- भारत की मौजूदा हॉकी पीढ़ी हर लिहाज़ से एक स्वर्णिम पीढ़ी
- भारतीय हॉकी का शताब्दी वर्ष अनाम योगदानकर्ताओं को समर्पित
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : भारतीय हॉकी ने दशकों दुनिया पर राज किया और ओलंपिक में आठ स्वर्ण पदक, एक रजत और चार कांसे सहित कुल 13 पदक जीते। भारत की तीन ओलंपिक -1980, 1984, 1988-में बतौर राइट हाफ नुमाइंदगी करने वाले पूर्व कप्तान एम एम सोमाया से भारतीय हॉकी के सुनहरे दौर को करीब से देखने का गौरव बहुत कम लोगों को नसीब हुआ। 1988 में सोल ओलंपिक में सोमाया ने भारत की कप्तानी भी की। भारतीय हॉकी के अगले महीने सौ बरस पूरे हो जाएंगे और वह इसका जश्न मनाने में जुटी है। सोमाया भारत की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को न केवल पदकों और इसमें हासिल यादगार जीतों को याद करने के जश्न के रूप में देखते हैं, बल्कि उन अनगिनत व्यक्तियों और संस्थाओं के उत्सव के रूप में भी देखते हैं जिन्होंने देश की हॉकी को बुलंदियों पर पहुंचाया।
सोमाया का मानना बीते 15 बरस भारतीय हॉकी के इतिहास में सबसे ज़्यादा बदलाव लाने वाले रहे हैं। उन्होंने कहा,‘अब हम अब हम अधिक तेज,ढांचे के मुताबिक हॉकी खेल रहे हैं। ओडिशा और हरियाणा जैसे राज्यों में विश्व स्तरीय हॉकी प्रशिक्षकों, वैज्ञानिक प्रशिक्षण और मजबूत अकादमियों की मौजूदगी ने भारत में अब हॉकी की पूरी सूरत ही बदल दी है। आज के खिलाड़ियों की पेशेवर सोच, फिटनेस और वैज्ञानिक सोच और रिकवरी से लेकर तैयारी तक-सब कुछ अनूठा है। 2020 में टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम का कांसा जीतना महज एक पदक ही हीं यह यह भारतीय हॉकी के पुनरुत्थान का प्रतीक था। भारत की मौजूदा हॉकी पीढ़ी हर लिहाज़ से एक स्वर्णिम पीढ़ी है।’
सोमाया के लिए भारतीय हॉकी का यह शताब्दी वर्ष उन अनाम योगदानकर्ताओं को समर्पित, जिन्होंने भारतीय हॉकी की कामयाबी की नींव रखी और साथ ही उन खिलाड़ियों के बारे में भी है जिन्होंने तिरंगे को दुनिया भर में गौरव बढ़ाया।सोमाया कहते हैं, ‘हम उन खिलाड़ियों का जश्न मनाते हैं जिन्होंने देश को हॉकी में गौरव दिलाया। मैं भारतीय हॉकी के इन सौ बरस को पर्दे के पीछे के लोगों को समर्पित करना चाहता हूं। भारतीय रेलवे, सशस्त्र बल, पुलिस, बैंक और पेट्रोलियम कंपनियों जैसे नियोक्ताओं से लेकर प्रशंसकों तक, जो हर उतार-चढ़ाव में भारतीय हॉकी के साथ खड़े रहे हैं – सभी ने भारतीय हॉकी को बनाए रखने वाले तंत्र को बनाने में मदद की है और वे सभी वाकई प्रशंसा के पात्र हैं।’
जब सोमाया ने भारत के लिए तब अंतर्राष्ट्रीय हॉकी खेलने शुरू जब हॉकी घास की बजाय बस एस्ट्रो टर्फ पर खेली जाने शुरू ही हुई थी और उन्होंने हॉकी के आधुनिक विकास में सबसे निर्णायक बदलावों में से एक का अनुभव किया। सोमाया ने कहा, ‘मैंने मास्को ओलंपिक से पहले एस्ट्रो टर्फ देखी तक नहीं थी। हमें तुरत फुरत एकदम नई सतह के मुताबिक अपनी हॉकी को ढालना पड़ा जिसने हॉकी की गति और रणनीति ही बदल दी। वक्त बीतने के साथ भारतीय हॉकी ने विकसित होती गई, वैयक्तिक कौशल की बजाय सामूहिक संरचना और रणनीति पर ध्यान लगाया गया। भारत के लिए तीन ओलंपिक में हॉकी खेलना सम्मान और प्रतिबद्धता का इम्तिहान था। मैं राइट हाफ की पॉजिशन पर खेलता था। इस पॉजिशन पर खेलने के लिए पूरी प्रतिबद्धता और अनुशासन की जरूरत थी। भारत में लोगों और अपने दोस्तों के समर्थन ने मुझे वाकई मैदान पर अच्छी हॉकी खेलने को प्रेरित किया। मेरे नियोक्ता ने मेरा पूरा साथ दिया और मुझे मेरे मन के मुताबिक हॉकी के अभ्यास करने की छूट दी। उन दिनो हॉकी खेलने का कोई वित्तीय लाभ नहीं मिलता था, लेकिन हॉकी खेलने के जुनून ने हमें इसे खेलते रहने को प्रेरित किया। हॉकी का यह प्रेम आज भी मुझे प्रेरित करता है। आज भले ही मैं एक उत्साही दर्शक के रूप में हॉकी देखता हूं।भारत को अगली सदी में भारत की कामयाबी को बनाए रखने के लिए एक मज़बूत प्रतिभा पाइपलाइन को जरूरी बताया।हमें जल्दी शुरुआत करनी होगी – अंडर-12 से अंडर-21 तक के आयु वर्ग के खिलाड़ियों के लिए व्यवस्थित कार्यक्रम की जरूरत है। डेवलपमेंट टीम और भारत ए टीमें बेहतरीन पहल हैं। अगर हम युवा खिलाड़ियों को वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षित करते रहें और उन्हें विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में शामिल करते रहें, तो भारत आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर शीर्ष पर बना रहेगा।’
भारतीय हॉकी के अस्तित्व के सौ वर्ष पूरे होने पर सोमाया के पास अतीत की यादों तो हैं भविष्य के प्रति एक नई उम्मीद भी है। उन्होंने कहा,‘भारतीय हॉकी का शताब्दी वर्ष केवल भारत की जर्सी पहनने वाले चैंपियनों का जश्न मनाने के बारे में नहीं है। यह उस हर अनाम योगदानकर्ता – प्रशासकों, नियोक्ताओं, कोचों और प्रशंसकों – को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने भारतीय हॉकी की भावना को सौ वर्षों तक जिंदा रखा।’





