प्रीती पांडेय
भारत के पड़ोस देश मालदीव में बीते दिनों सत्ता परिवर्तन हुआ । सत्ता परिवर्तन होते ही मालदीव की जमीं से भारत के लिए बड़ा थ्रेट परसेप्शन खड़ा हो गया है । जिसकी वजह है वहां के नवचयनित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्जू मोहम्मद सोलिह को हरा तक जीत हासिल की तो दुनिया के ज्यादातर लोगों ने उनकी जीत को ‘चीन-समर्थक’ नेता की जीत करार दिया । अपनी विदेश नीति को चीन समर्थक बताने पर मुइज़्ज़ू ने जवाब दिया और कहा की “हमारी सरकार की नीति ‘मालदीव के हित के लिए’ होगी और हम हर उस देश से अपने रिश्ते बेहतर करेंगे जो हमारी इस नीति का सम्मान करेंगे “। अपनी जीत के जश्न में आयोजित एक कार्यक्रम में मुइज़्ज़ू ने अपने समर्थकों से कहा, “मैं मालदीव में नागरिकों की इच्छा के ख़िलाफ़ विदेशी सेना के रहने के पक्ष में नहीं हूँ” ।उन्होंने कहा, “आम लोगों ने चुनावी नतीज़ों के ज़रिए हमने बता दिया है कि वह यहाँ विदेशी सेना की उपस्थिति नहीं चाहते.”उन्होंने अपने समर्थकों को भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार के कामकाज़ शुरू करते ही वो विदेशी सेना को मालदीव से हटाने की दिशा में काम शुरू कर देगी। मुइज़्ज़ू ने ये भी कहा कि विदेशी सेना की वापसी तय नियमों के मुताबिक की जाएगी और जिनका सहयोग ज़रूरी होगा, उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा।
मुइज़्ज़ू ने दोहराया कि अगर मालदीव के लोग विदेशी सैनिक नहीं चाहते तो वे मालदीव में नहीं रह सकते । हालाँकि मुइज़्ज़ू ने मालदीव में विदेशी सेना की उपस्थिति की बात करते हुए किसी देश का नाम नहीं लिया ।लेकिन अपने चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने मालदीव में भारतीय सेना की मौजूदगी का ज़िक्र किया था । उनके गठबंधन पीपीएम-पीएनसी ने मालदीव में भारतीय सेना की उपस्थिति के ख़िलाफ़ “इंडिया आउट” का नारा दिया था और इसे लेकर कई विरोध प्रदर्शन भी आयोजित किए थे।अभियान इस बात पर आधारित था कि भारतीय सैनिकों की मौजूदगी मालदीव की संप्रभुता के लिए ख़तरा है । ऐसे में सत्ता पर मुइज्जू का काबिज होना भारत के संदर्भ से तो मुश्किलें लेकर आने वाला है।जिसकी जड़ में लगातार बदलती हमारी विदेश नीति है।
इसे इस तरह से बेहतर समझा जा सकता है की जब हम अपने घर में रहते हैं तो अपने रिश्ते पड़ोसियों से अच्छे बना कर चलतें हैं क्योंकि पता नहीं कौन कब कैसे काम आ जाए । जैसे आपको मदद की जरुरत पड़ती है तो आप पड़ोसी की मदद लेते हैं । अगर आपके संबंध अपने पड़ोसियों से अच्छे हैं तो चीजे अच्छी चलती है लेकिन अगर आपके संबंध अच्छे नहीं हैं तो फिर आपका उस जगह पर रहना मुश्किल हो जाता है, आप असुरक्षित महसूस करने लगते हैं । आपको डर होता है की आप जहां रह रहें हैं वहां आप सुरक्षित ही नहीं हैं, डर इस बात का कि कब, कौन आपके घर में दाखिल हो जाएं, कब वो आपके घर पर कब्ज़ा कर लें पता ही नहीं ।
