भारत में शादी में रिकार्ड 6.5 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान

India's wedding spending is estimated to reach a record Rs 6.5 lakh crore

  • यह पाकिस्तान के कुल बजट 5.5 लाख करोड़ रुपये से एक लाख करोड़ रुपये अधिक का अनुमान
  • कन्फेडरेसन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने शादी पर एक रिपोर्ट जारी की

प्रमोद शर्मा

देश भर में इस समय शादियों का मौसम शुरू हो गया है। अपनी आर्थिक हैसियत से अलग एक दूसरे की देखा देखी और शानों शौकत दिखाने के चक्कर में लोग जमा पूँजी के साथ कर्ज लेकर भी करोड़ो रूपए शादी में खर्च कर रहे हैं। अब शादी एक प्रकार से त्योहार का रूप लेने को आतुर है। इसके परिणाम क्या होते है और इस प्रकार से पैसे लुटाने का क्या मतलब है, इस गंभीर विषय पर किसी को चर्चा करने की फुर्सत नहीं है। अब शादियां अपने पुश्तैनी घर में नहीं होती है। इसके लिए कई विकल्प है। हालांकि अब तो गांव और छोटे शहरों में भी बैक्वेंट हाल बन गया है। लेकिन लोग भावनात्मक रूप से जुड़े मामले को छोड़ते हुए सीधे तौर पर इसे व्यावसायिक रूप देकर शादी आयोजित कर रहे हैं। कन्फेडरेसन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने शादी पर एक रिपोर्ट जारी की है और कहा है कि शादियों में खर्च पिछले कुछ सालों में तेज़ी से बढ़ा है। यह भारी खर्च भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद करेगा। इस बार भारतीय बाजार में रिकार्ड 6.5 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है। यह पाकिस्तान के कुल बजट 5.5 लाख करोड़ रुपये से एक लाख करोड़ रुपये अधिक का अनुमान है। वैवाहिक मौसम में इस बार देशभर में 46 लाख से अधिक जोड़े के दांपत्य जीवन में बंधने का अनुमान है। यदि बीते साल से इसकी तुलना की जाए तो पिछले साल दो लाख अधिक करीब 48 लाख विवाह हुए थे, लेकिन खर्च 5.90 लाख करोड़ का ही हुआ था। इसका मतलब साफ है कि इस बार लोग संख्या भले ही कम हो लेकिन जमकर पैसे लुटाएंगे। उधर आर्थिक विषयों पर अपनी पहचान रखने वाले ब्रोकरेज फर्म जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय लोग फूड और ग्रोसरी के बाद सबसे अधिक खर्च शादियों पर करते हैं। जेफरीज का अनुमान है कि एक भारत में एक शादी पर औसतन खर्च लगभग 15,000 डालर यानी 12.5 लाख रुपए है। यानी भारतीय परिवार अपनी औसत सालाना आय 4 लाख रुपए से 3 गुना अधिक खर्च शादियों पर करते हैं। भारत में शादी पर प्रति व्यक्ति आय से पांच गुना अधिक खर्च किया जा रहा है।

भारत में विदेश की दर्ज पर अब शादी का नया रूप डेस्टिनेशन विवाह तेजी से फैलने लगा है। शुरूआत में इसे कई मामले में कम खर्चीला माना जाता था, लेकिन जब महंगे कार्ड छपाने से लेकर वैंक्वेट हाल की अत्याधुनिक सजावट, खाने पीने के सैकड़ो प्रकार, लंबी गाड़ी घोड़ा वाला बनावटी बग्गी, वोडियोग्राफी को भी सीरियल की तर्ज पर रिकार्ड करते हुए हैसियत के हिसाब से तय किया जाना लगा है, तो फिर ऐसे में लड़की और लड़के वाले का संयुक्त रूप से एक अलग जगह पर आयोजित डेस्टिनेशन विवाह भी सिवाए फिजूलखर्ची के और कुछ नहीं है। कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी (सीआरटीडीएस) की जो रिपोर्ट सामने आई है, वह चौकाने वाला नहीं बल्कि देश में दिन प्रति दिन अमीर हो रहे लोगों की एक बानगी भी सामने ला रहा है। देश के करीब सौ प्रमुख शहरों में किया गया यह सर्वे में यह बात खुलकर सामने आई है कि भारत की “वैवाहिक अर्थव्यवस्था” घरेलू व्यापार का एक मजबूत स्तंभ अभी भी बनी हुई है।

