कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है ?

निर्मल रानी

राजधानी दिल्ली ने पिछले दिनों 18वें जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन में मेज़बान की भूमिका निभाई। 1999 में गठित इस ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले संगठन में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस , जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ़्रीक़ा , तुर्कि, यू- के,संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय संघ जैसे 20 देश शामिल हैं। G20 को बीस वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स के समूह के रूप में भी जाना जाता है जो कि विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नर्स का एक संगठन है। इससे पूर्व 17वां जी-20 शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया के बाली में 15-16 नवंबर 2022 को आयोजित किया गया था और अब 18वां जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन 9-10 सितंबर 2023 को दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ है। जबकि 2024 में 19 वें G20 सम्मलेन अध्यक्षता ब्राज़ील के पास होगी। इस सम्मलेन का मुख्य मक़सद वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रणालीबद्ध महत्वपूर्ण औद्योगिक और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाने के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करना है। 9-10 सितंबर 2023 को दिल्ली में आयोजित हुये जी-20 शिखर सम्मेलन से पूर्व इसी वर्ष भारत ने अपने सभी 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 60 प्रमुख शहरों में भी जी-20 की 220 बैठकें सफलतापूर्वक संपन्न कराकर अपनी सामर्थ्य व मेज़बानी से पूरे विश्व को परिचित कराया है।

परन्तु पश्चिमी देशों के कई प्रमुख अख़बारों ने जहां जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन का ज़िक्र किया है वहीँ इस आयोजन के मद्देनज़र दिल्ली के सौंदर्यीकरण के नाम पर कई इलाक़ों में झुग्गियों को गिराने के विषय को भी प्रमुखता से उठाया है। अख़बारों ने लिखा है कि किस तरह भारतीय अधिकारियों ने जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले ग़रीब बस्तियों को हटा कर दिल्ली के सौंदर्यीकरण का अभियान चलाया। इतना ही नहीं बल्कि वाशिंगटन पोस्ट ने तो अपने एक लेख में यह भी लिखा कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वैश्विक कार्यक्रम को अपने रिब्रांडिंग के लिए इस्तेमाल किया है। लेख में कहा गया- ”देश भर में बिलबोर्ड पर प्रधानमंत्री का चेहरा चिपका दिया गया है। इसका संदेश सरल है-‘ दुनिया के शीर्ष नेताओं की मेज़बानी करके, भारत एक विश्व शक्ति के रूप में उभरा है, और मोदी ही वो व्यक्ति हैं जो देश को वहां तक ले गए।’ लेकिन सच्चाई थोड़ी अलग है। जी 20 की अध्यक्षता हर सदस्य देश को मिलती है। जैसे इंडोनेशिया को पिछले साल मिली थी.” बाइडेन और पीएम मोदी की द्विपक्षीय वार्ता के बाद तो एक अमेरिकी पत्रकार ने व्हाइट हाउस प्रवक्ता से अपना पहला ही सवाल दिल्ली में झुग्गियों को हटाए जाने पर पूछ लिया। अमेरिकी पत्रकार ने पूछा, -‘बाइडेन-मोदी के बीच मुलाक़ात के संबंध में सबसे पहले मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या बातचीत में झुग्गियों पर बुलडोज़र चलाए जाने को लेकर बात हुई? क्या राष्ट्रपति बाइडेन ने पूछा कि सुनिए…लोकतांत्रिक सरकारें ऐसा बर्ताव नहीं करती हैं?’
दरअसल जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले दिल्ली के पूर्वी ज़िला प्रशासन का मयूर विहार फेज़ -एक में झुग्गियों पर बुलडोज़र चला। खादर में तीन अलग-अलग स्थानों पर कार्रवाई करके 30 से अधिक झुग्गियों को तोड़ दिया गया। यहां कथित तौर पर अवैध रूप से रह रहे क़रीब पांच हज़ार लोगों को हटाया गया था। दोबारा से क़ब्ज़ा करने पर झुग्गीवासियों से क़ानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहने को कहा गया था। इस कार्रवाई से पहले प्रशासन ने झुग्गियों में रहने वाले लोगों को स्वयं झुग्गी हटाने की चेतावनी दी थी। परन्तु इसके बाद भी लोग हटने को तैयार नहीं थे। फिर भी प्रशासन द्वारा डीएनडी व नर्सरी पुश्ते के पास से झुग्गियां हटाई गई। क्योंकि इन्हीं मार्गों से सम्मेलन के दौरान विदेशी मेहमानों का आवागमन हुआ था। प्रशासन द्वारा प्रगति मैदान व इसके आस पास में बसीं झुग्गियों को भी ख़ाली कराया गया था। झुग्गियों में रहने वाले लोगों ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था लेकिन अदालत ने बस्तियों को अवैध क़रार दे दिया। इसके बाद प्रशासन ने इन्हें 31 मई तक घर ख़ाली करने का आदेश दिया था। परिणाम स्वरूप शिखर सम्मेलन से पहले कई परिवार बेघर हो गए। सैकड़ों झुग्गियों को जहाँ ग़रीबों की चीख़पुकार के बीच बुलडोज़र से ध्वस्त कर दिया गया वहीँ कई इलाक़ों में जहां घनी आबादी या पक्के निर्माण के चलते झुग्गियां गिराना संभव नहीं था ऐसे कई इलाक़ों को पर्दे लगाकर ढक दिया गया और उन पर्दों पर G20 के बैनर्स या प्रधानमंत्री मोदी के चित्र लगा दिए गये। इसके साथ ही चार हज़ार से ज़्यादा भिखारियों को रोहणी व द्वारका के आश्रय गृहों में भी भेजा गया।

