मनुमुक्त के पिता डॉ. रामनिवास ‘मानव’ भरे मन से बताते हैं कि अधिकारियों की आपराधिक लापरवाही और मनुमुक्त की मृत्यु के षड्यंत्र में शामिल उनके बैचमेट अफसरों की संलिप्तता के दस्तावेजी सबूतों के बावजूद, उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई, बल्कि तेलंगाना पुलिस और सीबीआई ने इसे सामान्य घटना बताकर मामले को रफा-दफा कर दिया। तेलंगाना पुलिस और सीबीआई का पूरा प्रयास दोषियों को बचाने का था, दोषियों को सजा दिलाने का नहीं। यही नहीं, मनुमुक्त को ट्रेनी बताकर सभी सरकारों ने पल्ला झाड़ लिया, किसी ने एक रुपये की भी आर्थिक सहायता परिवार को प्रदान नहीं की।
प्रियंका सौरभ
नियति का यह कैसा दुखद विधान है कि विशिष्ट प्रतिभाओं को यहाँ अत्यल्प जीवन ही मिलता है। आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, श्रीनिवास रामानुजन, भारतेंदु हरिश्चंद्र और रांगेय राघव तक, एक लंबी सूची है ऐसे महापुरुषों की, जो अपनी चमक बिखेरकर अल्पायु में ही इस दुनिया से विदा हो गए। भारतीय पुलिस सेवा के युवा अधिकारी मनुमुक्त ‘मानव’ भी एक ऐसे ही प्रतिभा-पुंज थे, जिन्हें काल ने असमय ही अपना ग्रास बना लिया।
28 अगस्त, 2014 को बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अत्यंत होनहार और प्रभावशाली पुलिस अधिकारी मनुमुक्त की 30 वर्ष, 9 माह की अल्पायु में नेशनल पुलिस अकेडमी, हैदराबाद (तेलंगाना) के स्विमिंग पूल में डूबने से, संदिग्ध परिस्थितियों में, मृत्यु हो गई थी। स्विमिंग पूल के पास ही स्थित ऑफिसर्स क्लब में चल रही विदाई पार्टी के बाद, आधी रात को जब मनुमुक्त का शव स्विमिंग पूल में मिला, तो अकेडमी में ही नहीं, पूरे देश में हड़कंप मच गया, क्योंकि यह अकेडमी के 66 वर्ष के इतिहास में घटित होने वाली पहली इतनी बड़ी दुर्घटना थी। यहीं यह बताना भी आवश्यक है कि इतनी मर्मांतक और दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी के बाद भी इस मामले की न तो ठीक-से जांच हुई और न ही किसी अधिकारी या कर्मचारी की जिम्मेदारी तय कर, उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की गई। मनुमुक्त के पिता डॉ. रामनिवास ‘मानव’ भरे मन से बताते हैं कि अधिकारियों की आपराधिक लापरवाही और मनुमुक्त की मृत्यु के षड्यंत्र में शामिल उनके बैचमेट अफसरों की संलिप्तता के दस्तावेजी सबूतों के बावजूद, उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई, बल्कि तेलंगाना पुलिस और सीबीआई ने इसे सामान्य घटना बताकर मामले को रफा-दफा कर दिया। तेलंगाना पुलिस और सीबीआई का पूरा प्रयास दोषियों को बचाने का था, दोषियों को सजा दिलाने का नहीं। यही नहीं, मनुमुक्त को ट्रेनी बताकर सभी सरकारों ने पल्ला झाड़ लिया, किसी ने एक रुपये की भी आर्थिक सहायता परिवार को प्रदान नहीं की।
उल्लेखनीय है कि मनुमुक्त 2012 बैच और हिमाचल प्रदेश काडर के परम मेधावी और ऊर्जावान पुलिस अधिकारी थे। 23 नवंबर, 1983 को हिसार (हरियाणा) में जन्मे तथा पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से उच्च शिक्षा प्राप्त मनुमुक्त ने ‘सी’ सर्टिफिकेट सहित एनसीसी की सभी सर्वोच्च उपलब्धियाँ प्राप्त की थीं। वह बहुत अच्छे चिंतक होने के साथ-साथ बहुमुखी कलाकार और सफल फोटोग्राफर भी थे; सेल्फी के तो मास्टर ही थे। उनकी समाज-सेवा में भी बड़ी रुचि थी। वह अपने दादा-दादी की स्मृति में अपने पैतृक गाँव में स्वास्थ्य-केंद्र तथा नारनौल में सिविल सर्विस एकेडमी स्थापित करना चाहते थे। देश और समाज के लिए उनके और भी बहुत सारे सपने थे, जो उनकी असामयिक मृत्यु के साथ ही ध्वस्त हो गए।
