भारत का धार्मिक बहुलवाद: सद्भाव और कानूनी सुरक्षा

India's religious pluralism: harmony and legal protection

रविवार दिल्ली नेटवर्क

जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 58वें सत्र में इंडिया वाटर फाउंडेशन की मुख्य पदाधिकारी श्वेता त्यागी ने 21 मार्च 2025 को भारत में धर्म और आस्था की स्वतंत्रता पर आम बहस 5 के दौरान एक वक्तव्य दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इंडिया वाटर फाउंडेशन अपनी स्थापना के बाद से ही अंतरधार्मिक सहयोग के माध्यम से समावेशी मूल्यों को आगे बढ़ा रहा है, सतत विकास लक्ष्यों में योगदान दे रहा है और एक स्थायी और बहुलवादी समाज को बढ़ावा दे रहा है। भारत सरकार अनुच्छेद 25-28 के तहत संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है, जो धर्म का स्वतंत्र रूप से अभ्यास, प्रचार और प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देती है। संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है जहाँ राज्य धार्मिक मामलों में तटस्थता बनाए रखता है। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राज्य स्तरीय अल्पसंख्यक आयोगों जैसे निकायों के माध्यम से सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करती है और उनकी चिंताओं का समाधान करती है। अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं और शैक्षिक कार्यक्रमों को लागू करता है। पूजा स्थल अधिनियम 1991 जैसे कानून पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने में मदद करते हैं, जबकि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को विशेष सुरक्षा प्रदान करता है। हाल ही में की गई पहलों में विभिन्न धर्मों के तीर्थ स्थलों के विकास के लिए प्रसाद योजना और सभी धार्मिक समुदायों के पारंपरिक कारीगरों को समर्थन देने वाला कार्यक्रम शामिल है। सरकार अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देती है और सभी समुदायों के धार्मिक त्योहारों को राष्ट्रीय आयोजन के रूप में मनाती है।