तो ऐसे में पड़ोसी के साथ बेहतर रिश्ते रखना बहुत जरुरी है। ये तो हुई आम बात , अब बात करते हैं देश की । आज जब हमास के आंतकियों ने इज़राइल पर हमला किया तो ये जाहिर है कि ये कंफ्लिक्ट लंबे समय से चला आ रहा था जिसकी आज ऐसे हालात पैदा हुए । इसी तरह रूस -यूक्रेन भी पड़ोसी है लेकिन दोनों के बीच लंबे समय से चला आ रहा कंफ्क्लिट आज युद्ध की शक्ल अख्तियार कर चुका है । चलिए अब बात भारत के संदर्भ में करते हैं , हमारे पड़ोस में एक तरफ पाकिस्तान है जिसके साथ संबंध कभी भी अच्छे नहीं हो पाएं । दूसरा पड़ोसी है नेपाल, जिसके साथ हमारे अब तक के संबंध आत्मियता भरे रहें हैं, ऐसे जैसे छोटे भाई बड़े भाई के होते हैं । हालांकि विदेश नीती में बिग ब्रदर वाला कांसेप्ट कामयाब नहीं होता । लेकिन रोटी बेटी या बिग ब्रदर वाला स्वरूप भी हालिया दिनों में बदला नतीजा नेपाल के साथ भी संबंध कुछ खराब हुए हैं । जिससे जुड़ी खबरें कई मर्तबा आती रही है ।
हमारे एक और पड़ोसी श्रीलंका की स्थिती भी इन दिनों ठीक नहीं और कभी भी वो फ्रंट भारत के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है । भूटान भी आज की तारीख में हमसे ज्यादा चीन का पक्ष लेने लगा हैं। अब बात मालदीव्स की करते हैं जहां के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जु ने जीत के जश्न के दौरान एक कार्यक्रम में कहा विदेशी सेना को यहां से जाना होगा । मैं नागरिको की इच्छा के खिलाफ विदेशी सेना के अपनी ज़मीन पर रहने देने के पक्ष में नहीं हूं, वहीं चीन के समर्थक माने जाने वाले जाने वाले मुइज्जु के इस बयान पर भारत की भी प्रतिक्रिया देखने को मिली । मगर ये जवाब काफी पॉजीटिव कहा जा सकता है । लेकिन इतना स्पष्ट है कि मॉलदीव्स को नए राष्ट्रपति मिलने के बाद भारत के मॉलदीव्स के साथ संबंधों का स्वरूप कुछ बदला जरुर है । ये वहीं मालदीव है जिसे देश के रूप में आत्मनिर्भर होने में भारत ने भरपूर सहयोग दिया था लेकिन अब वो हमारे हाथ से फिसल रहा है….भौगोलिक दृष्टि से मालदीव की लोकेशन और पोजीशन ऐसी है कि अगर वहां से वो चीन को सपोर्ट करता है तो भारत के सामने सैंकड़ो चुनौतियां सामने उठ खड़ी होंगी । हमास को जेहन में रखें तो पाएंगे कैसे उसने ज़मीन के नीचे नीचे सुरंग तैयार कर ली जो इज़राइल के लिए मुश्किलों का सबब बना । ऐसे में अगर भारत हरदम चौकन्ना नहीं रहेगा तो कभी भी घेरे जाने की आशंका बनी रहेगी । इसमें कोई शक नहीं कि हाल के दिनों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का डंका विदेशों में भी बज रहा है । हम अमेरिका को इन दिनों खासी तवज्जों दे रहे हैं । विश्व के सबसे बड़े ताकतवर देश के राष्ट्रपति के साथ उनका गर्मजोशी के साथ मिलना , सेल्फी खींचना भले ही अंतर्राष्ट्रीय पटल पर मजबूत संदेश देने का काम करता हो लेकिन ये भी हकीकत है कि चीन को अंडर ऐस्टीमेट नहीं किया जा सकता । चीन बेहद शातिर तरीके से हमें हर छोर से घेरने का काम कर रहा है। चीन के लिए मालदीव सामरिक रूप से काफ़ी अहम ठिकाना है. मालदीव रणनीतिक रूप से जिस समुद्र में बसा है वो काफ़ी अहम है. चीन की मालदीव में मौजूदगी हिंद महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है. 2016 में मालदीव ने चीनी कंपनी को एक द्वीप 50 सालों की लीज़ महज 40 लाख डॉलर में दे दिया था.
