चुनाव आयोग पर हमलावर राहुल पर भड़के बुद्धिजीवियों की नसीहत

Intellectuals lash out at Rahul Gandhi for attacking the Election Commission

स्वदेश कुमार

देश के राजनीतिक माहौल में एक बार फिर सियासी तापमान बढ़ गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा हाल ही में चुनाव आयोग को लेकर दिए गए बयान ने नई विवाद की लपटें उठा दी हैं। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को “चोर” कहकर संबोधित किया था, जिसके बाद देश की लगभग 250 जानी-मानी हस्तियों ने उनके इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है। इन हस्तियों में करीब सवा सौ पूर्व नौकरशाह, कुछ पूर्व जज, पूर्व सैन्य अफसर, शिक्षाविद, कलाकार और वरिष्ठ वकील शामिल हैं। इन सभी ने संयुक्त रूप से एक पत्र जारी कर राहुल गांधी के बयान को ‘लोकतांत्रिक संस्थाओं पर असंवैधानिक हमला’ करार दिया है। उनका कहना है कि देश की संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखना हर नागरिक का दायित्व है, चाहे वह आम आदमी हो या किसी बड़े राजनीतिक दल का शीर्ष नेता। पत्र में यह भी कहा गया है कि राहुल गांधी जैसे स्थापित नेता जब सार्वजनिक मंचों से इन संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, तो इससे देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचता है और जनता के विश्वास को ठेस लगती है।

पूर्व नौकरशाहों और बुद्धिजीवियों के समूह ने यह भी कहा है कि विपक्ष का काम सवाल करना जरूर है, लेकिन वह आलोचना सभ्य संवाद की सीमा में रहकर होनी चाहिए। पत्र में लिखा गया है कि राहुल गांधी का यह बयान न केवल चुनाव आयोग की साख को धूमिल करता है, बल्कि यह चुनाव प्रक्रिया में अविश्वास का माहौल भी पैदा करता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक है। कांग्रेस नेता ने हाल ही में एक जनसभा के दौरान चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि आयोग सत्तारूढ़ दल के इशारों पर काम कर रहा है। उन्होंने अपने भाषण में आरोप लगाया कि आयोग का व्यवहार निष्पक्षता की सीमाओं से बाहर जा चुका है और विपक्षी दलों को बराबरी का मौका नहीं मिल रहा। राहुल गांधी के इस बयान के बाद राजनीति के गलियारों में हड़कंप मच गया। सत्तापक्ष के नेताओं ने इसे लोकतंत्र की मूल संस्थाओं का अपमान बताया। वहीं विपक्ष ने राहुल के बचाव में कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है और संस्थाओं की जवाबदेही पर सवाल उठाना नागरिक अधिकार है।

हालांकि, जिन बुद्धिजीवियों ने यह विरोध पत्र लिखा है, उनका मानना है कि राहुल गांधी की टिप्पणी ‘लोकतंत्र के बुनियादी आदर्शों के विपरीत’ है। उनके मुताबिक, लोकतंत्र में संस्थाएं किसी राजनीतिक लाभ या हानि से ऊपर होती हैं और उन पर इस प्रकार के आरोप लगाना जनता को भ्रमित करता है। एक पूर्व कैबिनेट सचिव ने कहा कि ऐसी भाषा का इस्तेमाल राजनीतिक विमर्श में नहीं होना चाहिए, खासकर तब जब चुनाव निकट हों। इन हस्तियों में से कई ने पहले भी संवैधानिक संस्थाओं के सम्मान की वकालत की है। कुछ पूर्व जजों का कहना है कि चुनाव आयोग ने अब तक देश में कई कठिन परिस्थितियों में भी निष्पक्ष चुनाव कराए हैं, और इस संस्था पर सवाल उठाना बिना ठोस सबूत लोकतंत्र को कमजोर करने के बराबर है। वहीं, कुछ पूर्व राजनयिकों का मानना है कि जब सार्वजनिक जीवन के बड़े नेता ऐसी टिप्पणियां करते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की लोकतांत्रिक छवि को भी क्षति पहुंचती है।

इन हस्तियों ने अपने पत्र में कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए “संविधान बचाओ, संस्थाएं बचाओ” (एसआईआर) अभियान पर भी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह अभियान एक तरह से संवैधानिक संस्थाओं की कार्यशैली पर सामूहिक अविश्वास जताने जैसा है। उन्होंने कहा कि अगर किसी संस्था से असहमति है तो उसके खिलाफ सबूतों के साथ कानूनी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, न कि सार्वजनिक मंचों से संस्थाओं को ‘जनता का दुश्मन’ बताने का अभियान चलाया जाए। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि आज जब भारत विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब नेताओं को जनता में भरोसा और एकता का संदेश देना चाहिए, न कि उन्हें संस्थाओं के खिलाफ भड़काना चाहिए। समूह ने यह अपील की है कि सभी राजनीतिक दल चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं का सम्मान करें और उन्हें राजनीतिक विवादों से दूर रखें, ताकि लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हो सकें।

दूसरी ओर, कांग्रेस ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस कभी संस्थाओं के खिलाफ नहीं रही है, बल्कि उसने हमेशा उनकी जवाबदेही की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी का बयान सत्ता पक्ष द्वारा चुनाव आयोग को अपने हित में उपयोग करने के संकेतों पर आधारित था, जो लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरनाक है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जब संस्थाएं सरकार के दबाव में काम करती दिखती हैं, तो जनता का विश्वास पुनः स्थापित करने के लिए प्रश्न पूछना भी लोकतांत्रिक कर्तव्य है। इस पूरे विवाद ने राजनीतिक गलियारों में एक बड़ा विमर्श खड़ा कर दिया है क्या संवैधानिक संस्थाओं की आलोचना लोकतंत्र की सेहत के लिए आवश्यक है या यह उसकी जड़ों को कमजोर करती है? कई विशेषज्ञ इसे ‘दो धार वाली तलवार’ मानते हैं। उनके अनुसार, लोकतंत्र में संस्थाओं की जवाबदेही पर सवाल उठाना जरुरी है, लेकिन उसे व्यक्तिगत या अपमानजनक शब्दों में रूपांतरित करना अनुचित है।

पत्र जारी करने वाले समूह ने अंत में यह अपील भी की है कि सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यक्तियों को शब्दों की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। जब देश के नेता या बड़े राजनीतिक चेहरे खुले मंच से संज्ञात्मक हमले करते हैं, तो समाज में नकारात्मकता फैलती है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र भाषणों से नहीं, बल्कि संस्थाओं के प्रति विश्वास और सम्मान से मजबूत होता है। अब यह विवाद किस दिशा में बढ़ेगा, यह आने वाले समय में ही तय होगा। लेकिन यह साफ है कि राहुल गांधी के बयान ने राजनीतिक विमर्श को नई दिशा दे दी है जहां एक तरफ संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और गरिमा पर बहस तेज है, वहीं दूसरी ओर सत्तापक्ष और विपक्ष अपने-अपने दृष्टिकोण से लोकतंत्र की रक्षा की बात कर रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने यह जरूर दिखा दिया है कि भारत के लोकतंत्र में बहस और मतभेद की परंपरा जिंदा है, लेकिन उसे संयम और जिम्मेदारी के दायरे में रखना ही समाज के हित में है।