क्या बाबई का नाम भी मुगलकालीन है”?

अरुण कुमार चौबे

इस समय भाजपा मुगलकालीन नाम जिन धरहरों या स्थानों के हैं उनके नाम परिवर्तित कर रही भोपाल का मिंटो हॉल अब भाजपा के पितृपुरुष स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर है होशंगाबाद नर्मदापुरम हो गया है। हबीबगंज रानी कमलपति के नाम से हो गया है। इस तारतम्य में बाबई का नाम माखन नगर कर दिया गया है। कवि माखनलाल चतुर्वेदी बाबई मातृभूमि के गांव से अपनी जननी की तरह ही लगाव और आदर रखते थे। बाबई गांव का नाम मुगलकालीन नहीं है बल्कि प्रचलित नाम है। उसमें परिवर्तन की जरूरत ही नहीं थी। बाबई कवि माखनलाल चतुर्वेदी के जन्म स्थान के नाम से साहित्य और शिक्षा जगत में विश्व प्रसिद्ध है।

माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा कविता के द्वारा ही अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति की इस प्रकार से की है। “चाह नहीं मैं सुरबला के गहनों में गूंथा जाऊं, चाह नहीं प्रेमी की माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं। चाह नहीं मैं सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊं। चाह नहीं मैं देवों के सिर पर चढ़ूं भाग्य इठलाऊं। मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,जिस पथ जाएं वीर अनेक।

अभिलाषा कवि के मन रूपी पुष्प की थी जिसे कवि ने पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त किया है। अर्थात वो अपनी स्वयं की जय जय कार और अपने नाम की प्रसिद्धि चाहते ही नहीं थे कवि के मनोभावों के अनुरूप ही कवि के जन्मस्थान बाबई का नाम भी लोग आदर से लें । बाबई माखनलाल चतुर्वेदी का पर्याय है।

आज सत्ता के सम्राट अपनी वाहवाही और लोकप्रियता की चाह में वोटों के लोभ में अपनी सियासत और सत्ता बनाए रखने के लिए जो मन में आया वो कर रहे हैं। जिस पुष्प की अभिलाषा मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जाने वालों के पथ बिछकर अपनी शहादत वीरों के लिए देकर प्रसन्न होना चाहता था। उस पुष्प और कवि की अभिलाषा को उस पथ पर वर्तमान सत्ता के सम्राटों ने फेंक दिया जिस पथ वोट मांगने जाएं नेता अनेक पुष्प की अभिलाषा कवि की अभिलाषा से ज्यादा महत्वपूर्ण सत्ता की अभिलाषा हो गई जिस पथ पर सत्ता के लालच में वोट मांगने जाएं नेता अनेक। मुख्यमंत्री के कार्य से मुख्यमंत्री और भाजपा की आत्मा को ही शांति मिली है कवि की अभिलाषा को नहीं।

आप चाहे किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान या भाव का नाम बदल दीजिए जमाना उसे उसके मूल नाम से ही जनता है, आपने महू को अंबेडकर नगर नाम दे दिया है लोग उसे महू के नाम से ही जानते पहचानते पुकारते हैं। बदला नाम सरकारी दस्तावेजों में लिखना लोगों की मजबूरी है क्योंकि नाम परिवर्तन आप दुनियां पर थोप रहे हैं। आम जनता ने कभी भी पुरजोर तरीके से कभी मांग नहीं की कि हमारे गांव शहर अथवा धरोहर का नाम बदल दिया जाय, आपके पास बहुमत जो आप करें वो पुण्य है और आपके अलावा कोई और करे तो पाप है।