
विजय गर्ग
अभी सोशल मीडिया पर गंभीर अध्ययन होना बाकी है। यह तो तय है कि सोशल मीडिया ने आम आदमी को अपनी बात रखने और कहने का एक जोरदार मंच दिया है। लेकिन, यह भी सच है कि अभी न किसी को यह अंदाज है कि चौबीस घंटे सोशल मीडिया की लत हमें कहां ले जाएगी या इसके कितने दुष्प्रभाव होंगे ? हालांकि, समय-समय पर दुनिया भर में कई यूनिवर्सिटी और संस्थाओं में इस बाबत शोध होते रहते हैं। इन शोधों में यह भी पाया गया कि सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल की वजह से 46 प्रतिशत तनाव बढ़ने लगा है, लोग अवसाद के मरीज बन रहे हैं और अकेलापन बढ़ता जा रहा है एक अध्ययन के अनुसार, इस साल के अंत तक पूरे विश्व में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लगभग 5 अरब पहुंचने की उम्मीद है। इस वृहद संख्या में एक नंबर आपका भी है।
क्या सही है क्या गलत? कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पिछले साल हुए एक अध्ययन के मुताबिक इसमें शामिल 42 प्रतिशत लोगों ने माना कि उन्हें कुछ अर्से से नींद की दिक्कत हो रही है। यही नहीं, 35 प्रतिशत लोगों ने अवसाद या तनाव की बात कही। सोशल मीडिया की लत को रेखांकित करते हुए डॉक्टर पीटर नार्वे ने कहा, ‘इस समय अधिकांश लोग सोशल मीडिया के इस्तेमाल को ले कर सही और गलत के भ्रम में हैं।’ इस अध्ययन के तहत बीस हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे।
गुलाम ना बनें
‘द आर्ट ऑफ सोशल मीडिया’ किताब के लेखक गई कावासकी लिखते हैं, ‘इस मंच को आप अपनी बेहतरी के लिए इस्तेमाल करें तो सही है। इसके गुलाम बनेंगे तो यह आका की तरह आप पर हुक्म करने लगेगा।’ दरअसल, अब तक सोशल मीडिया को ले कर जितने भी अध्ययन और शोध हुए हैं, उन सबमें एक बात सामने आई है कि इसमें खर्च होने वाला समय और ऊर्जा 52 प्रतिशत मामलों में सकारात्मक नहीं होता। डॉ. पीटर कहते हैं कि लाइक और कमेंट की अपेक्षा हमारे मस्तिष्क की लय बिगाड़ देती है। इससे होने वाला तनाव हृदय गति को भी बड़ा देता है। सोशल मीडिया की लत को खराब जीवनशैली से होने वाली बीमारियों में सबसे ऊपर रखते हैं। उनका मानना है कि इसका नुकसान तुरंत नहीं नजर आता, पर कुछ समय बाद शिथिलता, भूख न लगना, सिरदर्द, उचटी नींद, पेट में मरोड़, शरीर के विभिन्न हिस्सों में गांठ के तौर पर उभर कर आता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार