डॉ. राजाराम त्रिपाठी
रतन टाटा का देहावसान न केवल एक महान उद्योगपति की मृत्यु है, बल्कि भारतीय व्यवसायिक परंपरा और नैतिक मूल्यों की युगांतरकारी विभूति का अंत है। भले ही उनका पारसी रीति से अंतिम संस्कार हो, उनके विचार, सिद्धांत और योगदान सदैव अमर रहेंगे। वे सिर्फ एक महान कारोबारी नहीं थे, बल्कि उन्होंने भारतीय पारिवारिक व्यवसाय को उच्च आदर्शों पर स्थापित किया। अपने नेतृत्व से उन्होंने टाटा समूह को कई नए आयाम दिए और *देश की लगभग दो पीढ़ियों के युवाओं को प्रेरित किया।
रतन टाटा ने व्यवसाय जगत में जो ऊंचे मानदंड स्थापित किए, वे सिद्धांतों और उसूलों के अनुपालन के लिए सदैव याद किए जाएंगे। उनके नेतृत्व ने हमें सिखाया कि व्यापार सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं होता, बल्कि यह समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी भी होती है। जहाँ कई कंपनियाँ मुनाफे में उनसे आगे निकल सकती हैं, वहीं सामाजिक जिम्मेदारी और नैतिकता में वे उनसे पीछे हैं। “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” – यह श्लोक उनके जीवन का सार था, जिसमें कर्म को महत्व दिया गया और फल की चिंता नहीं की गई।
जमशेदजी से रतन तक: विरासत का शानदार सफर
रतन टाटा ने अपने पूर्वज जमशेदजी टाटा के सिद्धांतों को और ऊँचाई तक पहुँचाया। व्यवसाय को उन्होंने एक पवित्र संस्कृति के रूप में देखा और समाज के प्रति अपने दायित्व को सबसे अधिक महत्व दिया। आज के समय में जहाँ कई उद्योगपति दिखावे और विलासिता में विश्वास रखते हैं, वहीं रतन टाटा ने सादगी और सेवा का मार्ग अपनाया।
मेरे जेहन में आज भी मुंबई के ताज होटल में साधारण कपड़ों में गुलाब के पौधों को संवारते हुए रतन टाटा की तस्वीरें कैद हैं। उनकी वह सादगी और उनका प्रकृति प्रेम उनकी असल शख्सियत को बयां करता है।
दूसरे धन कुबेरों से एकदम अलग थे रतन
देश में कारोबार में ऊंचाइयों की चंद सर्वोच्च शिखरों को अगर देखा जाए तो एक ओर हमें ऐसे धन कुबेर नजर आते हैं जो अपने पारिवारिक आयोजनों में, जन्मदिन , शादी विवाह में देश विदेश की सबसे महंगे नचनिओं, गवैय्यों, अभिनेताओं और नेताओं को करोड़ों डॉलर यूरो की फीस भरकर अथवा मोटा चुनावी चंदा देकर अपने दरबार में बुलाकर नचाते और कोर्निश करवाते हैं।
जबकि इनके पास इतनी अपार संपत्ति होने के बावजूद, वे कभी दिखावे में नहीं उलझे।
निश्चित रूप से अकूत संपत्ति के मालिक एवं आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी से विवाह कर घर बसाने के लिए कभी लाखों ललनाएं लालायित रही होंगी,,, लेकिन सोचने की बात है की एक व्यक्ति जो समूचे देश और समाज को अपना परिवार मानता है वह अपने देश पर सब कुछ न्योछावर करने के लिए विवाह तक नहीं करता।
सामाजिक सेवा में उत्कृष्ट योगदान
रतन टाटा का जीवन व्यवसाय से कहीं बढ़कर सामाजिक सेवा और मानवता के प्रति समर्पण का प्रतीक था। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने न केवल उद्योगों में उन्नति की, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं भी शुरू कीं। “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया” की भावना को उन्होंने अपने जीवन में पूरी तरह अपनाया। उनके द्वारा शुरू किए गए शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा के कार्यों ने उन्हें भारतीय समाज का एक मसीहा बना दिया।
व्यक्तिगत प्रेरणा और व्यवसायिक योगदान
मैं मूलतः किसान हूं, परंतु एक कदम आगे बढ़कर मैंने अपने कृषि उत्पादों, जड़ी बूटियों का मूल्य संवर्धन कर उसे छोटे से उद्यम में के रूप में स्थापित किया है।
