भारत की सांस्कृतिक ज्योति: दिवाली का यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में प्रवेश

India's cultural light: Diwali enters UNESCO World Heritage

सुनील कुमार महला

हाल ही में भारत के सबसे बड़े त्योहार ‘दीपावली'(प्रकाश महोत्सव) को यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया है, बधाई और शुभकामनाएं।कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत की यह उपलब्धि भारत की सांस्कृ‌तिक शक्ति व परंपरा की महत्ता को विश्वपटल पर और अधिक मजबूती प्रदान करती है।वास्तव में यह हम सभी भारतीयों के लिए बहुत ही ख़ुशी,गौरव का विषय है और अपने-आप में ऐतिहासिक भी। यह हमें गौरवान्वित महसूस कराता है कि हमारी दिवाली अब विश्व धरोहर बन गई है। पाठकों को बताता चलूं कि लाल किला परिसर में चल रही यूनेस्को की बैठक(20 वें सत्र) में 10 दिसंबर 2025 बुधवार को दिवाली को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कर लिया गया है।यह पहली बार है कि भारत अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए अंतरसरकारी समिति के सत्र की मेजबानी कर रहा है। गौरतलब है कि सूची में यह देश की 16वीं विरासत है। दूसरे शब्दों में कहें तो पहले से ही लिस्ट में भारत की 15 धरोहरें शामिल हैं।इस खुशी के अवसर पर देशभर में विश्व धरोहरों पर रौशनी की गई। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देता चलूं कि अभी तक सूची में क्रमशः हमारे देश के कुम्भ मेला, दुर्गा पूजा, नवरोज, योग, गरबा नृत्य, कालबेलिया नृत्य, छाऊ नृत्य, मुडियेडू नृत्य, वैदिक मंत्रपाठ, संकीर्तन, बौद्ध पाठ, कुटियट्टम, रामलीला आदि को शामिल किया गया है। हाल फिलहाल यूनेस्को ने दिवाली को सांस्कृतिक विरासत चुना है। दरअसल, इसके पीछे कारण यह है कि दिवाली खुशी का मौका है, जो अंधेरे पर रौशनी और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह विभिन्न परिवारों-समुदायों के लिए एक साथ आकर तोहफे, मिठाइयां बांटने,दीप जलाने और जश्न मनाने का समय है। दिवाली भारत का एक ऐसा त्योहार है, जिसे हर उम्र, जेंडर, पृष्ठभूमि के लोग मनाते हैं। यह सबको साथ लेकर चलने को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। दीपावली हमारी परंपराओं, कला या सांस्कृतिक प्रक्रिया या यूं कहें कि हमारी साझा विरासत और सामूहिक पहचान को व्यक्त करती है।यह समाज में हमारे रिश्तों को मजबूत करती हैं, लोगों को आपस में जोड़ती हैं और आपसी समझ बढ़ाती हैं। साथ ही साथ यह स्थानीय कलाकारों, कारीगरों, परंपराओं और व्यवसायों को बढ़ावा देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था और रचनात्मकता को भी समर्थन प्रदान करती है। बहरहाल, भारत ने यूनेस्को की 2027 की बैठक के लिए छठ पर्व, वाल्मीकि रामायण और ओरछा के राम राजा मंदिर का प्रस्ताव तैयार किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दीपावली को यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में शामिल किए जाने का स्वागत करते हुए यह बात कही है कि इससे त्योहार की वैश्विक लोकप्रियता में और वृद्धि होगी। मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, भारत और दुनिया भर के लोग रोमांचित हैं। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (आईसीएच) के संरक्षण के लिए अंतर-सरकारी समिति के 20वें सत्र के दौरान दीपावली के इस सूची में शामिल होने की घोषणा के तुरंत बाद केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने देश की ओर से एक बयान दिया। भारत ने 2024-25 के लिए 2023 में यूनेस्को को दीपावली नामांकन का दस्तावेज भेजा था। शेखावत ने अपने संबोधन में कहा, ‘हर भारतीय के लिए दीपावली बेहद भावनात्मक त्योहार है, इसे पीढ़ियों से मनाया जा रहा है, इसे महसूस किया जाता है और आत्मसात किया जाता है।’ केंद्रीय मंत्री ने यह बात कही कि-‘ दीपावली को इस सूची में शामिल करके यूनेस्को ने नवीकरण, शांति और अच्छाई की जीत के लिए शाश्वत मानवीय अभिलाषा का सम्मान किया है।’ शेखावत ने कहा कि ‘कुम्हारों से लेकर कारीगरों तक लाखों हाथ इस विरासत को जीवित रखते हैं।’ उन्होंने कहा कि-‘ यूनेस्को का यह टैग भी एक जिम्मेदारी है और हमें सुनिश्चित करना होगा कि दीपावली हमेशा एक विरासत बनी रहे।’ इतना ही नहीं, हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को दीपावली को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किए जाने का स्वागत करते हुए कहा कि इसरो त्यौहार की वैश्विक लोकप्रियता में और वृद्धि होगी। मोदी ने यूनेस्को द्वारा दीपावली को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किये जाने की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि, ‘भारत और दुनिया भर के लोग रोमांचित हैं।’ उन्होंने कहा, ‘दीपावली हमारी संस्कृति और मूल्यों से गहराई से जुड़ी हुई है।’ बहरहाल, यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में हमारे देश की किसी परंपरा, कला, स्थान या रीति-रिवाज़ का शामिल होना इस बात का प्रतीक है कि वह विरासत विश्व-स्तर पर अद्वितीय, महत्वपूर्ण और संरक्षित किए जाने योग्य मानी गई है। सीधा सा मतलब यह है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर विश्व-भर में अनमोल और विशिष्ट मानी गई है। वास्तव में, यह अंतरराष्ट्रीय मान्यता न केवल हमारे देश और समाज के गौरव को बढ़ाती है, बल्कि हमें इस विरासत को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी सौंपती है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इसे उसी रूप में अनुभव कर सकें। इसके साथ ही, यह स्थानीय समुदायों को पहचान, सम्मान और रोज़गार के अवसर देकर उन्हें सशक्त बनाती है। पर्यटन बढ़ने से आर्थिक लाभ भी होता है, जिससे क्षेत्रीय विकास को नई दिशा मिलती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब किसी देश की कोई चीज़-जैसे कोई स्मारक, परंपरा, कला, त्योहार या प्राकृतिक स्थल आदि वैश्विक धरोहर घोषित होती है, तो उससे उस देश को कई बड़े फायदे मिलते हैं। सबसे पहले, उस धरोहर को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलती है और दुनिया उसे विशेष महत्व के रूप में स्वीकार करती है। इससे उसके संरक्षण और देखभाल के लिए विशेषज्ञों तथा संस्थाओं का सहयोग मिलता है, जिससे धरोहर लंबे समय तक सुरक्षित रहती है। विश्व धरोहर बनने से पर्यटन बढ़ता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ, रोजगार के नए अवसर और लोगों की आय में वृद्धि होती है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदाय, कलाकार और शिल्पकारों को मान-सम्मान के साथ अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने का मौका मिलता है। कुल मिलाकर, वैश्विक धरोहर घोषित होने से किसी देश की प्रतिष्ठा बढ़ती है, उसकी सांस्कृतिक विरासत मजबूत होती है