सुशील दीक्षित विचित्र
क्या यह देश के लिए घातक राजनीति नहीं कि विपक्ष आतंकवादी हमास के खिलाफ नहीं इजरायल के खिलाफ है । यह ठीक वैसे ही है जैसे यही विपक्ष कश्मीर के नरसंहार के खिलाफ नहीं था लेकिन उसकी सच्चाई उजागर करने वाली फिल्म के खिलाफ था । क्या इससे यह साबित नहीं होता कि हमारे देश के समूचा विपक्ष हमेशा मानवता के खिलाफ खड़ा रहा । वह हमास के बर्बर हमले की निंदा नहीं करता । हमास द्वारा बंधकों की हत्या की कीड़े मकोड़ों की हत्या समझता है । हमारा विपक्ष हमास के कब्जे में इजरायली बंधकों की भी बात नहीं करता लेकिन इजरायल के हमले के विरूद्ध है वैसे ही जैसे कश्मीरी आतंकियों और उनके समर्थकों पर कार्यवाही के खिलाफ है । इस पर बात करना व्यर्थ है कि क्यों ? क्योंकि इसके पीछे का राज सभी को पता है । राहुल गांधी , लालू यादव , शारद पवार ओवैसी लाल पीले है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में गाजा पर जुड़े प्रस्ताव से दूरी क्यों बना ली । विसंगति देखिये की इस प्रस्ताव में इजरायल को तो धमकाया गया है लेकिन हमास , बंधकों और इजरायल पर हिज्बुल्ला के हस्तक्षेप पर कुछ नहीं कहा गया है । वर्तमान में भारत का एक ही उद्देश्य है कि आतंकवाद का विरोध । उसके खिलाफ हवा बनाना और कार्यवाही करना । प्रधान मंत्रीमोदी ने इजरायल पर हमास के बर्बर हमले के पहले ही दिन घोषणा कर दी थी कि वह इसे आतंकवादी हमला मानता है और ऐसे मौके पर वह इजरायल के साथ खड़ा है ।
इजरायल हमारा स्वाभाविक मित्र होना चाहिए लेकिन 70 – 72 साल के बड़े सामयिक हिस्से में भारतीय वैदेशिक कूटनीति ने फिलिस्तीन को अपना मित्र बनाया और इजरायल से दूरी बनाये रखी । इसलिए नहीं कि इसके पीछे कोई दूरदर्शिता थी बल्कि यह भारतीय मुसलमानों के वोटों को पाने के लिए किया गया । अपने इस स्वार्थ के लिए भारतीय राजनीति द्वारा भारत के रक्षा हितों से भी कूटनीति की गयी । इसी कूटनीति को जारी रखते हुए शरद पवार कहते हैं कि प्रस्ताव से दूरी फलीस्तीनी मुद्दे पर भारत सरकार की दूरी भ्रम की स्थिति है जबकि भ्रम की स्थिति में खुद पवार हैं और इसी भ्रमित स्थिति की राजनीति करते आये हैं । इसका लाभ हमेशा पाकिस्तान उठाता रहा है । अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की पाकिस्तान किस तरह बेइज्जती करता था और किस तरह भारतीय नेतृत्व जेब में हाथ डाले इसे सहता रहा और मुस्लिम यादव समीकरण बनाने वाले लालू यादव भारत के इस कदम को मानवता के खिलाफ बता रहे हैं । तो क्या हमास का हमला , उसकी बर्बरता और भी भी बंधकों के साथ की रही नृशंसता मानवता के समर्थन में है । क्या हमास मानवता का कोई मॉडल है जिसे बच्चों को गले रेतने का अधिकार है । कैसी घटिया राजनीति है कि मणिपुर में आदिवासी महिलाओं को नंगा घुमाने को मानवता के खिलाफ बताता है और हमास द्वारा लाश तक के बलात्कार करने को मानवता के हित में मानती है । विद्रूप विचारधारा यह कि पवार जैसे विपक्षी नेता इसे इसे भ्रमित राजनीति नहीं मानते । प्रियंका गांधी तो हमास की बर्बरता को सत्य अहिंसा की लड़ाई बताती हैं । असुद्दीन ओवैसी ो गाजा में मरने वालों की पूरी संख्या याद है लेकिन इजरायलियों की हत्या के बारे में नहीं पता । वे भूल गए कि हमला हमास ने किया । खौफनाक हिंसा की शुरुआत हमास ने की । इजरायल जो कुछ कर रहा है अपनी रक्षा के लिए कर रहा है । संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव उसके इस मौलिक अधिकार का हनन है । यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र की भ्रमित मानसिकता को भी दर्शाता है क्यूंकि इसमें हमास का जिक्र नहीं है । केवल इजरायल को ही टारगेट किया गया है जैसा संयुक्त राष्ट्र शुरू से करता आ रहा है ।
