कथावाचक के चरणों में आईपीएस अफसर

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसरों द्वारा खाकी को कैसे खाक में मिलाया जाता है। इसका ताजा उदाहरण सामने आया है।
पूर्वी दिल्ली में हनुमान कथा का आयोजन किया गया। कथावाचक बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री थे। कथा की समाप्ति पर धीरेंद्र शास्त्री को पूर्वी जिले की डीसीपी अमृता गुगुलोथ के दफ़्तर में ले जाया गया।

आईपीएस नतमस्तक-
डीसीपी के दफ़्तर में धीरेंद्र शास्त्री का दरबार लगा। दरबार में सोफे पर पालथी मारे धीरेंद्र शास्त्री बैठे। धीरेंद्र शास्त्री के दाएं- बाएं पुलिस अफसर और कुछ अन्य लोग बैठे। शास्त्री के सामने दाएं ओर सबसे आगे तीन महिला आईपीएस संयुक्त आयुक्त छाया शर्मा, पूर्वी जिले की डीसीपी अमृता गुगुलोथ और उत्तर पूर्वी जिले की एडिशनल डीसीपी संध्या स्वामी बैठी। पूर्वी जिले के एडिशनल डीसीपी शशांक जायसवाल, उत्तर पूर्वी जिले के एडिशनल डीसीपी सुबोध गोस्वामी, द्वारका के एडिशनल डीसीपी सुखराज कटेवा समेत कुछ अन्य महिला, पुरुष भी इस दरबार में मौजूद थे। सभी पुलिस अफसरों ने भी अपने जूते उतारे हुए थे। दरबार के बाद धीरेंद्र शास्त्री को विदा करने दफ़्तर के बाहर तक वरिष्ठ पुलिस अफसर गए। इस दौरान वहां मौजूद पुलिसकर्मी हाथ जोड़ कर खड़े थे।

आईपीएस चरणों में-
एडिशनल डीसीपी शशांक जायसवाल ने तो बकायदा पैर छू कर धीरेंद्र शास्त्री को विदा किया।‌ नंगे पैर एडिशनल डीसीपी शशांक जायसवाल धीरेंद्र शास्त्री को बाहर तक छोड़ने गए। ऐसा करके इस आईपीएस अफसर ने पद और वर्दी का अपमान किया है।
आईपीएस अफसरों का यह कारनामा वायरल वीडियो और फोटो से उजागर हुआ है। आईपीएस अफसरों का यह आचरण/ हरकत किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। अफसरों को ऐसे आचरण की इजाज़त तो सर्विस नियमावली भी नहीं देती हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आईपीएस अफसर सरकारी दफ्तर में किसी कथावाचक का इस तरह से दरबार लगा सकते हैं?
बावर्दी आईपीएस अफसर ऐसे किसी कथा वाचक के पैर छू सकता हैं ?

धर्म, आस्था निजी-
किसी भी धर्म और किसी भी व्यक्ति/ कथावाचक के प्रति सम्मान या आस्था होना बिलकुल निजी मामला होता है। सरकारी अफसर भी किसी के प्रति आस्था/सम्मान रखने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन अपने पद और सरकारी दफ्तर का इस्तेमाल अपनी निजी आस्था या निजी पसंद के व्यक्ति के लिए नहीं किया जा सकता। आईपीएस अफसरों को क्या इतनी भी समझ नहीं है कि उन्हें ऐसा कोई आचरण नहीं करना चाहिए जो नियमों के भी विरुद्ध है। इन आईपीएस अफसरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए।

एसएचओ को सज़ा-
आईपीएस अफसर खुद ऐसा आचरण करते हैं लेकिन अगर एसएचओ ऐसा आचरण करें तो वह उसे सज़ा देते हैं। आईपीएस अफसरों का दोहरा चरित्र और दोहरे मापदंड को उजागर करने वाले दो उदाहरण पेश हैं। साल 2018 में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने दो एसएचओ को पद से हटा दिया था।

हीलिंग टच-
जनक पुरी के एसएचओ इंद्र पाल को एक महिला गुरु से तनाव दूर करने वाली हीलिंग टच/आशीर्वाद लेने के कारण हटाया गया।

राधे मां-
विवेक विहार के एसएचओ संजय शर्मा को राधे मां को अपनी कुर्सी पर बिठाने के कारण हटा दिया गया। पूर्वी क्षेत्र की संयुक्त पुलिस आयुक्त छाया शर्मा का कहना है कि उत्सव स्थल के बाहर सड़कों पर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी, ट्रैफिक को चलाना मुश्किल हो गया था। इसलिए सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बाबा को निकटतम सुरक्षित स्थान, डीसीपी दफ़्तर ले जाना पड़ा।

दरबार नहीं था, तो नंगे पैर क्यों?
संयुक्त पुलिस आयुक्त छाया शर्मा का जवाब हास्यास्पद है। क्या वह बता सकती हैं कि डीसीपी दफ़्तर में बाबा का दरबार नहीं लगा था, तो आईपीएस अफसर समेत सभी लोग जूते उतार कर क्यों बैठे थे? जूते भी क्या सुरक्षा के लिए उतारे थे? अगर वाकई कोई अनहोनी हो जाती, तो ये अफसर क्या बिना जूते पहने भागते।

क्या आईपीएस शशांक जायसवाल ने भी सुरक्षा के लिए ही बाबा के पैर छुए थे?
क्या सुरक्षा के लिए ही नंगे पैर एडिशनल डीसीपी शशांक जायसवाल धीरेंद्र शास्त्री को बाहर तक छोड़ने गए? दिल्ली पुलिस ने क्या अब सुरक्षा व्यवस्था के तहत आईपीएस अफसर द्वारा बाबा/वीआईपी के पैर छूना भी शामिल कर दिया है? बाबा की सुरक्षा को क्या इतना खतरा था कि कमरे में भी संयुक्त पुलिस आयुक्त समेत अनेक आईपीएस को बैठना पड़ा? अगर वाकई इतना खतरा तो उस कमरे में अफसरों के अलावा अन्य बाहरी लोग क्यों बैठे थे? इन सब बातों से साफ पता चलता है कि दरबार लगा हुआ था।

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)