आजादी के मतवालों के प्रेरक एवं रोचक प्रसंग

Inspiring and interesting stories of freedom fighters

श्वेता गोयल

भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए देश की आजादी की लड़ाई में हजारों देशभक्तों का योगदान अविस्मरणीय है। ऐसे ही कुछ प्रमुख देशभक्तों से जुड़े कुछ रोचक तथा प्रेरक प्रसंगों को स्वतंत्रता दिवस के विशेष अवसर पर स्मरण करना प्रासंगिक होगा।

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस युवावस्था में जब कॉलेज जाया करते थे, उन दिनों उनके घर के ही सामने एक वृद्ध भिखारिन रहती थी। फटे-पुराने चिथड़ों में भीख मांगते देख सुभाष का हृदय रोजाना यह सोचकर दहल उठता कि कैसे यह बुढ़िया सर्दी हो या बरसात अथवा तूफान या कड़कती धूप, खुले में बैठकर भीख मांगती है और फिर भी उसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। यह सब देखकर उनका हृदय ग्लानि से भर उठता। घर से उनका कॉलेज करीब तीन किलोमीटर दूर था। आखिकार प्रतिदिन बस किराये और जेब खर्च के लिए उन्हें जो भी पैसे मिलते, उन्होंने वो बचाने शुरू कर दिए और पैदल ही कॉलेज जाना शुरू कर दिया। इस प्रकार प्रतिदिन अपनी बचत के पैसे उन्होंने जीवनयापन के लिए उस बूढ़ी भिखारिन को देने शुरू कर दिए।
  • 1942 में जब ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ शिखर पर था, उस दौरान क्रांतिकारी हेमू कलानी को पता चला कि आन्दोलनकारियों का दमन करने के लिए अंग्रेज सैनिकों से भरी एक विशेष रेलगाड़ी सक्खर से गुजरने वाली है। हेमू और उसके एक-दो साथियों ने उस विशेष रेलगाड़ी को ही उड़ाने का निश्चय किया और वे सक्खर से कुछ दूर पटरियां उखाड़ने पहुंच गए। वे एक-दो फिश प्लेटें ही उखाड़ पाए थे कि पुलिस आ पहुंची और पुलिस वालों ने उन्हें वहीं धर दबोचा। हेमू कलानी ने अपने मित्रों को वहां से किसी तरह भगा दिया और स्वयं गिरफ्तार हो गए। गिरफ्तारी के बाद हेमू से उसके मित्रों के नाम उगलवाने हेतु उसे खूब यंत्रणाएं दी गई किन्तु वीर हेमू कलानी ने अपनी जुबान नहीं खोली और सारा अपराध अपने सिर ले लिया।
  • सुभाष चंद्र बोस आई. सी. एस. की परीक्षा देने लंदन गए। साक्षात्कार के दौरान एक सदस्य ने एक अंगूठी दिखाते हुए उनसे पूछा, ‘‘मि. सुभाष, क्या आप इस अंगूठी में से निकल सकते हैं?’’
    ‘‘यस सर!’’ सुभाष चंद्र बोस ने तुरन्त उत्तर दिया। फिर कागज के एक टुकड़े पर उन्होंने अपना नाम लिखा और उसे अंगूठी में से निकाल दिया। फिर यह प्रश्न पूछने वाले सदस्य की ओर मुस्कराकर देखते हुए कहा, ‘‘देखिये, सुभाष अंगूठी में से निकल गया।’’
  • भारत और सोवियत संघ की संयुक्त सहायता से अंकलेश्वर में तेल के कुएं खोदे गए। उनमें से तेल निकला तो नेहरू जी काफी प्रसन्न हुए और वे कुएं देखने गए तथा उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने लगे।
    अचानक तेल के कुछ छींटे नेहरू जी के कपड़ों पर आ गिरे, जिससे वहां उपस्थित सभी अधिकारी व अन्य व्यक्ति काफी परेशानी में पड़ गए। उन्होंने नेहरू जी से कपड़े बदलने का अनुरोध किया। इस पर नेहरू जी पहले मुस्कराये और फिर गर्व से बोले, ‘‘वाह! इन छींटों को क्यों छिपाऊं? मैं इन्हीं कपड़ों में संसद में जाऊंगा और सभी को शान से दिखाऊंगा हमारे देश में निकले मिट्टी के तेल के धब्बे।’’
    (लेखिका डेढ़ दशक से शिक्षण क्षेत्र से जुड़ी हैं)