ऐतिहासिक सच्चाई को समझे भारतीय मुसलमान, भारत की मुख्य धारा में शामिल होंगे तभी होगा विकास

सुरेश हिन्दुस्थानी

भारत विभाजन के समय जिन मुसलमानों की मानसिकता विभाजनकारी थी, वह सभी पाकिस्तान चले गए। लेकिन कई मुसलमान ऐसे भी थे, जिनको भारत ही पसंद था, ऐसे मुसलमानों ने भारत में ही रहना पसंद किया। वह एक प्रकार से शांति प्रिय मुसलमान ही था। आज भी भारत के मुसलमान शांति प्रिय हैं, लेकिन कुछ लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगान के कट्टरपंथी मुसलमानों के संकेत पर भारत के मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। जो शांत प्रिय मुसलमानों को अशांत करने का एक बड़ा कारण माना जा सकता है। यहां बड़ा सवाल यह आता है कि आज विश्व के अनेक देशों में मुसलमानों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। इस संदेह के कारण ही सीधा साधा और शांति प्रिय मुसलमान परेशान हो रहा है, वास्तव में जिहादी संगठन ही आज मुसलमानों की दुर्दशा के कारण हैं, मुसलमानों को इस सत्य को स्वीकार करना ही चाहिए। भारत में भी कई जगह जो मुसलमान शक के दायरे में हैं, हो सकता है कि वे मुसलमान भारत के न हों, क्योंकि हम जानते हैं कि देश में आज पाकिस्तानी, बंगलादेशी, अफगानी और ईरानी मुसलमान भी निवास कर रहे हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जो अपने देश से वीजा लेकर भारत आए और यहां आकर वह वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी रह रहे हैं, इतना ही नहीं आज उनकी पहचान करना भी मुश्किल हो रही है, क्योंकि वे कट्टरवादी, भारतीय मुसलमानों में समा गए हैं। सीधे शब्दों में कहा जाये तो यही कहना होगा कि उनको भारत में कट्टरवादी मुसलमानों ने ही आश्रय दिया है। जो उनके लिए अशांति का वातावरण निर्मित कर रहे हैं।

जहां तक भारत के मुसलमानों का सवाल है तो यही कहा जा सकता है कि भारत के मुसलमान मूलत: हिन्दू हैं। उनके पूर्वज हिन्दू हैं। इनमें से कुछ मुसलमान इसलिए कट्टर हो गए हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान या बांग्लादेश के कट्टरपंथियों के सम्पर्क में हैं, भारत का जो भी मुसलमान इन दोनों देशों से आया है, वह भारत के संस्कार नहीं समझ सकता। इसके विपरीत भारत का वास्तविक मुसलमान स्वभाव से हिन्दू होने के कारण आज भी शांति चाहता है। यही लोग एनआरसी का विरोध करते दिखाई देते हैं और यही लोग भारत को तोड़ने का दुस्साहस कर रहे हैं। इसलिए भारत के मुसलमानों को चाहिए कि वह इनके बहकावे में नहीं आएं, क्योंकि इससे उनका तो भला होगा, लेकिन भारत के मुसलमानों का नहीं। क्या कभी किसी ने इस बात पर गौर किया है कि आज अनेक मुस्लिम देश आतंक से परेशान हैं। आज समस्त विश्व वैश्विक शांति के लिए प्रयास कर रहा है, वर्तमान समय में यह आवश्यक भी है और तथ्यपरक बात यह है कि विश्व शांति के जिस दर्शन की ओर दुनिया के लोग जाने का प्रयास कर रहे हैं, वह दर्शन भारतीयता में हैं। कहना तर्कसंगत ही होगा कि भारतीय दर्शन से ही शांति की स्थापना हो सकेगी।

हम जानते हैं कि भारत के जिन कट्टरपंथी मुसलमानों ने वर्ष 1947 में जिस प्रकार से पाकिस्तान का निर्माण किया। उसके पीछे केवल कट्टरवादिता ही थी। वे आज भारत के मुसलमानों के हाथ में पत्थर थमाना चाहते हैं। अगर उनको भारत के मुसलमानों के बारे में चिंता है तो वह उन्हें रोजगार के साधन देने का प्रयास करें, जिससे वह अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकें। इसके अलावा सबसे बड़ा सत्य तो यह है कि भारत और पाकिस्तान में निवास करने वाले मुसलमान के पूर्वज पहले हिन्दू ही थे। अगर वे इतिहास उठाकर देखेंगे, तो उन्हें इस सच्चाई का पता चल जाएगा। वैसे भारत के कई मुसलमान आज भी इस सत्य को बेहिचक स्वीकार करने का साहस दिखाते हैं। यह भी सच है कि दुनियाभर में जितने भी मुसलमान निवास करते हैं, उनमें सबसे ज्यादा सुरक्षित भारत में ही हैं। आज कुछ मुसलमान संदेह की दृष्टि से देखे जा रहे हैं, उसके पीछे भी सबसे बड़ा कारण स्वयं मुसलमान ही है।

