आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस दौर मे सूचना–विश्वास के संघर्ष

Information-trust conflict in the age of artificial intelligence

विनोद कुमार सिंह

देश की राजधानी की हल्की सर्दियों में नेशनल मीडिया सेंटर में राष्ट्रीय प्रेस दिवस का आयोजन प्रेस परिषद (PCI) के विशेष आमंत्रित पत्रकारों की उपस्थिति में आयोजित हुआ। आमतौर पर मान्यता प्राप्त मीडिया कर्मियों का नेशनल मीडिया सेंटर आना-जाना होता रहता है, लेकिन आज का यह कार्यक्रम केवल औपचारिकता नहीं था, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा—प्रेस की स्वतंत्रता—का राष्ट्रीय उत्सव था। इस वर्ष का राष्ट्रीय प्रेस दिवस उस समय आया है जब विश्वभर में समाचारों की गति, सत्यता और विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। तेज़ी से बढ़ती तकनीक, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और सोशल मीडिया की अनियंत्रित सूचना-धारा ने सही और गलत के बीच की दूरी को अत्यंत धुंधला बना दिया है। ऐसे समय में प्रेस की भूमिका केवल सूचना देने तक सीमित नहीं, बल्कि एक जागरूक प्रहरी की है, जिसकी विश्वसनीयता और स्वतंत्रता ही उसकी शक्ति है।

इस वर्ष की थीम “बढ़ती गलत सूचना के दौर में प्रेस की विश्वसनीयता की रक्षा” थी। यह विषय वर्तमान समय की चुनौतियों को ठीक उसी तीव्रता से दर्शाता है जिनका सामना आज पत्रकारिता कर रही है। एआई-जनित कंटेंट, डीपफेक, एल्गोरिद्म-आधारित इको चैंबर्स और ट्रेंड-चालित खबरों ने मीडिया को एक नई नैतिक परीक्षा के सामने खड़ा कर दिया है। नेशनल मीडिया सेंटर का सभागार पत्रकारों, संपादकों, मीडिया छात्रों और संचार विशेषज्ञों की उपस्थिति से भरा हुआ था। मंच पर प्रेस परिषद की अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय जोशी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

कार्यक्रम की शुरुआत इस स्वीकारोक्ति के साथ हुई कि प्रेस लोकतंत्र की आँख और कान है। यह वह संस्था है जो सत्ता की गतिविधियों पर नजर रखती है, नागरिकों की आकांक्षाओं को स्वर देती है और समाज को जागरूक बनाती है। लेकिन तकनीक के विस्तार के साथ इस भूमिका पर अभूतपूर्व दबाव है, क्योंकि सूचना का संसार अब मनुष्यों से अधिक मशीनों द्वारा नियंत्रित होता जा रहा है। सबसे बड़ी चिंता यही है कि कहीं खबरों की सच्चाई मशीनों के कोड में खो न जाए और पत्रकार का नैतिक विवेक एल्गोरिद्म के आगे झुक न जाए।

अपने संबोधन में न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने स्पष्ट रूप से कहा कि चाहे एआई कितना भी विकसित क्यों न हो जाए, वह मानव मस्तिष्क, संवेदना और निर्णय क्षमता की जगह नहीं ले सकता। उन्होंने बताया कि प्रेस परिषद का दायित्व दोहरा है—प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा और पत्रकारिता की आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करना। उन्होंने यह भी कहा कि परिषद ने हाल के वर्षों में कई फैक्ट-फाइंडिंग टीमें गठित की हैं जो गलत प्रवृत्तियों, दुष्प्रचार, दुरुपयोग और पत्रकारों पर दबाव जैसी स्थितियों की जांच करती हैं। उन्होंने पत्रकारों की वित्तीय सुरक्षा पर भी गंभीर चिंता प्रकट की और कहा कि यदि पत्रकार आर्थिक असुरक्षा से जूझेगा तो उसकी स्वतंत्रता और मनोबल प्रभावित होंगे।