मानवता यदि गाजा पट्टी में हताहत हो रही है तो इजरायल में भी हो रही है । हमास के हमले अभी भी जारी है और इस पर प्रस्ताव में कोई भी चर्चा न किये जाने से यह लगड़ा , एकतरफा प्रस्ताव बन कर रह गया । यदि मानवीय दृष्टिकोण की बात है तो यह निष्पक्ष हो कर अपनाया जाना चाहिए था । हमलावर हमास की जगह इजरायल पर दबाब बनाना असुंतलित मानवीय नीति है । इसी नीति के तहत प्रस्ताव लाया गया । भारत खुद इसी लगड़ी मानवीय सहानुभूति के हाथों कई बार छला गया है । पहले की सरकारों ने भले ही इस छल को जीत बताया हो लेकिन वर्तमान नेतृत्व इसकी असलियत समझ गया है । यही कारण है कि उसने अपनी विदेश निति को और कारगर बनाने के लिए इजरायल के साथ जा खड़ा हुआ । इसलिए और भी खड़ा हुआ कि उसे लगता है कि इजरायल के साथ अन्याय हुआ है ।
फिलहाल संयुक्त राष्ट्र संघ में फिलिस्तीन और हमास के समर्थक देश और भारतीय विपक्ष इस संघर्ष को किस नजरिये से देख रहे हैं यह वही समझ सकते हैं लेकिन इजरायल के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है । कोई कितना भी जोर लगा ले इजरायल अब हमास के अंतिम आतंकी की समाप्ति तक रोकने के मूड नहीं लगता । उसे पता है कि यदि वह हार गया तो उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा । अपने अस्तित्व को बचाने के लिए वह किसी भी स्तर पर जा सकता है , और जाना भी चाहिए । जहां तक भारत की बात है तो उसकी कूटनीति सही दिशा में है । उसने शुरू से ही हमास का विरोध किया । विपक्ष की कोई राय हो लेकिन यदि इजरायल हार गया तो इसका सीधा दुष्प्रभाव भारत पर पड़ेगा । आतंकवादियों का मनोबल बढ़ेगा और भारत पर नए सिरे से आतंकवादी हमले हो सकते हैं । इसलिए भारत को हर हाल में इजरायल का साथ दे कर पूर्व में की गलती को सुधारना ही चाहिए । आतंकवाद के पहले से ही निशाने पर भारत के लिए इससे अधिक कल्याणकारी कोई और नीति हो ही नहीं सकती ।
इसके बावजूद दुर्भाग्य यह कि केरल तक हमास की दस्तक हो चुकी लेकिन कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री इससे बेपरवाह दिल्ली में फिलिस्तीन के समर्थन में धरना देते पाय गए । विडंबना यह कि राज्य सरकार ने हमास के समर्थन में रैली की अनुमति दी । उसे हमास के आतंकवादी द्वारा वर्चुअल संबोधित करने पर खामोश रही । उसके बाद हुए विस्फोटों पर भी लीपापोती की जा रही है लेकिन विद्वेष फैलाने के लिए केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर को ठहराया गया और उनके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई गयी । अब विपक्षी विद्वेष की क्रूरता समर्थक क्रूर मानसिकता देखिये कि कि वे इजरायल के लोगों के हत्यारों के साथ हैं और केरल में भी हमास समर्थक आतंकवाद के साथ और विस्फोट में हुयी हत्या करने वालों के साथ ही नहीं बचाव में भी हैं ।
गहराई से देखें तो लगेगा कि विपक्ष जैसे यूक्रेन युद्ध में भारत को धकेलने की कोशिश कर चुका है वैसे ही इजरायल फिलिस्टयुद्ध में फिलिस्तीन के समर्थन में देश को झोंक देने की कोशिश कर रहा है । विपक्ष शासित इलाकों में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं और इन्हें स्थानीय सत्ता का पूरा समर्थन हासिल है । यह इसलिए घटिया नहीं विध्वंसक राजनीति मानी जा रही है क्योंकि यह देश की सुरक्षा और आजादी की कीमत पर की जा रही है ।