कैट के अध्ययन में बताया गया है कि साल दर साल शादी पर खर्च बढ़ रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह बढ़ती आय के साथ, खर्च में ताबड़तोड़ वृद्धि और आभूषण के मामले में सोने चांदी की कीमतों में उछाल के बाबजूद लोगों में इसकी खरीदारी में विश्वास का बढ़ना भी माना गया है। कैट के अध्ययन में यह भी सामने आया कि परिधान, आभूषण, सजावट सामग्री, बर्तन, कैटरिंग आइटम समेत शादी से जुड़े 70 प्रतिशत से अधिक सामान भारतीय निर्मित हैं। पारंपरिक कारीगरों, ज्वैलर्स और वस्त्र उत्पादकों को भारी आर्डर मिल रहे हैं, जिससे भारत की स्थानीय विनिर्माण क्षमता और हस्तकला को नया बल मिल रहा है। इसी तरह, 45 दिवसीय शादी के मौसम में सरकारों को भी लगभग 75 हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त होगा। अध्ययन के अनुसार, 6.5 लाख करोड़ के अनुमानित शादी खर्च में से वस्त्र व साड़ियाें पर 10 प्रतिशत, आभूषण 15 प्रतिशत, इलेक्ट्रानिक्स व इलेक्ट्रिकल्स पांच प्रतिशत, सूखे मेवे व मिठाई तथा किराना व सब्जियों पर पांच-पांच प्रतिशत, उपहारों पर चार तथा अन्य सामानों का छह प्रतिशत हिस्सा होगा।

वहीं, सेवाओं के क्षेत्र में समारोह आयोजन में पांच, कैटरिंग पर 10, फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी पर दो, यात्रा व आतिथ्य पर तीन, पुष्प सजावट चार प्रतिशत, म्यूजिकल ग्रुप्स तीन, लाइट एंड साउंड पर तीन तथा अन्य सेवाओं पर तीन प्रतिशत खर्च होगा।
डिजिटल पर भी होगा खर्चा–डिजिटल और आधुनिक ट्रेंड्स पर भी खर्च हो रहा है। शादी के बजट का एक से दो प्रतिशत डिजिटल कंटेंट निर्माण और इंटरनेट मीडिया कवरेज पर खर्च होता है। जिसमें एआइ आधारित निमंत्रण पत्र व वीडियो के साथ कार्यक्रम तैयार हो रहे हैं। दिल्ली में इस मौसम होने वाली 4.8 लाख शादियों से 1.8 लाख करोड़ का व्यापार होगा, जिसमें सबसे अधिक खर्च आभूषण, फैशन और शादी स्थान पर होगा। जबकि, राजस्थान और गुजरात में भव्य व डेस्टिनेशन वेडिंग्स का चलन बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में पारंपरिक सजावट और कैटरिंग पर भारी खर्च देखा जा रहा है। शादी को यादगार बनाने और खर्च को आपस में दोनों परिवारों में बांट लेने का नाम ही डेस्टिनेशन वेडिंग (घर से बाहर मनमोहक जगह पर शादी) का रूप विदेश की दर्ज पर अपने देश में भी आया था। कहा जा रहा है कि कोविड के समय से डेस्टिनेशन वेडिंग ज्यादा होने लगा। लेकिन इस समय डेस्टिनेशन वेडिंग इस तरह लोकप्रिय हो गया है कि आम तौर पर लोग देश की ही कोई नई जगह देखने और घर से दूर मौज मस्ती करने का बहाना ढ़ूढ़ना शुरू कर दिया है। अब डेस्टिनशन वेडिंग काफी महंगी और बजट के बाहर हो रही है। लोग पहले से जमा पैसे के साथ आस पड़ोस और बैंक तक से कर्ज लेकर इसे कर रहे हैं।

बैंक्वेट सेवाओं की मांग बढ़ी–महाराष्ट्र व कर्नाटक में समारोह प्रबंधन और बैंक्वेट सेवाओं की मांग बढ़ी है। दक्षिणी राज्यों में हेरिटेज और मंदिर शादियों के कारण पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है। इसी तरह, इस बार के शादी आयोजनों से एक करोड़ से अधिक अस्थायी और अंशकालिक रोजगार सृजित होने की संभावना है, जिससे डेकोरेटर, कैटरर, फ्लोरिस्ट, कलाकार, परिवहन और सेवा क्षेत्र के लोग सीधे लाभान्वित होंगे। वस्त्र, गहने, हस्तशिल्प, पैकेजिंग और ढुलाई जैसे एमएसएमई क्षेत्रों को भी मौसमी बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश की अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। लोग प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद विदेशी स्थलों की जगह देश में विवाह को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे भारतीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था पर गर्व झलकता है।

प्रमुख मदों पर खर्च का ब्योरा–शादी का खर्च विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के क्षेत्रों में फैला हुआ है। कैट के अनुमानों के अनुसार, 6.5 लाख करोड़ के कुल खर्च में प्रमुख क्षेत्रों में अनुमानित रूप से आभूषण पर 15 फीसद, वस्त्र और साड़ियों पर 10 फीसद, कैटरिंग सेवाओं पर 10 फीसद, इवेंट मैनेजमेंट पर 10 फीसद, इलेक्ट्रानिक्स व इलेक्ट्रिकल्स उपकरण पर 5 फीसद, अन्य सेवाएं (डेकोरेशन, फ़ोटोग्राफी, यात्रा) पर करीब 20 फीसद इसके आलावा किराना, मिठाई, गिफ्ट आइटम पर 15 फीसद शामिल है। तुलनात्मक दृष्टकोण से देखें तो दूसरे देशों की तुलना में भारत में ग्लोबल इन्वेस्टमेंट फर्म जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में शादियों का बाजार 130 अरब डालर यानी 10.9 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। यह चीन से कुछ कम तो अमरीका के मुकाबले दोगुना है। ब्रोकरेज फर्म जेफरीज ने एक रिपोर्ट में कहा, ”भारतीय विवाह उद्योग अमेरिका (70 अरब अमेरिकी डॉलर) के उद्योग के आकार का लगभग दोगुना है। हालांकि, यह चीन (170 अरब अमेरिकी डॉलर) से छोटा है।”

