21 से 23 सितंबर तक कई महत्वपूर्ण संगठनों और विश्वविद्यालयों के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतवंशी संस्कृति’ विषय के तहत तीनदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय व्याख्यानमाला के पांचवें संस्करण का आयोजन किया गया, जिसमें छतीसगढ़ के राज्यपाल रामेन डेका, राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े, पूर्व राज्यसभा सदस्य डा. कर्ण सिंह, राज्यसभा के पूर्व महासचिव तथा पूर्व रक्षा सचिव डा. योगेंद्र नारायण सहित देश-विदेश के अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त किए। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी व्याख्यानमाला के लिए अपना विशेष संदेश प्रेषित किया।
योगेश कुमार गोयल
गुरुग्राम स्थित भारत अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय संस्कृति को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका चाणक्य वार्ता, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा, डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर और हंसराज कालेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीनदिवसीय श्रीमती कांतिदेवी जैन स्मृति अंतर्राष्ट्रीय व्याख्यानमाला के पंचम संस्करण का ‘भारतवंशी संस्कृति’ विषय के तहत 21 से 23 सितंबर तक आयोजन किया गया। इस व्याख्यानमाला के लिए भेजे अपने विशेष संदेश में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘व्याख्यानमाला का विषय ‘भारतवंशी संस्कृति’ सराहनीय है। जब भी मैं किसी विदेशी दौरे पर जाता हूं तो मेरा यह प्रयास रहता है कि वहां रह रहे अपने देश से जुड़े लोगों से अवश्य मिल सकूं। उनसे मिलकर मैंने महसूस किया कि भारतवंशी विश्व के किसी भी हिस्से में हों, उनका अपनी संस्कृति व संस्कारों से गहरा जुड़ाव है। विदेशों में हमारे भारतवंशी साथी देश के राष्ट्रदूत के रूप में अपनी प्रतिभा, लगन और परिश्रम से एक अलग पहचान बनाते हुए भारत का मान बढ़ा रहे हैं। वह अपनी मातृभूमि की उपलब्धियों पर सीना तानकर, सिर ऊंचा करके गर्व करते हैं। अमृत काल में हम एक भव्य एवं विकसित भारत के निर्माण की दिशा में अग्रसर हैं। अवसरों से भरे इस कर्तव्य काल में हर भारतवंशी का प्रयास राष्ट्र को प्रगति की नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने में योगदान देगा। मुझे विश्वास है कि श्रीमती कांतिदेवी जैन स्मृति न्यास नई दिल्ली, पाक्षिक पत्रिका चाणक्य वार्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस व्याख्यानमाला में लोगों को ‘भारतवंशी संस्कृति’ से जुड़े विभिन्न पहलुओं को जानने का अवसर मिलेगा।’’
व्याख्यानमाला के मुख्य अतिथि छतीसगढ़ के राज्यपाल रामेन डेका ने इस व्याख्यानमाला के आयोजन में पिछले पांच वर्षों से देश-विदेश से जुड़ने वाले हजारों वरिष्ठजनों, बुद्धिजीवियों, विद्वानों और आयोजक डा. अमित जैन का अभिनंदन करते हुए कहा, ‘‘यह मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे इस आयोजन से जुड़ने का मौका मिला। व्याख्यानमाला का विषय ‘भारतवंशी संस्कृति’ सुनकर हमारा सीना गर्व से भर जाता है क्योंकि भारतवंशी जहां-जहां भी गए, वहां-वहां अपनी भाषा, अपना ज्ञान, अपनी संस्कृति लेकर गए और वहां अपना विशिष्ट स्थान बनाया। उन्होंने अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका आदि देशों में जाकर भारतीय त्यौहार, संगीत व भारतीय मूल्यों को बनाए रखा। भारतीय संस्कृति विश्व की अनमोल विरासत है, जिसका पूरी दुनिया में प्रसार-प्रचार हो रहा है। भारतवंशियों ने