और वह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रह पाती है। बहरहाल, यह सूची हमें यह याद दिलाती है कि हमारी संस्कृति केवल हमारी नहीं, बल्कि पूरी मानवता की साझा विरासत है, जिसे मिलकर संजोना आवश्यक है। हाल फिलहाल,यह बहुत अच्छी बात है कि सांस्कृतिक विरासत के मामले में भारत को एक और कामयाबी हासिल हुई है, लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि सांस्कृतिक विरासत के मामले में भारत अभी भी दुनिया में काफी पीछे है। दुनिया भर में आज इटली, चीन, जर्मनी, फ्रांस और स्पेन ऐसे देश हैं,जो हमारे देश से सांस्कृतिक विरासत की तुलना में आज बहुत आगे हैं। यहां यदि हम इटली की बात करें तो वर्तमान में दुनिया में सबसे ज़्यादा यूनेस्को विश्व-धरोहर स्थलों वाला देश है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार इटली के पास लगभग 61 ऐसे स्थान/स्थल हैं, जो इसके ऐतिहासिक, वास्तुशिल्पीय, सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं।यहाँ प्राचीन रोमन सभ्यता, पुनर्जागरण काल, मध्ययुगीन शहर, प्राकृतिक सुंदरता सब मिलते हैं। रोम का कोलोसीयम, वेनिस, फ्लोरेंस, ऐतिहासिक इतालवी शहर, डोलोमाइट पर्वतीय क्षेत्र आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।संख्या के हिसाब से इटली के बाद चीन का स्थान(कुल हेरिटेज 60) आता है। सच तो यह है कि चीन के पास भी हेरिटेज साइट्स की एक लंबी सूची है, जो इसके प्राचीन सभ्यता, परंपराओं, ऐतिहासिक धरोहरों, वास्तुकला आदि को दर्शाती है। सच तो यह है कि चीन की सांस्कृतिक विरासत में प्राचीन सभ्यताएँ, साम्राज्यों की स्थापत्य, अनगिनत ऐतिहासिक स्थल, प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों का अद्वितीय मिश्रण है-जैसे महान दीवार, प्राचीन शहर, प्राकृतिक घाटियाँ, ऐतिहासिक मंदिर-महल आदि। ठीक इसी प्रकार से जर्मनी के पास कुल 55 वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स, फ्रांस के पास 54, स्पेन के पास 50 वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स हैं। हालांकि,भारत की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत बहुत ही विविध और समृद्ध है और उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत के पास लगभग 44 यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स हैं। इनमें से अधिकांश सांस्कृतिक हैं, साथ ही प्राकृतिक और ‘मिश्र’ श्रेणी के भी कुछ स्थलों को शामिल किया गया है। यहाँ विभिन्न ऐतिहासिक काल, धर्म, स्थापत्य-शैलियाँ, प्राकृतिक भौगोलिक विविधताएं सब मौजूद हैं। ताजमहल, क़ुतुब मीनार, हुमायूं का मकबरा, खजुराहो के मंदिर, भित्ति-चित्रों वाले अजंता-एलोरा गुफाएँ, प्राकृतिक सुंदरता जैसे पश्चिमी घाट, जंगल आदि कुछ उदाहरण हैं।इसके अलावा भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत लोक-आदतें, त्योहार, परंपराएं, धार्मिक व सांस्कृतिक विविधता- इसे विश्व के सबसे समृद्ध सांस्कृतिक स्वरूपों में से एक बनाती है। यहां गौरतलब है कि मेक्सिको इस सूची में सातवें स्थान पर आता है, तथा इसके पास लगभग 36 वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स,यूनाइटेड किंगडम (यूके) के पास लगभग 35,रूस के पास 33(नौंवा स्थान), तथा ईरान के पास 28-29 वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स हैं। हाल फिलहाल, पाठकों को स्पष्ट करता चलूं कि 2010 से पहले की प्रारंभिक सूची के अनुसार भारत के लगभग 16 पारंपरिक सांस्कृतिक तत्व वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की सूची में शुरुआती वर्षों में सूचीबद्ध हुए थे तथा समय के साथ यह संख्या लगातार बढ़ती गई औ अब इस सूची(2024–25 तक की विस्तारित सूची) में 40+ (लगभग 44) सांस्कृतिक तत्व (34 सांस्कृतिक + 7 प्राकृतिक + मिश्रित) शामिल हैं, जिनमें क्रमशः जैसा कि इस आलेख में ऊपर भी बता चुका हूं कि योग, ऋग्वेद, कुंभ मेला, छऊ नृत्य, रामलीला परंपरा, कालबेलिया नृत्य,कुदियाट्टम, नवरोज़, गुरु-परंपरा, कश्मीर की कढ़ाई और कई अन्य परंपराएँ शामिल हैं। भारत दुनिया के प्राचीनतम देशों में शामिल है, यहां कदम-कदम पर सांस्कृतिक विविधता और वैभवशाली इमारतें हैं, लेकिन अभी तक यहां के 44 स्थानों या सांस्कृतिक आयोजनों को ही विरासत की सूची में शामिल किया गया है। गौर करने की बात है कि भारत की तुलना में काफी छोटा देश इटली इस मोर्चे पर सबसे आगे है, और वहां की सबसे ज्यादा 61 सांस्कृतिक धरोहर यूनेस्को के तहत दर्ज हैं। चीन इस तालिका में दूसरे स्थान पर है। अतः यहां पर यह बात सोचने लायक है कि भारत की इतनी सारी अनूठी धरोहरों को अभी तक वैश्विक स्तर पर वह पहचान क्यों नहीं मिल पाई, जिसकी वे हकदार हैं। दुख की बात यह भी है कि इस सूची में शामिल कराने के लिए भारत की ओर से जितनी सक्रियता होनी चाहिए, उतनी नहीं रही। अंत में यही कहूंगा कि किसी भी स्थान या परंपरा को वैश्विक धरोहर घोषित करवाने से देश का दुनिया भर में आकर्षण बढ़ता है। यूनेस्को की मान्यता मिलने पर पर्यटक ऐसे स्थानों पर ज़्यादा आना पसंद करते हैं। शायद यही कारण है कि जिन देशों के पास ज़्यादा वैश्विक धरोहरें हैं-जैसे इटली, तो वहां विदेशी पर्यटक भी बहुत अधिक संख्या में पहुँचते हैं और इससे देश को भारी आर्थिक लाभ मिलता है। यह बात ठीक है कि भारत की सांस्कृतिक विविधता, प्रकृति, आध्यात्मिक स्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों का आकर्षण विश्व भर के यात्रियों को लगातार अपनी ओर खींच रहा है और वर्ष 2024 में भारत में कुल लगभग 99.5 लाख विदेशी पर्यटक आए, लेकिन भारत में अभी भी विदेशी पर्यटकों की संख्या काफी कम है, इसलिए यह बहुत ही ज़रूरी है कि भारत अपनी और सांस्कृतिक धरोहरों को यूनेस्को में दर्ज करवाने के अपने प्रयासों को और अधिक गति दे। हाल ही में दीपावली को मिली यूनेस्को मान्यता निश्चित ही हमारे देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसका सकारात्मक असर दुनिया में भारत की छवि और पर्यटन दोनों पर पड़ेगा। अतः हमारे देश को यह चाहिए कि हम अपनी बाकी धरोहरों को भी मान्यता दिलाने के प्रयास तेज़ करने की दिशा में कदम बढ़ाए। दीपावली को यूनेस्को की सूची में स्थान मिलने से अब भारत में विदेशी सैलानियों की संख्या में और अधिक इज़ाफ़ा हो सकेगा और इससे हमारे देश को आर्थिक लाभ मिलेगा। निष्कर्ष के तौर पर यह बात कही जा सकती है कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए यूनेस्को नामांकन की प्रक्रिया में तेजी और नियमों में सुधार की आवश्यकता है। आज भी हमारे यहां कई प्राचीन इमारतें, परंपराएं और त्योहार अंतरराष्ट्रीय पहचान पाने की क्षमता रखते हैं। छठ पूजा का प्रस्ताव इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब समय है कि भारत अपनी बहुआयामी सांस्कृतिक पहचान को विश्व मंच पर मजबूत और प्रभावी रूप से प्रस्तुत करे।