भारतीय पत्रकारिता: सवाल निष्पक्षता का

Indian journalism: question of impartiality

तनवीर जाफ़री

पिछले दिनों 30 मई को जब हमारे देश में पत्रकारिता दिवस की बधाइयों का सिलसिला चल रहा था उस के चंद रोज़ पहले पंजाब से यह ख़बर आई कि ज़ी मीडिया ग्रुप के सभी चैनल्स जिनमें हिंदी, अंग्रेज़ी के साथ पंजाबी जैसी क्षेत्रीय भाषा के चैनल्स भी शामिल हैं, को सरकार द्वारा ब्लैक आउट कर दिया गया है। इस ख़बर के फ़ौरन बाद ही पंजाब की भगवंत मान सरकार ने कोई औपचारिक नोटिफ़िकेशन जारी किये बिना ही 28 मई से राज्य में ज़ी मीडिया ग्रुप से सम्बद्ध सभी चैनल्स के प्रसारण पर रोक लगा दी । ग़ौरतलब है कि ज़ी मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड 14 टेलीविज़न समाचार चैनल, 5 डिजिटल समाचार चैनल, 7 समाचार ऐप और 32 डिजिटल प्रॉपर्टी संचालित करता है। ज़ी मीडिया ग्रुप के चैनल्स पर प्रतिबंध लगाने के बारे में कहा जा रहा है कि चूँकि ज़ी न्यूज़ के चैनल्स ने राज्य के मंत्री बलकार सिंह का 21 साल की किसी लड़की के साथ वीडिओ कॉल पर अश्लील हरकतों का आपत्तिजनक वीडियो अपने चैनल पर दिखाया था। जिसके बाद ही मान सरकार ने चैनल पर रोक लगाने का फ़ैसला किया। हालाँकि मंत्री की अश्लील हरकतों वाली करतूत इस चैनल पर प्रसारित होने से पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थी। परन्तु भगवंत मान सरकार ने ज़ी मीडिया ग्रुप के पक्षपात पूर्ण प्रसारण के चलते उस पर प्रतिबंध लगाकर ही अपना ग़ुस्सा उतारना मुनासिब समझा। निष्पक्ष पत्रकारिता का दायित्व निभाने वाले किसी भी मीडिया चैनल को प्रतिबंधित या उसे ब्लैक आउट करना निःसंदेह मीडिया की आज़ादी पर प्रहार ही कहा जायेगा। और किसी भी सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोग कर ऐसा किया जाना निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिये ख़तरे के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके पहले भी राज्य की भगवंत मान सरकार बादल परिवार के स्वामित्व वाले पीटीसी न्यूज़ चैनल तथा पंजाब के प्रतिष्ठित मीडिया समूह अजीत प्रकाशन समूह के अख़बारों के साथ ‘दुर्भावनापूर्ण ‘ व्यवहार कर चुकी है।

परन्तु पंजाब में ज़ी मीडिया ग्रुप पर लगे प्रतिबंध के बाद एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि इस न्यूज़ चैनल ने चुनावी संग्राम के मध्य जितनी तत्परता से राज्य के मान सरकार के मंत्री बलकार सिंह की अश्लील विडिओ के प्रसारण में इतनी दिलचस्पी ली, क्या देश का सबसे बड़ा यौन शोषण और इतिहास का सबसे बड़ा सेक्स स्कैंडल कहे जाने वाले जनता दल यूनाइटेड के नेता प्रज्वल रेवन्ना से सम्बंधित ख़बरों को भी इसी तत्परता से प्रसारित करने में ज़ी मीडिया ग्रुप ने दिलचस्पी दिखाई। महिलाओं की इज़्ज़त आबरू से जुड़ी मणिपुर में अनेक घटनायें घटीं क्या देश का सबसे बड़ा न्यूज़ चैनल कहे जाने वाले इस ग्रुप ने उस सच्चाई को इसी तरह प्रसारित किया ? और भी देश में अनेकानेक ऐसी घटनायें घटीं जिससे न केवल इस ग्रुप के चैनल्स ने बल्कि सत्ता के गुणगान में लगे अनेक चैनल्स ने अपनी आँखें मूँद लीं। इसलिये ऐसे चैनल्स का यह दावा करना कि वे ‘अपने सरोकारों से पीछे नहीं हटेंगे और जनता से जुड़े मुद्दों को उठाते रहेंगे’ ,कितना सही है ?