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कैट के राष्ट्रीय महासचिव एवं सांसद प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि शादियों के मौसम में दिल्ली में 1.5 लाख करोड़ रुपए का कारोबार होने की संभावना है। नवंबर से शुरू होने वाले शादी के मौसम में देशभर में 48 लाख शादियां होने का अनुमान है। अकेले राष्ट्रीय राजधानी में ही करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होने की संभावना है। उनका कहना है कि खुदरा क्षेत्र को शादियों के मौसम में सबसे अधिक फायदा होने की उम्मीद है। इसमें भारतीय उत्पाद विदेशी वस्तुओं पर भारी पड़ सकते हैं। खंडेलवाल ने कहा कि कैट के अध्ययन से पता चला है कि उपभोक्ता भारतीय उत्पादों को अत्यधिक प्राथमिकता दे रहे हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और आत्मनिर्भर भारत के आह्वान की पुष्टि करता है।

खंडेलवाल ने कहा कि इस साल शादियों से संबंधित सोशल मीडिया सेवाओं पर बढ़ते खर्च का नया चलन देखने को मिल रहा है। नवंबर से शुरू होने वाले शादी के मौसम में देशभर में 48 लाख शादियां होने का अनुमान है। इससे 5.9 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होगा, जो पिछले साल के 4.25 लाख करोड़ रुपये से उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। दिल्ली में जिन प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वृद्धि होने की उम्मीद है उनमें कपड़ा, आभूषण, बैंक्वेट हॉल, होटल, कार्यक्रम प्रबंधन और खानपान सेवाएं शामिल हैं। भारतीय उत्पाद अब हर उत्सव की धड़कन बन चुके हैं। भारतीय शादी केवल सांस्कृतिक पर्व नहीं बल्कि व्यापार, रोजगार और उद्यमिता को आगे बढ़ाने वाला एक विशाल आर्थिक इंजन है. जब लाखों जोड़े सात फेरे लेते हैं, तो वे भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और आत्मनिर्भरता के सूत्रों को भी एक साथ जोड़ते हैं। उनका यह भी कहना है कि इस बार खरीदारी में प्रधानमंत्री के इस विजन का ‘वोकल फार लोकल’ का दबदबा ज्यादा है। छोटे व्यापारियों और कारीगरों को बड़ा लाभ मिल रहा है। इस मौसम में एक करोड़ से अधिक लोगों को अस्थायी और अंशकालिक रोजगार मिलने के साथ ही अनुमान यह भी है कि इस व्यापार से सरकार को 75,000 करोड़ का टैक्स राजस्व (जीएसटी सहित) प्राप्त होगा। इसके साथ ही भारतीय सामानों की हिस्सेदारी अब 70 फीसद से अधिक शादी-संबंधी खरीदारी ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों की हो रही है। इसमें परिधान, आभूषण, सजावट सामग्री, बर्तन, कैटरिंग आइटम और उपहार शामिल हैं। स्थानीय कारीगर, जौहरी (ज्वैलर्स), वस्त्र और हथकरघा (हैंडीक्राफ्ट) उद्योग, और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इस रुझान से सीधे तौर पर लाभान्वित हो रहे हैं। कैट का इसके उलट यह भी कहना है कि शादी उद्योग में रोजगार सृजित भारी संख्या में हुई है। इसमें सेवा प्रदाता डेकोरेटर, कैटरर, फ़ोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, ट्रांसपोर्टर, इवेंट प्लानर, म्यूजिकल ग्रुप और हास्पिटैलिटी (होटल-रेस्तरां) कर्मचारी सीधे तौर पर लाभान्वित होते हैं। वस्त्रों के छोटे निर्माता, कारीगर, स्थानीय फूल विक्रेता, लाइटिंग और साउंड प्रोवाइडर, तथा पैकेजिंग उद्योग भी इस मौसम से बड़ी मांग देखते हैं। रोजगार स्थानीय पर्यटन, होटल उद्योग और राज्यों की अर्थव्यवस्था को बल दे रहा है। डिजिटल निमंत्रण, सोशल मीडिया कवरेज, और एआई-आधारित वेडिंग प्लानिंग टूल्स में भी लगभग 25 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है, जो आधुनिकता के साथ पारंपरिक आयोजन का मिश्रण है।