क्या यही है ‘संघ’ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सच्चाई ?

Is this the truth of the cultural nationalism of the 'Sangh'?

निर्मल रानी

गत 2 अक्टूबर यानी विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस ) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो गये। संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 में विजय दशमी के दिन राष्ट्र निर्माण और सामाजिक ज़िम्मेदारी के ‘घोषित उद्देश्य’ से की गयी थी। संग्ठन की स्थापना के समय यही बताया गया था कि संघ एक स्वयंसेवी संगठन है, जिसका उद्देश्य देशवासियों में संस्कृति के प्रति जागरूकता, अनुशासन, सेवा और सामाजिक ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ाना है।

शताब्दी वर्ष के इस अवसर पर देश भर में अनेक आयोजन हुये जिसमें संघ का गुणगान किया गया। संघ समर्थक सत्ताधारियों द्वारा संघ का क़सीदा पढ़ने वाले अनेक लेख लिखे गये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोकि स्वयं भी संघ प्रचारक रह चुके हैं, ने राष्ट्र निर्माण में आर एस एस के योगदान की सराहना की। मोदी ने संघ के शताब्दी समारोह में कहा कि -‘संघ ने पिछली एक सदी में अनगिनत जीवनों को दिशा दी और मज़बूत बनाया। जिस तरह सभ्यताएं महान नदियों के किनारे विकसित होती हैं, उसी तरह संघ की धारा के साथ सैकड़ों जीवन खिले और आगे बढ़े हैं। RSS का उद्देश्य हमेशा एक ही रहा राष्ट्र निर्माण।” इस अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा संघ के नाम पर स्मारक सिक्के और डाक टिकट भी जारी किए गये। संघ के लोग इसे विश्व का सबसे बड़ा समाजसेवी संगठन बताते हैं। आज देशभर में लाखों स्वयंसेवकों के माध्यम से संघ अपने ‘घोषित व अघोषित’ कार्यों में सक्रिय है।

परन्तु यह भी सच है कि स्थापना के समय से ही संघ विवादों में घिरा रहा है। इतना बड़ा संगठन होने के बावजूद संघ पर संस्था के रजिस्टर्ड संस्था न होने के साथ साथ इस पर साम्प्रदायिकता फैलाने व धर्म जाति के आधार पर नफ़रत फैलाने का भी आरोप लगता रहा है। देश का एक बड़ा वर्ग महात्मा गाँधी की हत्या में संघ की साम्प्रदायिक विचारधारा को भी ज़िम्मेदार मानता है। इस बात के भी ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि बापू की हत्या के बाद संघ कार्यालय में जश्न मनाया गया था और मिठाइयां बांटी गयीं थीं। देश के विभाजन से लेकर आज तक देश में हुये अनेकानेक साम्प्रदायिक दंगों में संघ के कार्यकर्ता आरोपित रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि संघ के अनेक कार्यकर्ताओं पर चरित्रहीन होने,बलात्कार व बाल व्यभिचारी होने तक के आरोप लगते रहे हैं। और इसे भी अजीब संयोग समझा जाना चाहिये कि संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर जब संघ,सत्ता व भाजपा संघ के शताब्दी वर्ष के जश्न में डूबे हुये हैं इसी दौरान संघ द्वारा संचालित शाखाओं में जहां बच्चे “संस्कार” के नाम पर भेजे जाते हैं,केरल के एक युवक द्वारा संघ व इसके अनेक सदस्यों द्वारा उसके साथ बार-बार किये गये यौन शोषण के बाद आत्महत्या कर लेने जैसे क़दम ने संघ के वास्तविक चाल चरित्र और चेहरे को उजागर कर दिया है। केरल के कोट्टायम ज़िले के एलिकुलम निवासी 26 वर्षीय आईटी प्रोफ़ेशनल युवक, अनंदु आजी ने 9 अक्टूबर 2025 को तिरुवनंतपुरम के थंपानूर स्थित एक होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली। अनंदु आजी की आत्महत्या के बाद उनके द्वारा मलयालम भाषा में लिखा गया 7 से 15 पेज लंबा सुसाइड नोट सार्वजनिक हुआ। इस नोट में अनंदु ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। जिसमें आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के सदस्यों द्वारा बचपन से उसके साथ लगातार किये जा रहे यौन शोषण और बलात्कार का ज़िक्र है। मलयालम भाषा में सुसाइड से पूर्व लिखा गया उसका अंतिम पत्र अथवा सन्देश संघ के शताब्दी वर्ष पर संघ के मुँह पर कालिख पोतने का काम कर रहा है।