इकलौते जवान आईपीएस बेटे की मृत्यु मनुमुक्त के पिता, वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. रामनिवास ‘मानव’ तथा माता अर्थशास्त्र की पूर्व प्राध्यापिका डॉ. कांता भारती के लिए भयानक वज्रपात से कम नहीं थी। कोई अन्य दम्पत्ति होता, तो शायद टूटकर बिखर जाता, लेकिन ‘मानव’ दम्पत्ति ने अद्भुत धैर्य और साहस का परिचय देते हुए, न केवल इस अकल्पनीय-असहनीय पीड़ा को झेला, बल्कि अपने बेटे की स्मृतियों को सहेजने और सजीव बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास भी प्रारंभ कर दिए।
उन्होंने अपनी संपूर्ण जमापूंजी लगाकर 10 अक्टूबर, 2014 को मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट का गठन किया और नारनौल में ‘मनुमुक्त भवन’ का निर्माण कर उसमें वातानुकूलित लघु सभागार, संग्रहालय और पुस्तकालय की स्थापना की। ट्रस्ट द्वारा अढाई लाख का एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, एक लाख का एक राष्ट्रीय पुरस्कार, 21-21 हज़ार के दो तथा 11-11 हज़ार के तीन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सौ मनुमुक्त ‘मानव’ स्मृति-सम्मान प्रारंभ किए। दोनों बड़े पुरस्कार फिलहाल स्थगित हैं, किंतु शेष सभी पुरस्कार-सम्मान प्रतिवर्ष, नियमित रूप से, प्रदान किए जा रहे हैं। ‘मनुमुक्त भवन’ में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम भी निरंतर चलते रहते हैं, जिनमें अब तक भारत के अतिरिक्त जापान, फीजी, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, नेपाल, श्रीलंका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, नाॅर्वे, तुर्की, रूस, माॅरिशस, कोस्टारिका, अमेरिका, कनाडा आदि दो दर्जन देशों की लगभग पांच सौ विशिष्ट विभूतियाँ सहभागिता कर चुकी हैं। ट्रस्ट द्वारा आॅन लाइन आयोजित कार्यक्रमों में तो 55-60 देशों के विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख साहित्यकार, पत्रकार, फ़िल्मकार, शिक्षाविद्, समाजसेवी, पर्यावरणविद्, खिलाड़ी, पर्वतारोही, प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता जुड़ चुके हैं तथा यह सिलसिला अब भी जारी है। मात्र सात वर्ष की अल्पावधि में ही, अपनी उपलब्धियों के कारण, नारनौल का ‘मनुमुक्त भवन’ अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। ट्रस्ट द्वारा 15 अगस्त, 2021 में, भारत की स्वतंत्रता के अमृत-महोत्सव के अवसर पर आयोजित ‘वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलन’ को, विश्व के सर्वाधिक देशों के सबसे बड़े कवि-सम्मेलन के रूप में ‘गोल्डन बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में दर्ज किया जा चुका है। छह महाद्वीपों और इक्यावन देशों के पिचहतर कवियों ने इस कवि-सम्मेलन में एक साथ काव्य-पाठ कर यह विश्व-रिकाॅर्ड बनाया था।
मनुमुक्त ‘मानव’ युवा शक्ति के प्रतीक ही नहीं, प्रेरणा-स्रोत भी थे। देहांत के एक दशक बाद भी उन्हें बड़े सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। परिवार ने मीडिया, सोशल मीडिया और फ़ेसबुक के माध्यम से उनकी प्रेरक स्मृतियों को जीवित रखा हुआ है। इसके लिए मनुमुक्त की बड़ी बहन और विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी (अमरीका) की वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. एस अनुकृति का भी भरपूर सहयोग रहता है। अंत में मनुमुक्त की बैचमेट, भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी और संप्रति धमतरी (छत्तीसगढ़) की जिलाधिकारी नम्रता गांधी के शब्दों में इतना ही कहा जा सकता है, “मनुमुक्त हमारे लिए बड़े भाई, मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक थे। उनके व्यक्तित्व में उत्तम हास्य का समावेश था, वहीं उनका दिल भी विशुद्ध सोने का बना था। उनके अंतर्मन में बड़ी गहराई थी, जिसका बाहर से अनुमान लगाना कठिन था। वह शानदार प्रशासक, स्वाभाविक नेता, श्रेष्ठ टीम-खिलाड़ी, सम्मानित वरिष्ठ, विश्वसनीय कनिष्ठ और सबके चहेते साथी तथा सहयोगी थे। हममें से किसी के लिए भी उन्हें भुला पाना संभव नहीं है।”