सभा तब और गंभीर हो गई जब PTI के सीईओ विजय जोशी ने अपना विचार रखा। उन्होंने कहा कि आज समाज “इन्फोडेमिक” नामक दौर से गुजर रहा है, जहां अत्यधिक सूचनाओं के बीच सत्य को पहचानना कठिन होता जा रहा है। उन्होंने यह टिप्पणी की कि पारंपरिक मीडिया को गति से अधिक सटीकता को महत्व देना चाहिए और डिजिटल मीडिया को एल्गोरिद्म-आधारित लोकप्रियता के बजाय विश्वसनीयता पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने पीत पत्रकारिता, पेड न्यूज़ और एजेंडा-चालित रिपोर्टिंग को जनता के विश्वास को कमजोर करने वाली प्रवृत्तियाँ बताया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की भूमिका किसी पक्ष का प्रचारक बनना नहीं, बल्कि लोकतंत्र का प्रहरी बनना है। उन्होंने नए पत्रकारों को यह संदेश दिया कि भविष्य में वही टिक पाएगा जिसमें नैतिकता और आलोचनात्मक सोच दोनों हों, क्योंकि सत्य की रक्षा मानव विवेक ही कर सकता है, मशीन नहीं।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव कार्यक्रम में उपस्थित रहे। हालांकि उन्होंने मंच से संबोधन नहीं किया, लेकिन लंच के दौरान मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि बदलते मीडिया परिवेश को देखते हुए सरकार पारदर्शी और तकनीक-आधारित प्रक्रियाओं को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने प्रेस सेवा पोर्टल और PRP एक्ट 2023 का उल्लेख करते हुए बताया कि अब पंजीकरण और प्रशासनिक प्रक्रियाएँ पहले से कहीं अधिक सरल और डिजिटल हो चुकी हैं।

कार्यक्रम के अंत में प्रेस परिषद के इतिहास और उसकी भूमिका पर भी चर्चा हुई। बताया गया कि प्रेस परिषद की स्थापना 1966 में संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी ताकि प्रिंट मीडिया के लिए एक स्व-नियमन तंत्र विकसित किया जा सके, जो पत्रकारिता को सुदृढ़ भी करे और अनुशासित भी। 1979 में इसके पुनर्गठन के बाद से यह संस्था पत्रकारिता की स्वतंत्रता और गुणवत्ता की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

कार्यक्रम का समापन किसी औपचारिक घोषणा जैसा नहीं, बल्कि एक सामूहिक संकल्प के रूप में हुआ। यह संकल्प था कि पत्रकारिता को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए केवल तकनीकी कौशल ही नहीं, बल्कि नैतिक दृढ़ता, मानव संवेदना और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता की भी आवश्यकता है। एआई के इस युग में जहां सूचना एक क्लिक में उपलब्ध है, वहीं गलत सूचना भी उतनी ही तेजी से फैलती है। ऐसे में पत्रकार की भूमिका सिर्फ़ खबर लिखने तक सीमित नहीं, बल्कि सत्य की रक्षा, समाज का मार्गदर्शन और लोकतंत्र की आत्मा की सुरक्षा करना भी है।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2025 पत्रकारिता के लिए एक चेतावनी भी था और प्रेरणा भी—चेतावनी इस बात की कि यदि पत्रकारिता ने अपना चरित्र खो दिया तो भ्रमित सूचना लोकतंत्र को भीतर से कमजोर कर देगी; और प्रेरणा इस बात की कि सत्य की लौ जलाए रखने वाले पत्रकार आगे भी लोकतंत्र की रक्षा करते रहेंगे। यह संदेश स्पष्ट रहा कि चाहे एआई कितना भी उन्नत क्यों न हो जाए, लोकतंत्र को टिकाए रखने की क्षमता मानव विवेक और नैतिक पत्रकारिता के पास ही रहेगी।