तथाकथित मुस्लिम समुदाय जहां भारत में अमन चैन व शांति को भंग करने के प्रयास में लगा हुआ है, वहीं बाहरी तत्व इसको हवा देने का कार्य कर रहे हैं। नूपुर शर्मा के मामले में यही कहा जाएगा कि इसमें मुसलमानों को गुमराह करने का काम किया गया। नूपुर शर्मा ने जो बोला, उस सत्य से मुसलमान भी परिचित है। उनकी किताब भी यही कहती है। फिर यह बवंडर क्यों?
यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि विदेशी मुस्लिम बादशाहों ने भारत पर कभी लूटपाट के लिए और कभी अपनी सत्ता स्थापित कर इस्लामी झंडा फहराते हुए भारत की धर्म, संस्कृति और परम्परा को क्रूरता से कुचलने की लगातार कोशिश की। चाहे बाबर, तैमूर, गौरी हो या औरंगजेब हो, सभी की बर्बरता की कहानी इतिहास चीख-चीखकर कह रहा है। इतिहास को कुरेदकर यह समीक्षा करने समय नहीं है कि ये क्रूर हमलावर क्यों सफल हुए, भारत की राजशक्ति इस क्रूरता का प्रतिकार क्यों नहीं कर सकी। इस सबकी तह में जाने से यह पता चलता है कि कही न कहीं भारतीय समाज में अपने धर्म के प्रति निष्ठा कमजोर थी, लेकिन आज एक बात दिखाई देने लगी है कि भारतीय युवा अपने धर्म के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन कर रहा है और ऐसा करने में उसे गौरव का अहसास भी होता है। हम देखते हैं कि देश के विरोध में उठने वाली हर आवाज का हर स्तर पर सटीक जवाब दिया जाने लगा है। हम यह भी जानते हैं कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। ध्यान रहे कि जब मुसलमान अपने धर्म के बारे में कोई गलत बात सुनना नहीं चाहता तो अन्य धर्म के व्यक्ति कैसे सुन सकते हैं।

वर्तमान में भारत की करीब बीस प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है। इनके पूर्वज हमलावरों की क्रूरता के शिकार हुए और अपने परिवार की जीवन रक्षा के लिए इन्होंने मजबूरी में इस्लाम कबूल किया। इसलिए इस सच्चाई को कैसे नकारा जा सकता कि इनके पूर्वज हिन्दू थे। इस प्रकार के सम्प्रदाय और उपासना पद्धति का विकास देश की माटी से होता है, इसलिए भारत का इस्लाम सऊदी अरब का इस्लाम नहीं हो सकता। भारत की सर्वव्यापी संस्कृति के विचार प्रवाह के साथ ही भारत के मुस्लिमों को चलना होगा, क्योंकि उनका जिन्स और हिन्दुओं का जिन्स समान है, जो इस खून के रिश्ते को तोड़कर भारत के मुस्लिमों को देश की माटी से अलग करना चाहते हैं, वे छद्म देशद्रोही हैं, उनकी कोशिशों को असफल करना, हर देशभक्त मुसलमान का दायित्व है।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब आतंक फैलाने वाले व्यक्तियों पर कार्यवाही की बात करते हैं, तो उसमें यह कभी नहीं देखते कि यह हिन्दू है या फिर मुसलमान। जो गलत करेगा, उसे गलती की सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन कुछ राजनीतिक दल के नेता इसे हिन्दू-मुसलमान की दृष्टि से देखने की कुचेष्टा करते हैं। यही मानसिकता समाज को तोड़ने का कार्य कर रही है। योगी जी की सरकार सभी को समान दृष्टि से देखती है और सरकारी योजनाओं का लाभ भी बिना किसी भेदभाव के दिया जा रहा है। जबकि इससे पूर्व सपा की सरकार में हिन्दुओं का तिरस्कार किया गया। अगर योगी जी अपराध को समाप्त करने की बात करते हैं तो इसमें मुसलमान कहां से आ गया। यह भेद सपा और कांगे्रस करती होगी, लेकिन योगी जी की नजर में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं है। लेकिन मुसलमानों में कुछ लोग ऐसे हैं जो भारतीय समाज को एकजुट नहीं देखना चाहते हैं। असदुद्दीन औवेसी हों, ये सब समन्वय की दृष्टि से कही गई बात के विरोध से बयानबाजी करते हैं। औवेसी सच्चाई को भी राजनीति के खून से रंगने में ये चतुर हैं। हाल ही में उत्तरप्रदेश चुनाव में उन्होंने मुस्लिम प्रभावित क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन मुस्लिम जनता ने ही उन्हें नकार दिया। देश की एकता व अखंडता को बरकरार रखने के लिए हिन्दुस्तान का हर युवा अब पाकिस्तान की यह कुत्सित चाल समझ चुका है। साथ ही वह भी अब राष्ट्रीय विकास की धारा से जुड़ना चाहता है। इसलिए अब उनकी यह चाल ज्यादा सफल नहीं होने वाली।

उत्तरप्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री मोहसिन रजा स्पष्ट रुप से कहते हैं कि भाजपा में मुसलमानों का जितना सम्मान है, उतना किसी अन्य दल में नहीं है। यह सही है कि अन्य राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को केवल भय दिखाकर वोट के रुप में प्रयोग किया। वर्तमान में देश का मुसलमान इस सत्य को समझ चुका है और वह भी सबका साथ सबका विकास के भाव को अंगीकार करके अपना विकास चाहता है, लेकिन फिर भी मुसलमानों को गुमराह करके इस समन्वय की भावना से दूर करने किए जाने लगे हैं। जो देश के लिए खतरा तो है ही। साथ ही समाज के लिए भी घातक है।
(लेखक राजनीतिक चिंतक व विचारक हैं)