डॉ रघुवीर चारण
आज विश्व तकनीकी युग में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत तेजी से अग्रसर है प्रत्येक राष्ट्र अपने बुनियादी ढांचे में सुधार में लगे हुए हैं देश की तरक्की स्वस्थ समाज के विकास पर ही निर्भर होती है ऐसे में ज़रुरत है राष्ट्र को स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगतिशील बनाने की।
देश आज़ादी के अमृत महोत्सव की 76वीं वर्षगांठ मना रहा है पिछले सात दशकों में देश ने कई महामारियों का सामना किया जिसमें टीबी, हैजा,चेचक, स्पेनिश फ्लू, पोलियो, कोरोना प्रमुख है इन व्याधियों की त्रासदी के बावज़ूद हमारे स्वास्थ्य ढाँचे में में बदलाव नहीं हुआ अब जरूरत है स्वास्थ्य सेवाओं को समृद्ध बनाने की इसलिए एकीकृत चिकित्सा प्रणाली और स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण बेहद आवश्यक है।
वर्तमान में हमारे देश में स्वास्थ्य देखभाल के लिए त्रिस्तरीय स्वास्थ्य प्रणाली प्रचलित है इसमें प्राथमिक स्तर में क्रमश उपस्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र , सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आते हैं माध्यमिक स्तर पर जिला/उपजिला अस्पताल शामिल है जबकि तृतीयक स्तर में राज्य स्तर के चिकित्सा संस्थान एवं मेडिकल कॉलेज स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं हमारे स्वास्थ्य की नींव प्राथमिक स्तर है जो देश की अधिकतर ग्रामीण आबादी को कवर करता है जो आज भी मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है वर्ष 1983 में देश की पहली राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनाई जिसका मुख्य लक्ष्य 2000 तक सभी को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना था फिर इसमें कुछ बदलाव कर 2002 में दूसरी व 2017 में विभिन्न लक्ष्यों के साथ तीसरी स्वास्थ्य नीति लागू हुई जिसका उदेश्य स्वास्थ्य प्रणाली के सभी आयामों स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश, स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं के व्यवस्थापन और वित्त पोषण, रोगों की रोकथाम, प्रौद्योगिकियों तक पहुँच, मानव संसाधन विकास, विभिन्न चिकित्सीय प्रणाली को प्रोत्साहन देना तथा स्वास्थ्य सेवा पर खर्च कुल सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाना था । स्वास्थ्य नीति क्रियान्वन के बीते चार दशकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य में कोई खास परिवर्तन नहीं हुए उल्टा ग्रामीण स्वास्थ्य व शहरी स्वास्थ्य में खाई उपजती जा रही है आज भी देश की कुल जीडीपी का स्वास्थ्य पर व्यय बहुत कम है जोकि चिंता का विषय है बढ़ती जनसंख्या स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार की धीमी गति देश के आर्थिक विकास में रुकावट डाल रही हैं ।
देश में जन स्वास्थ्य में एकरूपता की कमी में प्रमुख कारण भारतीय संवेधानिक व्यवस्था भी है संविधान के अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है विभिन्न राज्यों की लचर स्वास्थ्य प्रणाली व केन्द्र सरकार और राज्यों में सही तालमेल ना होने तथा केंद्रीय योजनाओं को धरातल पर लागू ना करने के कारण देश के कई राज्य बीमारू श्रेणी में आते हैं वर्ष 2023 में भारत जी – 20 की अध्यक्षता कर रहा हैं जहाँ दुनिया के प्रमुख देशों की नज़र भारत पर है ऐसे में जरूरत है सार्वजनिक स्वास्थ्य के विषय को समवर्ती सूची में शामिल कर स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण करें साथ ही ब्रिटिश साम्राज्य में उपजे स्वास्थ्य ढाँचे को दुरस्त कर एकीकृत चिकित्सा प्रणाली लागू करें।
एकीकृत चिकित्सा प्रणाली अर्थात् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (एलोपैथी) के साथ हमारी पारंपरिक चिकित्सा विधाओं जैसे आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा को शामिल करना आज़ादी के बाद हमारे ऋषि मुनियों के परिपूर्ण ज्ञान से समृद्ध आयुर्वेद चिकित्सा की अवनति होती रही और देश में इसे मुख्य धारा में लाने की बजाए वैकल्पिक चिकित्सा का दर्जा दिया आज भी आयुर्वेद विभाग आधारभूत संरचना, अनुसंधान, नगण्य सरकारी बजट से उपेक्षा का शिकार है अब इन्हें आधुनिक चिकित्सा के समकक्ष लाने के लिए एकीकृत करना पड़ेगा जिस रोग में जो प्रभावी औषध है उसके अनुरूप चिकित्सा पद्धति का प्रयोग करना चाहिए जब तक क्रॉस रेफरल की सुविधा नहीं मिलेगी तब तक आयुष पद्धतियों की उन्नति नहीं हो सकती इसलिए एकीकृत चिकित्सा और “एक राष्ट्र एक स्वास्थ्य प्रणाली” भविष्य की संभावना नहीं बल्कि वर्तमान की आवश्यकता है।