लाखों भारतीय उद्यमियों की तरह टाटा मेरे भी आदर्श थे। कुछ साल पहले जब मुझे ‘उद्योग रतन टाटा अवार्ड’ से मुंबई में सम्मानित किया गया, तो वह क्षण सिर्फ एक पुरस्कार नहीं, बल्कि प्रेरणा थी। वह प्रेरणा यह थी कि कोई भी व्यवसाय जब तक जनता के सुख-दुःख और समग्र समाज के विकास से नहीं जुड़ा होता, तब तक उसकी उन्नति अधूरी है। रतन टाटा ने साबित किया कि व्यवसाय की सच्ची सफलता मुनाफे में नहीं, बल्कि समाज और देश के प्रति सेवा में है।
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने वैश्विक स्तर पर भारतीय उद्योग का परचम लहराया। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), टाटा मोटर्स, और टाटा स्टील जैसी कंपनियों ने भारत को दुनिया के शीर्ष उद्योगपतियों में स्थान दिलाया। उनकी दूरदर्शिता ने टाटा नैनो जैसी सस्ती और सुलभ कार बनाई, जिससे आम आदमी को भी कार खरीदने का सपना साकार हुआ। इसके साथ ही, उन्होंने स्टार्टअप्स में निवेश कर युवा उद्यमियों को भविष्य की दिशा दी।
भारत रत्न: सुयोग्य पात्र का सही सम्मान
‘देर आयद दुरुस्त आयद
यह कहना गलत नहीं होगा कि रतन टाटा जी भारत के सच्चे रत्न थे। यदि उन्हें जीवित रहते भारत-रत्न पुरस्कार दिया जाता, तो वह पुरस्कार भी सार्थक हो जाता।
किंतु हमारे देश में जिस तरह मुंह देखकर और राजनीतिक विचारधारा तथा वोट बैंक के आधार पर सरकारी-अवार्ड यहां तक की पद्य अवार्ड भी रेवड़ियों की तरह अपनों में ही बंटते जाते हैं (*अपवादों को छोड़कर) ऐसे में रतन टाटा जी के लिए भारत-रत्न की सिफारिश करने का कोई खास मतलब नहीं है। आखिरकार रतन टाटा कोई वोट बैंक तो थे नहीं। वह उस पारसी समुदाय से आते हैं, जिनकी संख्या वर्तमान में मुट्ठी भर (लगभग एक लाख मात्र है) और वह भी बढ़ने के बजाय धीरे धीरे कम होते जा रही है। अब चूंकि सरकार अवार्ड देने के साथ ही वोट-बैंक साधने के लक्ष्य को भी सर्वोपरि रखती है, इसलिए मुझे रतन टाटा जी के लिए भारत रत्न प्राप्त करना दूर की कौड़ी लगती है।
फिर भी सरकारें कई बार माहौल को देखकर चौंकाने वाले निर्णय लेने में भरोसा रखती हैं, इसलिए अगर रतन टाटा को उनके प्रति उमड़ी जन भावनाओं के मद्देनजर, अगर किसी भी कारण से भारत-रत्न अवार्ड मिलता है तो यह इस अवार्ड के साथ भी सही न्याय होगा और यदि सरकार उन्हें भारत रत्न नहीं भी देती है तो इससे भी रतन टाटा जी की शख्सियत पर कुछ खास डेंट या असर नहीं पड़ने वाला । रतन टाटा की महानता किसी अवार्ड की मोहताज नहीं है। क्योंकि रतन टाटा तो भारत मां के असल लाल थे ही।और चाहे उन्हें भारत रत्न मिले या न मिले, वे सदैव भारतीय जनता के दिलों में एक सच्चे ‘भारत रत्न’ के रूप में स्थापित रहेंगे।
अनमोल विरासत का अमर मूल्यांकन
रतन टाटा के योगदान का मूल्यांकन किसी भी पैमाने पर किया जाए, वह असीम और अनमोल है। उनके सिद्धांत हमें यह सिखाते रहेंगे कि व्यवसायिक सफलता का वास्तविक अर्थ क्या होता है। उनके जाने से भारत ने केवल एक उद्योगपति ही नहीं, बल्कि एक महान मार्गदर्शक और राष्ट्रसेवक को भी खो दिया है।
रतन टाटा जी की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें और उनके उसूलों का पालन करें। उन्होंने जो नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों की धरोहर हमें सौंपी है, वह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि “न तस्य प्रतिमा अस्ति” – यानि कि उनकी कोई तुलना नहीं। रतन टाटा जैसा कोई दूसरा न था, न है और न शायद कभी होगा।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी
राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)