दरअसल आम जनता ख़ासकर अधिकांश टी वी दर्शक मीडिया घरानों के स्वामित्व को लेकर नावाक़िफ़ हैं। उन्हें नहीं पता कि किस चैनल का स्वामी किस राजनैतिक दल का है या किस दल के समर्थन से संसद सदस्य बना है। उसे नहीं पता कि जो एकमात्र टी वी चैनल पत्रकारिता का वास्तविक दायित्व निभाते हुये सत्ता से सवाल करता रहता था और जनता के वास्तविक मुद्दों को उठाकर सत्ता व सत्ताधीशों को कटघरे में खड़ा करता था उस पर सत्ता के चहेते उद्योगपति मित्र ने नियंत्रण कर लिया है। जनता को बिल्कुल नहीं पता कि इस समय देश के अधिकांश चैनल्स व मीडिया घराने सत्ता की गोद में जा बैठे हैं। यही वजह है कि विश्व की विश्वसनीय समझी जाने वाली बी बी सी न्यूज़ सेवा भी सत्ता को खटकती रहती है। और विपक्षी दलों से सवाल करना और सत्ता का गुणगान करना ही इन्हें भाता है।

1975 में कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार ने मीडिया पर सेंसरशिप लगाकर पूरे देश के मीडिया का रोष झेला था। परिणामस्वरूप उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी। परन्तु वर्तमान दौर में तो सत्ता अलग ही तरीक़े से मीडिया को नियंत्रित कर रही है। अपने उपकारों,पद लोभ,भरपूर विज्ञापनों,व्यवसायिक लाभ,चाटुकारिता से भरपूर साक्षात्कारों के प्रसारण, सत्ता के बजाये विपक्ष से सवाल पूछने जैसे लोकतंत्र व मीडिया के सिद्धांतों के विरुद्ध अपनाये जाने वाले हथकंडों के सहारे सत्ता पर नियंत्रण किया जा रहा है। मीडिया के सरोकारों की बातें करने वाला ‘गोदी मीडिया ‘ यह नहीं पूछता कि ‘साहब’ ने दस वर्षों में एक भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस क्यों नहीं की ? चाटुकार मीडिया मंहगाई,बेरोज़गारी,चीनी घुसपैठ,मणिपुर, चंद उद्योगपतियों पर ही नज़्र-ए-इनायत क्यों, जैसे जनसरोकारों से जुड़े अनेक सवाल सत्ता से पूछने के बजाये हिन्दू मुस्लिम,पाकिस्तान, मुस्लिम,मंदिर-मस्जिद,मदरसा,जिहाद जैसी विघटनकारी बातों में आम लोगों को उलझाकर और इसके दवरा जनता का ध्यान बांटकर सत्ता के हितों की रक्षा करने में जुटा है। चाटुकार मीडिया ने सत्ता के स्तुतिगान में ही दस साल गुज़ार दिये। क्या यही निष्पक्ष व ज़िम्मेदार पत्रकारिता है ?

हम हर साल 30 मई को “हिंदी पत्रकारिता दिवस” इसलिये मनाते हैं क्योंकि 30 मई 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड’ नामक एक साप्ताहिक अख़बार कलकत्ता से प्रकाशित किया गया था। क्रूर ब्रिटिश पराधीनता के दौर में भारतवासियों को स्वाधीनता व अपने कर्तव्यों व अधिकारों के प्रति जागरूक करना उस समय का एक चुनौती व जोखिम भरा काम था। परन्तु उस दौर में भी पत्रकारिता की ज़िम्मेदारी निभाते हुये पंडित जुगल किशोर शुक्ल जैसे साहसी पत्रकारों ने इस असंभव कार्य को संभव कर दिखाया। परन्तु आज के पत्रकारिता के स्वयंभू झंडाबरदार अपनी ही सरकार की कमियां निकालने का साहस नहीं जुटा पा रहे ? कहीं उपकार वश, कहीं भय वाश कहीं लालचवश तो कहीं व्यावसायिक लाभ के मद्देनज़र ? यह आख़िर कैसी पत्रकारिता है ?

भगवंत मान सरकार द्वारा ज़ी न्यूज़ को प्रतिबंधित करना निश्चित रूप से लोकतान्त्रिक मूल्यों के विरुद्ध है। यह निंदनीय भी है।

परन्तु न केवल ज़ी न्यूज़ बल्कि इनके जैसे सभी चाटुकार मीडिया घरानों को यह मंथन भी ज़रूर करना चाहिये कि क्या वजह है कि इनके पत्रकारों को जगह जगह फ़ज़ीहत उठानी पड़ती है ? क्यों प्रायः टीवी की लाइव डिबेट में इन्हें इसी ‘सत्ता चरण वंदना’ को लेकर अपमान सहना पड़ता है ? क्यों इन्हें गोदी मीडिया,चाटुकार मीडिया,दलाल व भांड मीडिया जैसे भद्दे ‘अलंकारों ‘ से नवाज़ा जाता है ? यदि भगवंत मान सरकार ऐसे चैनल्स पर प्रतिबंध लगाकर लोकतंत्र का गला घोटने की ज़िम्मेदार कही जाएगी तो मीडिया को बदनाम करने व इसे रसातल में ले जाने वाले मीडिया घरानों को भी लोकतंत्र के हत्यारों की सूची से अलग नहीं रखा जा सकता।