बीते सालों में कोरोना महामारी से पूरी दुनिया की स्वास्थ्य कमियाँ उजागर हुई उसी समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने “वन वर्ल्ड वन हेल्थ”की अवधारणा दी क्योंकि मानव स्वास्थ्य परस्पर पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य से अंतर्संबंधित है पिछले कुछ सालों में जूनोटिक बीमारियों (जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाले रोग) का प्रकोप बढ़ा हैं वैज्ञानिकों के मुताबिक वन्यजीवों में लगभग पंद्रह लाख वायरस है इनमे से ज्यादातर के जूनोटिक होने की संभावना है मनुष्य को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों में 65% से ज्यादा रोगों की उत्पति का मुख्य स्त्रोत जानवर है 19 वीं सदी से अब तक मानव जाति को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग प्लेग, इबोला, निपाह, कोरोना वायरस का स्त्रोत जानवर ही है इसलिए बेहतर मानव कल्याण के लिए हमें पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य के एकीकृत दृष्टिकोण के साथ स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूती प्रदान करनी होगी।
वर्तमान समय में खराब जीवनशैली से विभिन्न प्रकार के गैर- संचारी, दीर्घकालिक संचारी और संक्रमित रोग उत्पन्न हो रहे हैं इनसे निपटने के लिए इंटीग्रेटेड मेडिसिन पर विचार करने का ये सही वक्त है एकीकृत चिकित्सा भारतीय जन स्वास्थ्य के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है यदि इसका बेहतर प्रबंधन किया जाए भारत को भी चीन, जापान, जर्मनी की तरह एकीकृत चिकित्सा मॉडल को अपनाना चाहिए जहाँ एलोपैथी के साथ पारंपरिक चिकित्सा का आपसी समायोजन कर सुगम स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जा रही है।
हालही में आयुष मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ( आईसीएमआर ) के बीच एकीकृत स्वास्थ्य अनुसंधान को बढ़ावा देने और सहयोग करने के लिए एक समझौता हुआ तथा एकीकृत चिकित्सा केंद्र का भी उद्घाटन किया गया जिसका उदेश्य राष्ट्रीय महत्व के चिन्हित क्षेत्रों / रोग स्थितियों पर संयुक्त रूप से उच्च गुणवत्तापूर्ण नैदानिक परीक्षण का संचालन करने की संभावनाओं की खोज करना एकीकृत चिकित्सा स्वास्थ्य की वैश्विक परिभाषा पर खरी उतरती है एकीकृत चिकित्सा से दीर्घ कालिक व्याधियों को ठीक किया जा सकता है ।
आधुनिक चिकित्सा की बढ़ती लोकप्रियता चिकित्सा के उपचारात्मक सिद्धांत पर कार्यशील है जबकि हमें प्रिवेंटिव (बचाव) सिद्धांत पर जोर देना चाहिए स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य रक्षण के लिए पारंपरिक चिकित्सा को मुख्य धारा में लाना होगा योग एवं आयुर्वेद की मदद से समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राप्ति हो सकती है मानव स्वास्थ्य सूचकांक तथा मातृ और शिशु मृत्यु दर पर WHO की ताजा रिपोर्ट हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य की दयनीय स्थिति को दर्शाती है आख़िर समाधान यही है देश के जन स्वास्थ्य का आधार स्तम्भ प्राथमिक स्तर को सम्पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करवाना डॉक्टरों और मरीजो के अनुपात को कम करना स्वास्थ्य से संबधित जागरूकता अभियान चलाकर संक्रमण में कमी लाना तथा घातक बीमारियों पर आपसी अनुसंधान को बढ़ावा देकर औषधियों की प्रभाविकता का सही आकलन करना प्रत्येक जिला स्तर पर उच्च चिकित्सा संस्थानों को बढ़ावा देना व मेडिकल शिक्षा में सैद्धांतिक ज्ञान के साथ प्रायोगिक ज्ञान को बढ़ावा देना होगा । चिकित्सा का मूल प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगी व्यक्ति के रोग का निवारण करना है नाकि विभिन्न पैथियों में आपसी प्रतिस्पर्धा बढाना है इसलिए एकीकृत चिकित्सा भविष्य की स्वास्थ्य चुनोतियों से निपटने के लिए बेहतर विकल्प है।