- भारत में प्रदूषण से हर साल हो रही लाखों बच्चों की मौत चिंंताजनक, सरकारों को उठाने होंगे जरूरी कदम
अमरपाल सिंह वर्मा
वायु प्रदूषण के संबंध में हाल में आई एक रिपोर्ट डरा देने वाली है। यूनिसेफ के साथ संयुक्त रूप से बनाई गई अमरीकी संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एईआई) की स्टेट ऑफ द ग्लोबल एयर-2024 रिपोर्ट न केवल वायु प्रदूषण के निरंतर बढ़ते खतरों के प्रति आगाह कर रही है, बल्कि इससे बचने के उपाय करने पर जोर दे रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2021 में 5 साल से कम उम्र के करीब 1.6 लाख बच्चों को वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण जान गंवानी पड़ी है।
हमारे आसपास विशाल कारखानों, छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों, वाहनों, ईन्ट भट्टों आदि के कारण वायु प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा है। कोई गांव और शहर इससे अछूता नहीं रहा है। ज्यादातर लोग तो वायु प्रदूषण के खतरों से अनजान हैं लेकिन जो इस बारे में जानते हैं और इसके दुष्परिणामों को महसूस करते हैं, वे भी आम तौर पर इन्हें अनदेखा कर देते हैं। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को हम महसूस करते हैं लेकिन मासूम बच्चे तो समझ ही नहीं पाते कि आखिर हो क्या रहा है। ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो पहले बीमार होते हैं और फिर अल्पायु में ही मौत के मुंह में चले जाते हैं।
बच्चों को समय से पहले जन्म, कम वजन, अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियां यह प्रदूषण संबंधी स्वास्थ्य प्रभावों के असर के कारण ही बढ़ रही हैं। हमारे देश में वायु प्रदूषण किस प्रकार बढ़ता जा रहा है, इसका पता इस रिपोर्ट से लगता है। इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 10 वायु प्रदूषित देशों में भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। देश के 83 शहरों की हवा वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एयर क्वालिटी गाइडलाइन के हिसाब से खराब है।
रिपोर्ट के अनुसार विश्व में वर्ष 2021 में वायु प्रदूषण के कारण 80 लाख से ज्यादा लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा है, इनमे भारत में 21 लाख और चीन में 23 लाख लोगों की मौत शामिल है। यह बेहद चिंता का विषय है कि बढ़ता प्रदूषण बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। वर्ष 2021 में वायु प्रदूषण के शिकार सबसे ज्यादा भारतीय बच्चे हुए हैं। वर्ष 2021 में प्रदूषण के कारण भारत में 169,400 बच्चे मौत के मुंह मेंं समा गए हैं। इसके मुकाबले नाइजीरिया में 114,100, पाकिस्तान में 68100, इथियोपिया में 31,100 और बांग्लादेश में 19,100 बच्चों को बढ़ते प्रदूषण की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी है। वर्ष 2021 में प्रदूषित हवा के कारण दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के 7 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। यह आंकड़ा परेशान कर देने वाला है कि 2021 में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 5 साल से कम उम्र के 2,60,600 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी, जो कुपोषण के बाद दक्षिण एशिया में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। यह रिपोर्ट बताती है कि बच्चों पर वायु प्रदूषण का सर्वाधिक असर दिखाई दे रहा है। वायु प्रदूषण से जो बीमारियां होती हैं, उनके प्रति बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं। बच्चों को मां के गर्भ मेंं ही वायु प्रदूषण से होने वाला नुकसान झेलना पड़ सकता है और उन्हें इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव जीवन भर झेलना पड़ सकता है। इससे बच्चों को समय से पहले जन्म लेना पड़ सकता है, उनका वजन घट सकता है, उन्हें दमा और फेफड़ों की बीमारियां होने का अंदेशा है। दुनिया भर में नवजात शिशुओं की मृत्यु का 20 प्रतिशत वायु प्रदूषण के कारण होता है, जिनमें से अधिकांश मामले कम वजन और समय से पहले जन्म की जटिलताओं से संबंधित होते हैं।
प्रदूषित हवा की वजह से लाखों लोगों को सांस लेने में तकलीफ देने वाली बीमारियां झेलनी पड़ रही हैं। इन बीमारियों के इलाज पर अत्यधिक महंगा है, जिससे अस्पतालों, अर्थव्यवस्था और पूरे समाज पर बोझ पड़ता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चे प्रदूषित हवा के सर्वाधिक शिकार होते हैं।