दूसरी तरफ़ भारत के लिए भी मालदीव कम महत्वपूर्ण नहीं है. मालदीव भारत के बिल्कुल पास में है और वहां चीन पैर जमाता है तो भारत के लिए चिंतित होना लाजमी है. भारत के लक्षद्वीप से मालदीव क़रीबी 700 किलोमीटर दूर है और भारत के मुख्य भूभाग से 1200 किलोमीटर। विपरीत हालात में मालदीव से चीन का भारत पर नज़र रखना आसान हो जाएगा. मालदीव ने चीन के साथ फ़्री ट्रेड अग्रीमेंट किया है. यह भी भारत के लिए हैरान करने वाला क़दम था. इससे साफ़ होता है कि मालदीव भारत से कितना दूर हुआ है और चीन से कितना क़रीब। नेपाल से लेकर पाकिस्तान, भूटान, श्रीलंका और अब मालदीव , वो सबसे करीबियां गांठ रहा है ।
अगर हम इसे लेकर आज चौकन्ना नहीं होते हैं तो चालबाज़ चीन कभी भी हमारे लिए बड़ी चुनौती बन जाएगा और तब काट ढूंढ़ना हमारे लिए बेहद मुश्किल होगा । भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने हाल ही में कहा है कि वो मालदीव के साथ हर मुद्दे पर बात करेगा । विदेश मंत्रालय ने मुइज्जु के ब्यान पर बोलते हुए कहा कि हमारी आपसी सहयोग और द्विपक्षीय संबंधों पर भी बातचीत हुई है । लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों के खराब होने की शुरुआत कैसे हुई, कहां से हुई ? मालदीव से रिश्ता बिगड़ रहा है ये चिंता का विषय है । मालदीव के कई टापू ऐसे हैं जिसके मालिक भारत के उद्योगपति है । कुछ टापू ऐसे हैं जिसका क्षेत्रफल मात्र 4 किलोमीटर है । मालदीव ऐसे ही छोटे छोटे टापू से मिल कर बना है , सोचिए उस मुल्क की भी आज इतनी हिम्मत हो गई कि वो भारत को आंखे दिखा रहा है । वहां के नव चयनित राष्ट्रपति आपकी सेना को वहां से हटाने की बात कह रहा हैं । जानकार बताते हैं कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों के खराब होने की शुरुआत साल 2018 से हुई । फरवरी 2018 में मालदीव की सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा था राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने विपक्षी नेताओं को कैद करके संविधान और अंतर्राष्ट्रीय नियमों को तोड़ा है । मोहम्मद नाशिद समेत विपक्ष के कई नेताओं को अब्दुल्ला यामीन ने कैद कर लिया था ।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी नेताओं को रिहा करने का निर्देश दिया लेकिन अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं मानी बल्कि इमरजेंसी लागू कर दिया, हालांकि भारत ने इसका तब विरोध किया । ऐसा नहीं है कि मालदीव मे बदलते राजनीतिक घटनाक्रम से सिर्फ भारत परेशान था, उस दरम्यान चीन की तरफ से मालदीव को लेकर बयान आया की दूसरे देशों को मालदीव के मसले पर हस्तक्षेप करने से गुरेज करना चाहिए । चीन की तरफ से दखलअंदाजी ना करने को लेकर जारी किए गए इस ब्यान ने सबको हैरत में डाल दिया था…. । 2018 से भारत के रिश्ते मालदीव से खराब होते जा रहे हैं अब ऐसे में अगर भारत की सेना वहां से हटा ली जाएंगी तो मालदीव भारत के हाथ से निकल जाएगा और ठीक इसी वक्त चीन का मालदीव के द्वीप पर होना ज़ाहिर है भारत के लिए थ्रेट परसेप्शन खड़ा करता है । सवाल ये है कि जिस कूटनीती की इतनी तारीफ की जाती थी वो आज इतना बेबस नज़र आ रही है ।