26 वर्षीय आईटी प्रोफ़ेशनल युवक सुसाइड से पूर्व लिखे गये अपने अंतिम नोट में लिखता है कि — “मैं अनंदु आजी हूं, कोट्टयम के थम्पल काड से। मैं हमेशा से ही एक शांत और अंतर्मुखी व्यक्ति रहा हूं। लेकिन बचपन से ही मुझे जो दर्द सहना पड़ा, उसने मेरी ज़िंदिगी को तबाह कर दिया। मैं अपनी ज़िंदिगी ख़त्म कर रहा हूं क्योंकि एंग्यज़ायटी और लगातार पैनिक अटैक ने मुझे जीना मुश्किल बना दिया है। यह ट्रॉमा का नतीजा है जो मुझे 4 साल की उम्र से सता रहा है। मुझे 4 साल की उम्र से ही एक पड़ोसी व्यक्ति द्वारा लगातार यौन शोषण का शिकार बनाया गया। वह मेरे परिवार के क़रीब था और मुझे धमकाता था। यह शोषण सालों तक चला। मैं एक रेप विक्टिम हूं। बचपन में ही मेरी मासूमियत छीन ली गई। मेरे पिता ने मुझे 3-4 साल की उम्र में ही आरएसएस में शामिल करा दिया। मैं शाखा और कैंपों में जाता रहा। वहां मुझे कई आरएसएस सदस्यों के द्वारा यौन शोषण और बलात्कार का सामना करना पड़ा। मैं नामित करता हूं ‘एन.एम.’ को, जो आरएसएस और भाजपा का प्रमुख सदस्य है। उसने मुझे कई बार शोषित किया, ख़ासकर कैंपों के दौरान। मैं अकेला नहीं हूं—कई अन्य लड़के भी इसी तरह के दोहन के शिकार हुए हैं। आरएसएस कैंपों में यह एक सिस्टमैटिक पैटर्न है, जहां बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। आरएसएस के कई सदस्यों ने मुझे छुआ, शोषित किया। मैं उनके नाम नहीं जानता क्योंकि डर के मारे चेहरा भी याद नहीं। लेकिन एन.एम.का नाम मैं कभी नहीं भूलूंगा। वह मेरे लिए एक भयानक स्मृति है।”

अनंदु आजी आगे लिखते हैं कि -“इन घटनाओं ने मुझे डिप्रेशन और एंग्यज़ायटी का मरीज़ बना दिया। मैं थेरेपी ले रहा था, लेकिन ट्रामा इतना गहरा था कि मैं रोज़ पैनिक अटैक से जूझता। बचपन का दर्द मुझे कभी शांति नहीं देता। मैंने लड़ने की कोशिश की, लेकिन अब हार मान ली।” मेरे माता-पिता को दोष न दें। उन्होंने मुझे अच्छा जीवन दिया, लेकिन वे नहीं जानते थे कि क्या हो रहा था। मैंने कभी कुछ नहीं बताया क्योंकि डर था। समाज को पता चलना चाहिए कि ऐसे संगठनों में बच्चे सुरक्षित नहीं। लाखों बच्चे शाखाओं में जाते हैं—कुछ को बचाना ज़रूरी है।” अंत में वे लिखते हैं कि -“मैं अपनी मौत के लिए किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा रहा, लेकिन सच्चाई सामने आनी चाहिए। कृपया जांच करें और दोषियों को सज़ा दें। पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई हो।” मैं थक गया हूं। अब विदा हो रहा हूं। कृपया मेरी कहानी को दबाएं नहीं। न्याय हो। अलविदा।” अनंदु आजी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के जश्न के दौरान एक आईटी प्रोफेशनल युवक द्वारा संगठन के लोगों पर अति गंभीर आरोप लगाते हुये आत्महत्या तक कर लेना निश्चित रूप से यह सवाल ज़रूर खड़ा करता है कि क्या यही है संघ के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की सच्चाई ?