हमारे देश में बच्चों में फेफड़ों के संक्रमण की बीमारी यानी निमोनिया आम बात है लेकिन कितने लोग इसके लिए अपने आसपास हो रहे वायु प्रदूषण को जिम्मेदार मानते हैं? ज्यादातर लोगों का वायु प्रदूषण की ओर ध्यान ही नहीं जा पाता है। विश्व में हर पांच में से एक बच्चे की मौत निमोनिया के कारण होती है। प्रदूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों के फेफड़ों की क्षमता 20 प्रतिशत तक कम हो सकती है। यह प्रभाव सेकेंड हैंड सिगरेट के धुएं वाले घर में बड़े होने के प्रभाव के समान है। वायु प्रदूषण निमोनिया से जुड़ा है, जो विश्व स्तर पर बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा संक्रामक कारण है।प्रदूषित हवा बड़े बच्चों में दमा का भी कारण बनती है, जो सांस संबंधी सबसे आम बीमारी है।
यूनिसेफ के अनुसार वायु प्रदूषण गरीबी में रहने वाले बच्चों को असमान रूप से नुकसान पहुंचाता है, तथा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिकांश बीमारियों और असामयिक मौतों के लिए जिम्मेदार होता है। गरीबी के कारण लोग खाना पकाने के लिए प्रदूषणकारी ईंधन और उपकरणों का उपयोग करने को मजबूर हैं, जो घर के अंदर वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत बना हुआ है। बिजली संयंत्र, कारखाने और व्यस्त सडक़ें आदि जैसे बाहरी वायु प्रदूषण के सबसे खराब स्रोत अक्सर गरीब समुदायों के नजदीक स्थित होते हैं। वायु प्रदूषण के कारण निम्न-गुणवत्ता वाले आवासों और अस्थायी बस्तियों मेंं रहने वाले लोग भी प्रभावित होते हैं।
बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण के कारण हमारे बच्चे दिमागी तौर पर कमजोर हो रहे हैं। प्रदूषण के कारण उनकी बौद्धिक एवं ध्यान लगाने की क्षमता पर प्रतिकू प्रभाव पड़ रहा है। गर्भावस्था और बचपन के शुरूआती वर्षों के दौरान दूषित हवा में सांस लेने से मस्तिष्क के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
बड़ा सवाल यह है कि हम अपने बच्चों को वायु प्रदूषण से कैसे बचा सकते हैं? यूनिसेफ ने इस बारे में कई सुझाव दिए है। यूनिसेफ के सुझावों के अनुसार वायु प्रदूषण का स्तर अधिक होने पर बच्चों को घर के अंदर ही रखना चाहिए। यदि उन्हें बाहर जाना ही पड़े, तो उन्हें फिल्टर करने वाले और अच्छी तरह से फिट किए गए मास्क से सुरक्षित होना चाहिए। यदि संभव हो तो घर में खिडक़ी और एयर फिल्टर लगाएं। जहां तक संभव हो, खाना पकाने, घर को गर्म करने और रोशनी के लिए स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करें। बच्चों को विटामिन सी, ई और ओमेगा-3 एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर भोजन और पेय पदार्थ उपलब्ध कराएं।
यूनिसेफ के यह सुझाव अपनी जगह सही हैं लेकिन भारत में करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है, उन लोगों के लिए बच्चों के लिए मास्क, खिडक़ी पर एयर फिल्टर का इंतजाम, खाना पकाने, घर को गर्म करने और रोशनी के लिए स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करना किसी स्वप्न की तरह है।
वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारों, आम लोगों और औद्योगिक संस्थानों को मिलकर करना होगा। इसमें भी सरकारों की बड़ी जिम्मेदारी है। सरकारें जब तक वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों का पता लगाने, उनकी रोकथाम और उपचार में स्वास्थ्य क्षेत्र की क्षमता का निर्माण नहीं करेंगी, तब तक प्रदूषण से मौतें इसी प्रकार होती रहेंगी। इसी प्रकार वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियां स्थापित करना और उनका रखरखाव करना तथा जनता को इस बारे में जागरूक करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे।
यूनिसेफ जैसे संगठनों के सुझाव के अनुसार सरकार को महत्वाकांक्षी जलवायु और पर्यावरण नीतियां और लक्ष्य निर्धारित करन, परिवहन के स्वच्छतर साधनों को अपनाने के लिए किफायती, स्वच्छ ईंधन विकल्प प्रदान करने और स्वच्छ, कुशल ऊर्जा और परिवहन में परिवर्तन को तेज करने के लिए नीतियों और निवेशों को मजबूत करने, और उन्नत उत्सर्जन मानकों को लागू करने जैसे कदम उठाने होंगे। इसके साथ-साथ जहां अधिकाधिक पेड़ लगाकर प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे, वहीं वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार औद्योगिक इकाइयों पर शिकंजा कसना होगा। इसके अभाव मेंं वायु प्रदूषण बढ़ता ही जाएगा और हमारे बच्चे इसके दुष्परिणाम झेलते को मजबूर रहेंगे।
(लेखक राजस्थान के वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)