भूटान, श्रीलंका , नेपाल , पाकिस्तान तो पहले से ही खराब है और अब मालदीव भी , 2015 से ही स्पष्ट हो गया था कि चीन भारत के इर्द गिर्द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स बिठा रहा है जिनके जरिए वो अपने हित साधने का काम शर्तिया करेगा । लेकिन तब हमें दूसरे हित दिखाई दे रहे थे तो हमने इसे तव्जजों नहीं दिया । जानकारों का कहना है कि भावनाओं से विदेश नीती नहीं चलती , विदेश नीती को चलाने में सबसे बड़ा योगदान होता है R&DW का, लेकिन दुखद पहलू ये है कि वर्तमान सरकार ने R&DW का स्ट्रक्चर ही बदल दिया जिसकी बदौलत अब तक भारत की विदेश नीती मजबूती से काम कर रही थी , कुछ को कांग्रेस का पिट्ठू समझा गया और उन्हें देशहित नहीं कांग्रेस हित का पैरोंकार माना गया और या तो उनसे इस्तीफा ले लिया गया या वीआरएस । उन्हें हटाने के बाद एक खास विचारधारा वाले अफसरों जिन पर सरकार को भरोसा था उनकी नियुक्ति हो गई जिन्होंने अपनी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने की जिम्मेदारी का निर्वहन करना शुरु किया ।
हमारे इर्द गिर्द जितने देश हैं उन सबके साथ हमारे संबंधों का स्वरूप लगातार बदलता चला गया । हमसे संबंध तल्ख होना और चीन से नजदीकियां बढ़ना क्या हमारी विदेश नीती पर सवाल नहीं खड़े करता । सोचिए भूटान जैसा देश जिसके साथ हमारी स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप थी , संधिया थी , उसी भूटान ने ने चीन के साथ एग्रीमेंट कर लिए , वो देश जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी थी उसने एकतरफा चीन के साथ संधी कर ली जबकि एग्रीमेंट के हिसाब से वो ऐसा नहीं कर सकता था । हमारे चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को नेपाल में ऑनरेरी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नेपाल में माना जाता था जो कैबिनेट में हिस्सा लेते थे, उन्होंने वो स्टेटस खत्म कर दिया । बंग्लादेश जिसका अस्तित्व ही हमारी वजह से है, आज वहीं हमसे संधिया खत्म करके चीन की तरफ हो रहा है । श्रीलंका जिसे प्रभाकरण के समय हमने बचाया, कई मौकों पर हमारे दम पर उसे अंतर्राष्ट्रीय मदद मिली , हर संभव मदद की वो श्रीलंका भी चीन की तरफ झूकाव लिए हुए है । क्या ये सब विदेश नीती की विफलता का नतीजा नहीं है ? मालदीव बेशक छोटा सा देश है लेकिन उसकी स्ट्रेटेजिक वैल्यूआई इतनी ज्यादा है कि समुद्र के जरिए व्यापार के लिहाज से वो महत्वपूर्ण है , सुरक्षा के लिहाज भी उसकी भोगौलिक स्थिती महत्वपूर्ण है । मालदीव के हाल में चुने गए राष्ट्रपति ने चुनाव के दौरान नारा ही दिया था इंडिया आउट, अब जब ऐसी सोच के व्यक्ति को वहां की आवाम ने सत्ता तक पहुंचाया तो ज़ाहिर है जल्द ही वो भारतीय सेना को अपनी ज़मीन से बाहर का रास्ता दिखाएगा । सवाल ये है कि अगर जल्द सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो क्या हम इतने महत्वपूर्ण स्ट्रेटेजिक प्वाइंट , जहां अब तक हमारी मौजूदगी मजबूती से थी उसे खोने के लिए तैयार है ?