फिजी, मॉरीशस, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों में राजनीतिक, व्यवसायिक और आईटी क्षेत्रों में अपनी मेहनत, संघर्ष और भारतीय संस्कृति के बल पर अपना परचम लहराया है। भारत के वसुधैव कुटुम्बकम के संदेश को देश-विदेश ने अपनाया है और भारतवंशियों ने भारतीय मूल्यों और संस्कृति को पूरी तरह संजोकर रखा है। भारतवंशी हर परीक्षा में खरे उतर रहे हैं। भारतीय संस्कृति न केवल हमारी पहचान है बल्कि यह हमारी धरोहर भी है, इसे संजोकर रखना है ताकि अगली पीढ़ी भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रहे।’’
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा के कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी ने कहा, ‘‘कोरापोट (उड़ीसा) में जहां हमारा विश्वविद्यालय है, वह विश्व का ऐसा स्थान है, जहां सबसे पहले धान की खेती हुई और वह भी बिना रासायनिक खाद के। यहां आदिवासी क्षेत्र है और केवल दो प्रतिशत महिलाएं ही शिक्षित हैं लेकिन लोग सामूहिक और सामाजिक रूप से मिलकर खेती करते हैं तथा हिन्दू संस्कृति के मूलमंत्र, पंचतंत्र की पूजा करते हैं।’’
अमेरिका से जुड़ी डिजिटल क्रियेटर डा. निरुपमा गुप्ता का कहना था कि हम भाग्यशाली हैं कि हम भारत में पैदा हुए। उन्होंने कहा कि सोने की चिड़िया भारत की संस्कृति को ब्रिटिश से आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने नष्ट करने की कोशिश की। उससे पहले भारत में विदेशों से अनेक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे, जिनमें ब्रिटिश राज के बाद कमी आ गई। अमेरिका में बच्चा पैदा होने के 24 घंटे बाद ही उसे मां-बाप से अलग सुला दिया जाता है जबकि मेरे भारत में उसे तब तक अलग नहीं सुलाया जाता, जब तक वह बड़ा नहीं हो जाता। डा. निरुपमा का कहना था कि भारतीय संस्कृति से अमेरिकी संस्कृति काफी प्रभावित है। वे हमें साड़ी पहने देखकर बहुत खुश होते हैं।
व्याख्यानमाला में जर्मनी की ट्यूबिंगन यूनिवर्सिटी के दिव्यराज अमिय ने कहा, ‘‘भारतवंशियों ने जर्मनी में आकर भी सारे त्योहार मनाकर उल्लास की भरपाई कर दी है। यही नहीं, जर्मनी की भाषा में एक नहीं बल्कि अनेकों शब्द ऐसे है, जो भारतीय भाषाओं से लिए गए हैं और दैनिक दिनचर्या में उपयोग किए जाते हैं। मीठी चीजों के नाम भी भारत से ही लिए गए हैं। यहां होली, दीवाली, रक्षाबंधन सभी भारतीय त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन होली को मंच सजाकर मनाया जाता हैं। भारत में होली के दो-तीन महीने बाद यहां होली मनाई जाती है क्योंकि जिन दिनों भारत में होली का पर्व होता है, उस समय यहां काफी ठंड होती है।’’
तीनदिवसीय व्याख्यानमाला में छतीसगढ़ के राज्यपाल रामेन डेका, राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े, पूर्व राज्यसभा सदस्य डा. कर्ण सिंह, राज्यसभा के पूर्व महासचिव तथा पूर्व रक्षा सचिव डा. योगेंद्र नारायण, केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा के कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी सहित देश-विदेश के अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में ओडिशी नृत्यांगना गुरु शुभदा वराडकर, आरपी तोमर, हेमंत उपाध्याय, धीरेन बारोट, सारांश कनौजिया, गौरव कुमार, देवेंद्र कुमार, रूपम कुमारी, डा. छाया भदौरिया, शुभ्रांशु दाम, अभिनव कुमार पांडेय, ईश्वर करुण, विद्यावती, डा. अमर सिंघल, अजय नागर, उमा पाटिल, डा. गीता कुमारी, अमित गुप्ता, उमेश शुक्ला, डा. चंद्रशेखर, मंजू मानस, डा. योगेश शर्मा, जगवीर सिंह नरवाना आदि ने विशेष रूप से प्रतिभागिता की।