ललित गर्ग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस और ऑस्ट्रिया की यात्रा के निष्कर्षों के साथ-साथ इसके वैश्विक निहितार्थ भी तलाशे जा रहे हैं। इन दोनों देशों की राजकीय यात्रा अनेक दृष्टियों से नई उम्मीदों को पंख लगाने के साथ भारत को शक्तिशाली बनाने वाली होगी। दोनों देशों की यात्रा के दौरान हुए विभिन्न समझौते भारत की तकनीकी एवं सामरिक जरूरतों को पूरा करने में अहम कदम साबित होंगे। सैन्य उत्पाद, व्यापार व उद्योग के साथ-साथ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रूस और ऑस्ट्रिया के साथ द्विपक्षीय सहयोग ने नई उम्मीदें जगाई हैं। इन यात्राओं के दौरान प्रधानमंत्री ने जो प्रयास किए वे मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भरता के प्रयास, नये भारत-सशक्त भारत एवं सतत विकास की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होंगे। निश्चित ही प्रधानमंत्री मोदी के प्रति इन दोनों देशों में जो सम्मानभावना देखने को मिली, उससे यही कहा जा सकता है कि मोदी विश्व-नेता के रूप में स्वतंत्र पहचान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहे हैं, जो भारत के लिये शुभ है।
निश्चित तौर पर वैश्विक राजनीति में अपनी चमक के साथ आगे बढ़ते भारत के लिये रूस की यात्रा कई मायनों में बहुत उपयोगी एवं दूरगामी रही। इस यात्रा के दौरान भारत और रूस के बीच हुई 22वीं द्विपक्षीय बैठक में हुए नए समझौते काफी अहम हैं। रूस के युद्ध में फंसे होने के कारण रक्षा जरूरतों से संबंधित आपूर्ति में बाधा होना हमारे लिए चिंता की बात थी लेकिन मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही रक्षा उपकरणों के स्पेयर पार्ट्स का प्लांट लगाने पर सहमति जताकर पुतिन ने बड़ी चिंता का समाधान कर दिया है। दोनों देशों के बीच का व्यापार 2030 तक 65 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक करने पर भी सहमति बनी है। यह भारत-रूस के विशेष रिश्ते को और मजबूत करने वाले होंगे। भारत-रूस की दोस्ती की गर्माहट से चीन एवं पाकिस्तान की बौखलाहट भी देखने को मिली है।
यूक्रेन और गाजा में युद्धों की पृष्ठभूमि के बीच प्रधानमंत्री मोदी की रूस और ऑस्ट्रिया की यात्रा पर दुनिया की नजरे लगी रही। एक धु्रवीय विश्व व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रहे अमरीका और बहुधु्रवीय विश्व व्यवस्था में अपना हित देख रहे रूस के बीच भारत की स्थिति एवं उसकी बढ़ती ताकत का भी विश्लेषण किया जा रहा है। मास्को में प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के गले मिलने पर यूक्रेन की नाराजगी के बावजूद अमरीका की सधी प्रतिक्रिया सामने आयी कि इससे उसके भारत से रिश्तों पर कोई असर नहीं होगा। निश्चित ही इससे यह साफ हो जाता है कि दुनिया अब एक या दो धु्रवीय नहीं रही। अमेरीका यह जान रहा है कि चीन के तानाशाही भरे रवैये से निपटने के लिए भारत का साथ आवश्यक है। वास्तव में इस आवश्यकता ने भी अमेरीका में भारत की अहमियत बढ़ाने का काम किया है। यह अहमियत यही बता रही है कि अब भारत का समय आ गया है। वास्तव में आज अमेरीका ही नहीं, विश्व का हर प्रमुख देश भारत को अपने साथ रखना आवश्यक समझ रहा है। कहना न होगा कि वैश्विक मंच पर योग का विषय हो, या अहिंसा का या फिर आतंकवाद से निपटने का, जलवायु परिवर्तन का मसला हो या फिर जी-20 देशों की अध्यक्षता की बात, भारत, दुनिया को नई दिशा दे रहा है, नई उम्मीदें जगा रहा है।
एक नई ताकत एवं सशक्त अर्थ-व्यवस्था के साथ एक नया ध्रुव बनकर उभर रहा भारत समूची दुनिया की नजरों का ताज बना हुआ है। भारत अब बिना किसी दबाव के किसी भी अन्य ताकतवर देश की नाराजगी मोल लेने का हौसला रखता है। शीतयुद्ध के दौर में दो धु्रवीय विश्व व्यवस्था के बाद एक धुवीय व्यवस्था का अनुभव दुनिया को मिल चुका है। अब बहुधु्रवीय विश्व व्यवस्था में ही संभावनाएं देखी जा रही हैं। ग्लोबल साउथ की आवाज बन भारत वैश्विक भूमिका को खुलकर प्रदर्शित भी कर रहा है। वैसे भी भारत एक बड़े देश के पाले में कभी नहीं रहा। अनेक संकटों से घिरा होकर भी भारत अपनी बात बुलन्दी के साथ दुनिया के सामने रखता रहा है, नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री के तीनों कार्यकाल में भारत ने अपने शक्तिशाली होने का भान कराया है।
