिलता है कि भारत अब अपनी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, के साथ अधिक सुरक्षित करना चाहता है।यह सौदा भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के नए युग की शुरुआत कर सकता है, जहाँ अमेरिका ऊर्जा निर्यात को बढ़ाएगा और भारत आयात स्रोतों में विविधता लाएगा। इसके साथ ही भारत ने यह संदेश भी दिया है कि वह अमेरिका को अपने बाजार में प्रवेश तो देगा, लेकिन कृषि जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नहीं।
साथियों बात अगर हम भारत का एलपीजी पर बढ़ता आयात:घरेलू ऊर्जा नीति, उज्ज्वला योजना और खाड़ी देशों से निर्भरता इसको समझना की करें तो, पिछले एक दशक में भारत में एलपीजी का उपयोग तेजी से बढ़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण है,सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जिसके तहत करोड़ों गरीब परिवारों को सब्सिडी पर एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराए गए। इससे ग्रामीण और कम आय वाले परिवार भी खाना पकाने के लिए सुरक्षित ईंधन की ओर बढ़े हैं।भारत के प्रमुख एलपीजी आयात स्रोत (2024): यूएई- 81लाख टन, कतर-50 लाख टन,कुवैत, सऊदी अरब,महत्वपूर्ण सप्लायर हैँ इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि भारत की एलपीजी सप्लाई खाड़ी क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भर है। भू-राजनीतिक तनाव, युद्ध, शिपिंग रूट में खतरों और कीमतों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए भारत को नए आयात स्रोतों की आवश्यकता थी। ऐसे में अमेरिका से एलपीजी आयात भारत की ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षा के लिहाज से एक मजबूत कदम है।इसके साथ ही यह समझौता संदेश देता है कि भारत, ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाए जाने के बावजूद, संबंधों को नए सिरे से संतुलित करना चाहता है।यह डील इस तथ्य को भी इंगित करती है कि अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने के बावजूद भारत और अमेरिका दोनों एक-दूसरे के लिए बड़े बाजार बने रहेंगे। अमेरिका के लिए भारत ऊर्जा निर्यात और अन्य टेक्नोलॉजिकल डील्स का बड़ा केंद्र है।
साथियों बातें कर हम क्या एलपीजी समझौते से खुलेगा ट्रेड डील का रास्ता? मोदी–ट्रंप समीकरण में संभावित बदलाव इसको समझने की करें तो,यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या यह एलपीजी समझौता भारत और अमेरिका के बीच व्यापक ट्रेड डील का मार्ग प्रशस्त कर सकता है?विशेषज्ञों और कूटनीतिज्ञों के अनुसार, इसके तीन प्रमुख संकेत हैं:(क) विश्वास बहाली की शुरुआत-टैरिफ विवादों, कृषि बाजार तनाव और रूस से ऊर्जा खरीद पर अमेरिका की नाराजगी के बाद दोनों देशों में अविश्वास बढ़ गया था। इस एलपीजी समझौते से विश्वास की वापसी की शुरुआत मानी जा रही है।-(ख) अमेरिका को भारतीय बाजार में सीमित प्रवेश-भारतीय कृषि क्षेत्र में प्रवेश न मिल पाने की निराशा को कम करने के लिए अमेरिका को ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश मिला। यह रणनीतिक रूप से संतुलित नीति है।भारत ने कृषि बाज़ार नहीं खोला, लेकिन एलपीजी जैसे गैर-संवेदनशील क्षेत्र में सौदा किया।यह भविष्य के बड़े व्यापारिक समझौतों की तैयारी जैसा है।(ग) मोदी- ट्रंप समीकरण का व्यावहारिक पहलू-ट्रंप और मोदी के बीच पिछले समय में मजबूत व्यक्तिगत संबंध रहे हैं, लेकिन वैश्विक व्यापार में ट्रंप की नीति हमेशा “अमेरिका फर्स्ट” रही है। ट्रंप ने बार-बार कहा कि भारत “उच्च टैरिफ वाला राष्ट्र” है।अब भारत द्वारा किया गया यह समझौता संकेत देता है कि मोदी सरकार टैरिफ तनाव कम करने और अमेरिका के साथ ऊर्जा आधारित आर्थिक साझेदारी बढ़ाने की इच्छुक है।कई विश्लेषकों का मानना है कि यह डील भविष्य में टैरिफ खत्म करने, नए क्षेत्रीय सहयोग, और संभवतः नवीन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए)-जैसी संरचना की शुरुआत कर सकती है।
साथियों बात अगर हम रूस से ऊर्जा खरीद पर अमेरिकी टैरिफ और भारत-अमेरिका व्यापार के सामान्य स्थिति लौटने की संभावना इसको समझने की करें तो अगस्त 2025 में अमेरिका ने भारत पर रूस से ऊर्जा खरीदने के कारण 25प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे कुल टैरिफ 50 प्रतिशत तक पहुँच गया।यह कदम अमेरिका द्वारा भू-राजनीतिक दबाव बनाने का तरीका था। उन्हें उम्मीद थी कि भारत रूस से ऊर्जा आयात कम करेगा। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि उसकी ऊर्जा सुरक्षा प्राथमिकता है, और वह अपने हितों के अनुसार आयात नीति तय करेगा।अब एलपीजी डील के बाद यह संभव है कि:अमेरिका भारत पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ कम करे,दोनों देशों के बीच सामान्य व्यापारिक संबंध बहाल हों,ऊर्जा व्यापार सहयोग नए उच्च स्तर पर पहुँचे,विशेषज्ञ मानते हैं कि यह डील एक द्विपक्षीय राजनीतिक संदेश भी है:भारत रूस से ऊर्जा खरीदता रहेगा, लेकिन साथ ही अमेरिका के साथ भी ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने को तैयार है।भारत ने इससे वैश्विक संतुलन की अपनी नीति को दोबारा स्थापित किया है,“बहु-आयामी व्यापार और संतुलित कूटनीति।”
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि एलपीजी समझौता केवल ऊर्जा व्यापार नहीं, बल्कि द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव का संकेत है, भारत- अमेरिका एलपीजी समझौता केवल व्यापारिक सौदा नहीं है।यह वैश्विक व्यापार संरचना टैरिफ तनावों, ऊर्जा सुरक्षा, और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच कूटनीतिक संतुलन की कहानी भी है।यह सौदा संकेत देता है कि:भारत अपनी ऊर्जा नीति में विविधता चाहता है,अमेरिका भारतीय बाजार में प्रवेश बढ़ाना चाहता है,और दोनों देश टैरिफ तनाव को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने को तैयार हैं।यह समझौता दीर्घकाल में भारत-अमेरिका के बीच एक मजबूत व्यापारिक साझेदारी, संभावित नई ट्रेड डील, और राहतपूर्ण टैरिफ नीति की दिशा में कदम हो सकता है।
आने वाले वर्षों में यह एलपीजी सौदा ऊर्जा सहयोग, रणनीतिक संतुलन और वैश्विक व्यापारमें भारत-अमेरिका समीकरणों का महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।