मेहमानों को चमक दमक दिखाने के लिये ग़रीबों व झुग्गीवासियों पर गाज गिरना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले दिल्ली में हुये कॉमन वेल्थ खेलों के दौरान भी सरकार ने अपने ‘बदनुमा दाग़ ‘ छुपाने के लिये आधी दिल्ली को बड़े बड़े बोर्ड्स से ढक दिया था। याद कीजिये जब 24 फ़रवरी 2020 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने गुजरात में अहमदाबाद का दौरा किया था और प्रधानमंत्री ने उनके साथ रोड शो किया था उस समय भी सड़कों के किनारे रहने वाले झुग्गी वासियों को छुपाने के लिये मार्ग में कई जगह पक्की दीवारें खड़ी कर दी गयी थीं। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि यह वही ग़रीब वर्ग है जिसे प्रधानमंत्री जी मुफ़्त राशन देकर उनसे वोट हासिल करने की उम्मीद करते हैं और गर्व से बताते हैं कि उनकी सरकार द्वारा 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है ? इतना ही नहीं बल्कि झुग्गी से नफ़रत को लेकर इसी सम्बन्ध में एक विरोधाभास भी नज़र आया। जिस समय राजघाट पर महात्मा गाँधी की समाधि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अतिथि विदेशी मेहमानों का स्वागत कर रहे थे उस समय स्वागत स्थल की पृष्ठभूमि में झोपड़ी नुमा साबरमती आश्रम का विशाल बैनर लगा हुआ था।

वैसे भी विश्व के शीर्ष नेता जिस गांधी को नमन करने राजघाट पहुंचे थे वह ग़रीबों व दलितों का मसीहा गांधी था। वह भारतीय ग़रीब जनमानस की आर्थिक स्थिति से प्रभावित होकर अपने वैभवशाली वस्त्र वस्त्र त्यागने तथा एक धोती में अपना जीवन गुज़ारने वाला गांधी था। मेहमानों के स्वागत में अपने घर को चमकाना निश्चित रूप से ज़रूरी है परन्तु ग़रीबों की चीख़ पुकार,औरतों बच्चों बुज़ुर्गों के आंसू और बुलडोज़र की गड़गड़ाहट की शर्त पर इसे कोई भी मानवतावादी अच्छा नहीं कह सकता। 80 करोड़ लोगों द्वारा मुफ़्त भोजन हासिल करने वाले और सरकार बनाने में अहम किरदार अदा करने वाले इन्हीं ग़रीब झुग्गीवासियों के प्रति अभद्र व सौतेला व्यवहार करना तो यही बताता है कि गाँधी और गाँधी के दलितों को तो बस वोट बैंक के रूप में ही इस्तेमाल किया जाता है जबकि सरकार की चिंता पूंजीपतियों के कल्याण की अधिक होती है। वर्ना ग़रीबों को उजाड़ने व उन्हें पर्दों के पीछे छुपाने के क्या मायने हैं ? मिर्ज़ा ग़ालिब ने यूँही नहीं कहा था कि -“बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब। कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है।।