भारत की रूस से दोस्ती तो बहुत पुरानी है, लेकिन अमरीका, ऑस्ट्रिया या अन्य नए देशों से दोस्ती का यह मतलब नहीं है कि अपने पुराने साथियों से दूर हो जाएं। इजरायल और फिलिस्तीन के मामले में भी यह देखा जा सकता है। इजरायल से नई दोस्ती के बावजूद फिलिस्तीन पर हमारी रणनीति नहीं बदली है। उसी तरह रूस से अच्छे संबंध का यह मतलब नहीं कि यूक्रेन के मामले में उसे क्लीन चिट दे दें। यही वजह है कि राष्ट्रपति पुतिन को मोदी ने शांति का पाठ पढ़ाने में कोई हिचक नहीं दिखाई। भारत की इस भूमिका के बीच अब अमरीका भी यह कहने में संकोच नहीं कर रहा है कि भारत को यूक्रेन युद्ध रोकने की पहल करनी चाहिए। फिलहाल शांति के पक्षधर अन्य देश भारत के साथ मिलकर रास्ता खोजने की पहल कर रहे हैं। ऑस्ट्रिया का रूस और यूक्रेन के बीच संभावित समझौता वार्ता का मंच बनने की इच्छा जाहिर करना यही बताता है।
भारत अहिंसा एवं शांति का हिमायती का देश है और मानता है कि युद्ध से किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता। युद्ध केवल बर्बादी और तबाही लेकर ही आता है। रूस व यूक्रेन के बीच जो सीमा विवाद है वह इन देशों के बीच का मामला है और भारत शुरू से ही कहता रहा है कि इस समस्या का हल केवल बातचीत से ही होना चाहिए। श्री मोदी ने रूस की यात्रा के दौरान भी भारत का यही रुख सामने रखा और स्पष्ट किया कि किसी भी झगड़े को निपटाने का रास्ता केवल वार्तालाप ही हो सकता है। श्री मोदी ने रूस से आस्ट्रिया पहुंच कर भी इस रुख को और खोला और कहा कि भोले-भाले लोगों की हत्या कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती। इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के सन्दर्भ में इस तथ्य को अमेरिका को ही सबसे पहले समझना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा से क्या चीन की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं पर असर पडे़गा? क्योंकि रूस एवं चीन के बीच बढ़ती मित्रता एवं प्रगाढ़ता समूची दुनिया के लिये एक चिन्ता का सबब है। भले ही अमरीका की ताकत को देखते हुए रूस ने चीन से निकटता बनाई हो, लेकिन भारत से उसकी दोस्ती इन सबसे ऊपर है। फिर भी चीन एवं पाकिस्तान भारत के दुश्मन ही रहे हैं। इन हालातों के बीच मोदी की रूस और ऑस्ट्रिया यात्रा भारत के भाग्य के लिए नये सूर्य का उदय कही जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी की जितनी महत्वपूर्ण यात्रा रूस की रही, उतनी ही महत्वपूर्ण ऑस्ट्रिया की यात्रा भी रही। मोदी ने पाकिस्तान के साथ चीन को भी निशाने पर लेते हुए पुतिन से कहा कि चीन जहां पाकिस्तान के आतंकवाद को सहयोग-समर्थन और संरक्षण देने से बाज नहीं आ रहा है, वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते एशिया ही नहीं, पूरे विश्व के लिए खतरा बन गया है। अब मोदी की इन बातों का पुतिन पर क्या असर होगा, यह भविष्य के गर्भ में है।
जहां तक रूस से मित्रता का सवाल है तो यह भारत का परखा हुआ सच्चा मित्र है और भारत यह दोस्ती कभी नहीं छोड़ सकता। पिछले दो दशकों में हमारे सम्बन्ध अमेरिका से भी मधुर हुए हैं परन्तु हमारी विदेश नीति पूरी तरह स्वतन्त्र है और दुनिया का कोई भी देश इसे प्रभावित नहीं कर सकता। भारत के द्विपक्षीय सम्बन्ध किस देश के साथ कैसे हैं यह केवल भारत ही तय करेगा। अमेरिका हमें रूस-यूक्रेन के बारे में क्या समझायेगा? भारत पर दुनिया का बढ़ता भरोसा इस बात का परिचायक है कि भारत विश्व की एक महाबड़ी शक्ति बनने की राह पर अग्रसर है और भारत शांति एवं अयुद्ध का हिमायती है। हम तो पहले ही यह कह चुके हैं कि भारत बुद्ध-महावीर-गांधी का देश है और इसकी विदेश नीति भी इनसे प्रेरणा लेकर ही तय होती रही है। बदलते वैश्विक सन्दर्भों के बावजूद भारत आपसी शान्ति, अहिंसा, युद्धमुक्त विश्व-संरचना व सह अस्तित्व पर ही विश्वास रखता है। दुनिया की महाशक्तियांे द्वारा भारत को तवज्जो देने के पीछे जिन वजहों को देखा जा रहा है, उनमें व्यापारिक प्रगति के साथ शांति एवं अमन-चैन की दुनिया बनाना भी मुख्य है। निश्चित ही मोदी की रूस और ऑस्ट्रिया यात्रा भारत के लिये ‘सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना’ एवं ‘परिवर्तनकारी क्षण’ साबित होगा।